अमेरिका से होड़ करने वाले चीन की हालत क्या सोवियत संघ जैसी हो जाएगी?

अमेरिका से होड़ करने वाले चीन की हालत क्या सोवियत संघ जैसी हो जाएगी?

चीन के विकास की रफ्तार सबको हैरान करती रही है. औद्योगिकीकरण और शहरीकरण ने चीन को पूरी दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है. लेकिन क्या चीन का हाल भी सोवियत संघ जैसा हो सकता है?

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद विश्व में हलचल मची हुई है. ट्रंप ने कई देशों पर टैरिफ लगा दिया है, इसके साथ ही अमेरिका में अवैध तरीके से रहे तमाम लोगों को देश से निकालने की मुहिम भी शुरू कर दी है. 

लेकिन टैरिफ लगाना अब अमेरिका पर भारी भी पड़ रहा है. सबसे पहले अमेरिका ने पड़ोसी देश कनाडा और मैक्सिको से आ रहे सामान पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया, मगर 24 घंटे के भीतर ही अपना फैसला वापस लेना पड़ा. वहीं, चीन से आयतित सामान पर भी 10 फीसदी का टैरिफ लगा दिया तो चीन ने भी पलटवार करके 15 फीसदी का टैरिफ थोप दिया. 

कुल मिलाकर साफ है कि ट्रंप के आते ही चीन के साथ ‘ट्रेड वॉर’ शुरू हो चुका है. लेकिन क्या चीन पूरी तरह से इसके लिए तैयार है. तमाम तथ्यों के विश्लेषण से पता चलता है कि चीन भले ही अमेरिका से दो-दो हाथ करने के लिए आमादा है. लेकिन, उसके सामने भी कई तरह की चुनौतियां हैं और कहीं उसका हाल सोवियत संघ जैसा न हो जाए.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले कई दशकों में चीन की आर्थिक वृद्धि पूरी दुनिया के लिए हैरान करने वाली थी. चीन एक ऐसा देश बना जो  खेती पर निर्भर रहने वाले समाज से लेकर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना. इसमें खेती की जमीन का अधिग्रहण करके तेज औद्योगिकीकरण, शहरीकरण ने बड़ी भूमिका निभाई है. 20वीं सदी में चीन एक ऐसा देश बन गया जो अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी आंख दिखाने की कूव्वत रखता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया दो खेमे में बंट चुकी है जिसके एक तरफ केंद्र में चीन है तो दूसरी अमेरिका है. 

लेकिन 21वीं सदी में चीन के सामने कई समस्या खड़ीं हैं और ऐसा लगता है चीन का ‘स्वर्णकाल’ अब ढलान की ओर है. सवाल तो यहां तक कि एक वक्त जो हाल सोवियत संघ का हुआ था, वैसा ही क्या चीन के भी साथ हो सकता है. इसका जवाब ढूंढने के लिए हमने चीन की अर्थव्यवस्था जनसांख्यिकीय रुझान, राजनीति,और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की पड़ताल की है.

चीन की अर्थव्यवस्था किस ओर जा रही है?
चीन की विकास दर  साल 2025 में लगभग 4.5% रहने का अनुमान है, जो 2024 में 5.0% से कम है. समझने की जरूरत ये है कि चीन की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा रही है जिसमें कमजोर घरेलू खपत और रियल एस्टेट में मंदी शामिल है. जबकि सरकारी खपत को राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों के जरिए विकास की गति बढ़ाने के लिए कोशिश की जा रही है.,कर्जे का स्तर और अधिक उत्पादन क्षमता के कारण अस्थिरता बनी हुई है. इस बात को और आसानी से समझने के लिए हमने कई बिंदुओं का विस्तार से अध्ययन किया है.

1.कमजोर घरेलू खपत: घरेलू खर्च को बढ़ावा देने की कोशिशों बावजूद, रियल एस्टेट संकट और कमजोर श्रम बाजार की स्थितियों के कारण कम है. सरकार ने सब्सिडी बढ़ाकर खपत में तेजी लाने की कोशिश की है लेकिन उसको कोई बहुत असर दिख नहीं रहा है.

2.रियल एस्टेट सेक्टर में मंदी: रियल एस्टेट बाजार चीन की आर्थिक वृद्धि का एक अहम हिस्सा रहा है.हालाँकि,प्रमुख कंपनियों के कर्जे और डिफ़ॉल्टर हो जाने से इस सेक्टर संकट गहरा गया है. इस क्षेत्र में मंदी का व्यापक अर्थव्यवस्था पर पड़ता दिख रहा है.

3. बढ़ता हुआ कर्ज: पिछले दशक में चीन का कुल कर्ज तेजी से बढ़ा है, कॉर्पोरेट और स्थानीय सरकारी कर्ज का  स्तर यदि सही तरीके से व्यवस्थित  नहीं किए गए तो आर्थिक अस्थिरता हो सकती है.

4. टेक्नॉलजी में दूसरे देशों से चुनौती: चीन को प्रौद्योगिकी और निर्माण क्षेत्रों में अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

वर्ग मुख्य संकेतक/मुद्दे विवरण/प्रभाव
जीडीपी  मंदी 5% के लक्ष्य से पीछे चूकने की राह पर। विश्लेषकों का अनुमान है कि यह 4% के करीब स्थिर हो जाएगा, जो 1980-2010 की अवधि से काफी कम है.
रियल एस्टेट क्षेत्र रियल एस्टेट का बुलबुला फूटा  2022 और 2023 में इस सेक्टर में गिरावट. 
निवेश गिरता निवेश, निवेशक डरे हुए नई विकासात्मक सुरक्षा दृष्टिकोण  के कारण निवेश में गिरावट आई। सरकार पूरी तरह से मुआवजा नहीं दे सकी.
कीमतें अपस्फीति दबाव लगातार 26 महीनों से फैक्ट्री उत्पाद में मंदी. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक खतरे में. घरेलू खपत में गिरावट.
सरकारी प्रतिक्रिया सीमित प्रोत्साहन, दीर्घकालिक प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित शी जिनपिंग की 2009 की तुलना में अधिक खर्च करने की अनिच्छा. संभावित कारण: गलत जानकारी होना, प्रोत्साहन दृष्टिकोण से असहमत होना या सीसीपी की शक्ति को प्राथमिकता देना.
वैश्विक व्यापार संभावित ट्रम्प टैरिफ का प्रभाव टैरिफ चीनी निर्माताओं को विकासशील बाजारों में धकेल सकते हैं, जिससे उन देशों में स्थानीय उद्योगों को नुकसान हो सकता है. चीन अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने, आपूर्ति श्रृंखला का लाभ उठाने की तैयारी कर रहा है.
फेंटानिल संकट चीनी दवा उद्योग की भूमिका उद्योग को बढ़ावा देने की नीतियों ने अनजाने में छोटे रासायनिक संयंत्रों और एपीआई निर्माताओं का एक विशाल कुटीर उद्योग बना दिया है. प्रांत कड़ी प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे विनियमन कमजोर होता है. इससे मनी लॉन्ड्रिंग और फेंटानिल व्यापार में योगदान होता है.
वैश्विक दक्षिण संबंध चीन की नीतियों का संभावित प्रभाव घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने की नीतियां  सबंधों को कमजोर कर सकती हैं, जिससे चीन के लिए एक रणनीतिक दुविधा पैदा हो सकती है.
 2024 का प्रदर्शन मिले-जुले परिणाम. औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई. खुदरा बिक्री में गिरावट आई. औद्योगिक उत्पादन में 5.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो उम्मीद से अधिक है. खुदरा बिक्री में साल-दर-साल 3% की वृद्धि हुई, जो अक्टूबर की 4.8% की वृद्धि से काफी कम है.

सोवितय संघ से तुलना क्यों?
ऐतिहासिक रूप से, उन अर्थव्यवस्थाओं ने जो राज्य-प्रेरित मॉडलों ( सरकार के नियंत्रण) पर अत्यधिक निर्भर थीं, जब वे बदलते वैश्विक परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हो पाईं, तो ठहराव का सामना करना पड़ा. सोवियत संघ सबसे बड़ा उदाहरण है.सोवियत संघ के एक वक्त विश्व का पावर सेंटर था. लेकिन बाद में टूटकर इसका पतन हो गया. वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर में सरकार से नियंत्रित होने वाली अर्थव्यवस्थाएं  मुकाबला नहीं कर पाई हैं. चीन भी संरक्षणवाद और सरकारी नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था है.

वृद्ध होती जनसंख्या:चीन के सामने सबसे गंभीर मुद्दों में से एक इसकी वृद्ध होती जनसंख्या है. 1979 में लागू की गई ‘वन चाइल्ड’  नीति में साल 2015 में ढील दी गई.लेकिन तब तक एक जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा हो चुका था.साल 2050 तक, यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग एक-तिहाई चीन की जनसंख्या 60 वर्ष से अधिक होगी.

श्रम बल में कमी: जैसे-जैसे जनसंख्या वृद्ध होती है, कार्यशील आयु की जनसंख्या में महत्वपूर्ण कमी आने की आशंका होती है.यह जनसांख्यिकीय परिवर्तन श्रम संकट और सामाजिक कल्याण प्रणालियों पर बढ़ते दबाव का कारण बन सकता है. घटते श्रम बल से आर्थिक वृद्धि बाधित हो सकती है और उत्पादकता स्तरों को कम कर सकती है.

शहरी-ग्रामीण विभाजन: चीन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बड़ी विषमताओं का सामना कर रहा है. जबकि शहरों में तेजी से विकास हुआ है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र अक्सर बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पहुंच के मामले में पीछे रह गए हैं. 

राजनीति का प्रभाव: चीन की राजनीतिक व्यवस्था में एक मात्र पार्टी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) है जो सत्ता में हमेशा रहती है. यह  मॉडल तेज निर्णय लेने और नीतियों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक तो बनाता है,लेकिन यह पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक असंतोष के मुद्दे पर फेल साबित हो रहा है.

राष्ट्रवाद और वैश्विक संबंध: चीनी कम्यिनिस्ट पार्टी ने घरेलू स्तर पर खुद को और ताकतवर बनाने के लिए  राष्ट्रवाद पर अधिक निर्भर होना शुरू कर दिया है. यह दृष्टिकोण अन्य देशों के साथ तनाव पैदा कर सकता है और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को जटिल बना सकता है. जैसे-जैसे चीन वैश्विक मंच पर खुद को स्थापित करता ह,जैसे कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) या दक्षिण चीन सागर में सैन्य विस्तार, पड़ोसी देशों में असंतोष पैदा होता है.

चीन में मनवाधिकार का हनन: चीन का मानवाधिकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादास्पद बना हुआ है. शिनजियांग और तिब्बत जैसे क्षेत्रों में दमन के आरोप लगते रहे हैं. ये बातें चीन की सॉफ्ट पावर को और व्यापार संबंधों को प्रभावित कर रही हैं.

चीन के अंतरराष्ट्रीय संबंध: चीन को दुनिया की फैक्टरी कहा जाता है. यहां पर बने सामानों का पूरी दुनिया के बाजारों पर कब्जा है.  हालांकि,अमेरिका जैसे देशों के साथ व्यापार युद्धों ने चीन को बड़ा झटका दिया है. अगर ऐसी अगर दुनिया के बाकी देशों के साथ भी संबंध बिगड़ते हैं तो चीन की अर्थव्यवस्था ढहने की कगार पर आ जाएगी.

टैरिफ और व्यापार युद्ध: अमेरिका की ओर से  चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाने का मकसद व्यापार घाटे को कम करना था.बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद इसमें कमी आई थी. लेकिन ट्रंप ने दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद फिर से टैरिफ लगा दिया है. जवाब चीन ने दिया है लेकिन जिस तरह से उसके बाकी देशों के संबंध बिगड़ रहे हैं, उससे चीन के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है.

सप्लाई चैन में स्थिरता: COVID-19 महामारी ने चीन पर निर्भर रहने वाली सप्लाई चैन की कमियों को भी उजागर किया है.कई देश अब जोखिमों को कम करने के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं.

भौगोलिक प्रतिद्वंद्विता: जैसे-जैसे चीन का आर्थिक और सैन्य प्रभाव बढ़ता जा रहा है, इसे अमेरिका, भारत और जापान जैसे अन्य शक्तियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. यह भौगोलिक प्रतिद्वंद्विता व्यापार, प्रौद्योगिकी साझा करने और रणनीतिक क्षेत्रों में सैन्य उपस्थिति को लेकर संघर्ष पैदा कर सकती हैं.

वैश्विक आर्थिक एकीकरण, चीन के लिए अच्छी बात
इन चुनौतियों के बावजूद, चीन का वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकरण महत्वपूर्ण बना हुआ है: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव साल 2013 में लॉन्च किया गया था. यह महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजना एशिया को यूरोप और अफ्रीका से भूमि एवं समुद्री नेटवर्कों के माध्यम से जोड़ने के लिए शुरू गई है.

बहुपक्षीय समझौते: चीन ने एशिया-प्रशांत देशों के बीच व्यापार बढ़ाने हेतु क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी (RCEP) जैसे बहुपक्षीय समझौतों में भागीदारी करके अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है.

प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धा: जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी वैश्विक वर्चस्व का मुख्य युद्धक्षेत्र बनती जा रही है, चीन की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), दूरसंचार (जैसे हुवावे) और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी में निवेश इसे विश्व मंच पर एक मजबूत प्रतिस्पर्धी बनाता है.

सोवियत संघ चीन के लिए बड़ा सबक
सोवियत संघ का पतन आंशिक रूप से इस बात का परिणाम था कि वह राज्य-नियंत्रित मॉडल बनाए रखते हुए नए प्रयोग नहीं कर सका.चीन अपने अर्थव्यवस्था को भारी सरकारी नियंत्रण से बाजार-आधारित व्यवस्था की ओर नहीं कर पाता  तो उसे आर्थिक स्थिरता का वैसा ही सामना करना पड़ेगा जैसे सोवियत संघ को करना पड़ा.

राजनीतिक दमन बनाम सुधार
सोवियत संघ का राजनीतिक दमन समय बीतने के साथ उसके नागरिकों में व्यापक असंतोष पैदा करता गया; इसी प्रकार यदि चीन की अधिनायकवादी शासन प्रणाली खराब होती आर्थिक स्थितियों के बिना राजनीतिक सुधार या जीवन गुणवत्ता में सुधार नहीं करती तो असंतोष पैदा हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय अलगाव
सोवियत संघ ने अपने भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने अन्य देशों (जैसे अफगानिस्तान आक्रमण) के साथ संघर्ष पैदा किया जिससे उसका अलगाव बढ़ा. यदि चीन आक्रामक क्षेत्रीय दावे जारी रखता या बिना कूटनीतिक  रणनीतियों के व्यापार युद्धों में संलग्न रहता तो उसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय साझेदारों से अलगाव का सामना करना पड़ सकता है.

चीन के भविष्य की संभावनाएं
जब हम विश्लेषण करते हैं कि क्या चीन अपने शिखर पर पहुंच चुका है या सोवियत संघ जैसी स्थिति का सामना कर सकता है तो कई प्रमुख कारक उभरकर सामने आते हैं:

1.आर्थिक संक्रमण: निवेश-आधारित अर्थव्यवस्था से स्थायी उपभोग पर ध्यान केंद्रित करने वाली अर्थव्यवस्था की ओर जाने की क्षमता दीर्घकालिक विकास संभावनाओं के लिए महत्वपूर्ण होगी.

2.जनसांख्यकीय अनुकूलन: उच्च जन्म दर  को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों के जरिए जनसांख्यकीय चुनौतियों का समाधान कुछ नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है जो वृद्ध होती जनसंख्या लाएगी.

3. राजनीतिक लचीलापन: सुधार या बेहतर शासन द्वारा अधिक राजनीतिक लचीलापन सामाजिक स्थिरता बढ़ा सकता है जबकि अर्थव्यवस्था में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है.

4. अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव: भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं का प्रबंधन करते हुए सहयोगात्मक अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाना चीन की वैश्विक स्थिति बनाए रखने हेतु आवश्यक होगा जब प्रतिस्पर्धा बढ़ रही हो.

चीन के मौजूदा हालात और सोवियत संघ जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के बीच समानताएं मौजूद हैं. विशेषकर आर्थिक चुनौतियों को लेकर परिणाम इस बात पर काफी हद तक निर्भर करेंगे कि चीन इन जटिल हालातों से कैसे निपटता है.

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