दिल्ली चुनाव 2025: तीन पार्टी और कई नेताओं की साख दांव पर ?

दिल्ली चुनाव 2025: तीन पार्टी और कई नेताओं की साख दांव पर

दिल्ली चुनाव सिर्फ राजधानी की राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करेगा. क्या जनता केजरीवाल को फिर से सत्ता सौंपेगी? क्या मोदी की लहर दिल्ली तक पहुंचेगी? या कांग्रेस कुछ नया कर दिखाएगी?

दिल्ली विधानसभा का चुनाव आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए आर-पार की लड़ाई है. अरविंद केजरीवाल के लिए यह जीत न सिर्फ सत्ता में बने रहने का सवाल है, बल्कि उनकी पूरी राजनीति की साख भी इसी पर टिकी है. लेकिन BJP के लिए क्या दांव इतना बड़ा है? हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत के बाद बीजेपी पहले से मजबूत स्थिति में है, फिर भी वह दिल्ली चुनाव को इतनी गंभीरता से ले रही है.

यह चुनाव तीन प्रमुख राजनीतिक दलों आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के लिए साख की परीक्षा भी है. जहां AAP को अपनी सरकार बचाने की चुनौती है, वहीं बीजेपी के लिए यह अपने राष्ट्रीय प्रभाव को दिल्ली तक फैलाने का मौका है. दूसरी ओर, कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश में लगी है. हालांकि, यह चुनाव कई बड़े नेताओं की साख की लड़ाई भी बन चुका है.

BJP के लिए दिल्ली चुनाव इतना अहम क्यों?
दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है. यहां कई अहम फैसलों पर उपराज्यपाल की सीधी पकड़ होती है. खासकर कानून-व्यवस्था, पुलिस और जमीन से जुड़े मामलों का नियंत्रण उपराज्यपाल (LG) के हाथ में होता है. ऐसे में मुख्यमंत्री के पास फैसलों की पूरी स्वतंत्रता नहीं होती.

दिल्ली देश की राजधानी भी है और यहां की सरकार पर नियंत्रण का मतलब राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी पकड़ बनाना है. दिल्ली चुनाव सिर्फ विधानसभा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इससे 2029 के लोकसभा चुनाव की भी झलक मिल सकती है.

इसका असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और यहां तक कि बिहार तक महसूस किया जाता है. बड़ी संख्या में पूर्वांचली दिल्ली में बसे हैं, जो यहां की राजनीति को प्रभावित करने के साथ-साथ अपने मूल राज्यों में भी जनमत को दिशा देते हैं.

बीजेपी दिल्ली में मजबूत पकड़ बनाकर अपने राष्ट्रीय प्रभाव को और बढ़ाना चाहती है. आम आदमी पार्टी लगातार बीजेपी को दिल्ली में टक्कर देती रही है और अगर बीजेपी यहां जीतती है, तो केजरीवाल की राजनीति को बड़ा झटका लगेगा. यह बीजेपी के लिए 2029 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को कमजोर करने का मौका भी हो सकता है.

 अरविंद केजरीवाल: क्या चौथी बार सत्ता में वापसी होगी?
आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अब तक तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. पहली बार 2013 से 2014 (49 दिन), फिर 2015 से 2020 और 2020 से 2024 तक. वह 2013 से लगातार नई दिल्ली विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. 2013 में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 25,864 वोटों से हराकर राजनीति में तहलका मचा दिया था. 2015 में बीजेपी की नूपुर शर्मा को 31,583 वोटों से मात दी, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार किरण वालिया तीसरे स्थान पर रहीं थी. 2020 में उन्होंने बीजेपी के सुनील कुमार यादव को 21,697 वोटों से हराकर सीट बरकरार रखी.

इस बार नई दिल्ली सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है. बीजेपी ने सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को उतारा है, जो दिल्ली की राजनीति में बड़ा नाम हैं. कांग्रेस ने शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है, जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया है. लेकिन इस बार केजरीवाल की पार्टी की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को शराब नीति घोटाले के आरोपों से नुकसान पहुंचा है. केजरीवाल ने 2014 में वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें 3,71,784 वोटों के बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. 

दिल्ली चुनाव 2025: तीन पार्टी और कई नेताओं की साख दांव पर

चुनावी विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल ने एबीपी न्यूज से बातचीत में बताया, ‘जब से अरविंद केजरीवाल रीजनीति में आए हैं, पहली बार उनके सामने कठिन चुनौती है क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने मजबूत दावेदार उतारे हैं. दूसरी बात नई दिल्ली ऐसी सीट है जिस पर बहुत ज्यादा संख्या में सरकारी कर्मचारी हैं. बीजेपी सरकार ने हाल ही में दो बड़ी घोषणाएं की हैं- एक 12 लाख रुपये की कमाई तक कोई टैक्स नहीं देना होगा और दूसरा आठवां वेतन आयोग. इसलिए अरविंद केजरीवाल के लिए मुकाबला आसान नहीं है. इस सीट पर किसी की भी जीत हो सकती है.’

वहीं, इस मुद्दे पर एबीपी न्यूज ने वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा से भी बातचीत की. उन्होंने बताया, ‘नई दिल्ली कांस्टीट्यूएंसी शुरुआत से प्रो बीजेपी सीट रही है. पहले एनडीएमसी के इलाके तीन विधानसभा क्षेत्र में थे, लेकिन 2006 में एनडीएमसी के पूरे इलाके को एक विधानसभा क्षेत्र में ला दिया गया. सरोजनी नगर विधानसभा क्षेत्र खत्म कर दिया गया. उसके बाद से ही ये प्रो बीजेपी सीट रही है, क्योंकि बीजेपी यहां कभी जीत हासिल नहीं कर सकी.’

“उसके बाद तीन बार कांग्रेस की शीला दीक्षित जीतीं, तीन बार आम आदमी पार्टी जीती. अभी की स्थिति देखकर लग रहा है कि कहीं अरविंद केजरीवाल अपनी सीट से ही चुनाव न हार जाए. यहां से गरीब तबके का वोट अगर कांग्रेस को पड़ जाता है, तो केजरीवाल के मुश्किल हो सकती है. वहीं केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के दाग भी लगे हैं और उनकी टीम भी छोटी हो गई है.”

PM नरेंद्र मोदी: क्या दिल्ली में कमल खिलेगा?  
बीजेपी ने दिल्ली जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और उनकी नीतियों को मुख्य हथियार बनाया. पार्टी की रणनीति मोदी सरकार की उपलब्धियों पर केंद्रित रही, जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर, गरीब कल्याण योजनाएं और ‘डबल इंजन सरकार’ का वादा शामिल था.

अरविंद केजरीवाल इस बार नई दिल्ली विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े हैं. केजरीवाल ने अपने हलफनामे में कुल 4.2 करोड़ की संपत्ति घोषित की है. खास बात यह है कि उनके पास कोई देनदारी (ऋण/लोन) नहीं है. उनके चुनावी हलफनामे के अनुसार, उन पर कुल 15 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 5 गंभीर मामले हैं.

वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल ने बताया, अगर चुनाव बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच होता है, तो फायदा आम आदमी पार्टी को ही मिलेगा. लेकिन अगर कांग्रेस पार्टी का थोड़ा-बहुत वोट शेयर बढ़ जाता है तो फिर फायदा बीजेपी का हो सकता है. पिछले दो चुनाव से दिल्ली में कांग्रेस पार्टी खाली हाथ है. वोट शेयर 4.5 फीसदी से बढ़कर 10-11 फीसदी तक पहुंच जाता है तो सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा.

वहीं मनोज मिश्रा ने बताया कि पीएम मोदी ने बीजेपी के प्रमुख चहेरे के तौर पर दिल्ली में चुनाव प्रचार किया. वोटिंग से एक दिन पहले लोकसभा में उनका भाषण पूरी तरह से दिल्ली चुनाव पर केंद्रित रहा. वोटिंग वाले दिन भी प्रयागराज पहुंचकर महाकुंभ में स्नान किया. पीएम मोदी जैसे बाकी राज्यों का चुनाव लीड करते थे, उससे ज्यादा आगे बढ़कर दिल्ली चुनाव में एक्टिव हैं. उन्हें लग रहा है कि अगर इस बार बीजेपी दिल्ली नहीं जीती, तो अगले चुनाव में नहीं जीत पाएगी. 

उन्होंने आगे कहा, ‘दिल्ली में गरीब तबके की आबादी ज्यादा है और इनका अरविंद केजरीवाल से मोह भंग अभी हुआ नहीं है. फ्री-फ्री वाले वादें सभी राजनीतिक पार्टियों ने किए हैं, लेकिन लोग केजरीवाल के वादें पर यकीन कर रहे हैं. फिर भी वोट बंटने का खतरा बहुत ज्यादा है.’

राहुल गांधी: क्या कांग्रेस वापसी कर पाएगी?
दिल्ली में कभी कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन 2015 और 2020 के चुनावों में पार्टी शून्य सीटों पर सिमट गई. राहुल गांधी ने इस बार नए चेहरों और बदलाव की रणनीति अपनाई, लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन फिर से हासिल कर पाएगी?  

वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल का कहना है कि कांग्रेस और राहुल गांधी का पूरा चुनावी अभियान इस बात पर टिका रहा कि उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ना है और उसको बाहर करना है. शुरुआत में सवाल भी उठे कि कांग्रेस कैसे आम आदमी पार्टी को हराने की कोशिश कर सकती है, जबकि आप ‘इंडिया गठबंधन’ का हिस्सा है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने तय किया कि उन्हें आम आदमी पार्टी के खिलाफ लड़ना है, क्योंकि आप ने ही कांग्रेस को वोट बैंक छीना है. इसलिए राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान खुलकर आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की आलोचना की.

दिल्ली चुनाव 2025: तीन पार्टी और कई नेताओं की साख दांव पर

दिल्ली में कांग्रेस की स्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा से भी चर्चा हुई. उन्होंने बताया कि कांग्रेस दिल्ली चुनाव में जोर शोर से नहीं लगी है. अगर कांग्रेस जोर शोर से लगती, तो साफ था कि आम आदमी पार्टी साफ हो जाती. लेकिन ऐसा नहीं है. कांग्रेस आधे मन से चुनाव लड़ रही है. आखिरी समय में राहुल गांधी के कुछ रोडशो कैंसिल कर दिए गए. कांग्रेस कभी बहुत एक्टिव हो जाती है, कभी शांत हो जाती है. फिर भी, दिल्ली की कम से कम 15 सीटों पर कांग्रेस को ठीकठाक वोट मिल सकता है और एकआद सीट जीत भी सकती है. 

आतिशी: AAP की नई उम्मीद
आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी इस समय दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं. वह सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनीं. आतिशी ने सितंबर 2024 में मुख्यमंत्री पद संभाला, इससे पहले वह अरविंद केजरीवाल सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कई महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुकी हैं.

आतिशी ने पूर्वी दिल्ली सीट से 2019 लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन बीजेपी के गौतम गंभीर और कांग्रेस के अरविंदर सिंह लवली के बाद तीसरे स्थान पर रहीं. उन्होंने 2,19,328 वोट (17.44%) हासिल कर अपनी जमानत बचाई. फिर 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में कलकाजी सीट से बीजेपी के धर्मबीर सिंह को 11,393 वोटों के अंतर से हराया और पहली बार विधायक बनीं. इस बार आतिशी फिर से कलकाजी सीट से चुनाव लड़ रही हैं, जहां उनका मुकाबला बीजेपी के रमेश बिधूड़ी और कांग्रेस की अलका लांबा से है.

आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी को इस बार पार्टी ने मजबूती से आगे किया. चुनाव प्रचार में वह मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में उभरीं और शिक्षा व महिलाओं के मुद्दों पर फोकस किया. लेकिन क्या उनकी रणनीति सफल हुई?  

वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल ने कहा, आतिशी पहले भी विधायक थीं, अभी भी हैं. लेकिन इस बार उनके सामने भी कड़ी टक्कर है, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने उनके सामने मजबूत प्रत्याक्षी उतारे हैं. लेकिन ज्यादा बड़ा चहेरा अरविंद केजरीवाल हैं और पार्टी भी केजरीवाल के चहेरे पर ही चुनाव लड़ रही है. 

‘आतिशी से ज्यादा मनीष सिसोदिया की ज्यादा खतरे में’
वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा ने कहा, ‘आतिशी अगर चुनाव जीत जाए, तो चमत्कार होगा. उनके सामने रमेश बिधूड़ी हैं, जो कभी चुनाव हारे नहीं है. लेकिन इस सीट से ज्यादा मनीष सिसोदिया का चुनाव जीतना मुश्किल है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘मनीष सिसोदिया लगातार दो बार पटपड़गंज सीट से जीत चुके थे, लेकिन इस बार उन्हें जंगपुरा सीट से उतारा गया है. इस इलाके में सिख और मुस्लिम आबादी अच्छी तादाद में है. वहीं बीजेपी ने सिसोदिया के सामने एक सिख (तरविंदर मारवाह) को टिकट दिया है और कांग्रेस ने एक मुसलमान को खड़ा किया है. फरहाद सूरी कांग्रेस के अनुभवी नेता और दिल्ली के पूर्व मेयर रह चुके हैं.’

प्रवेश वर्मा: BJP का उभरता चेहरा
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रवेश वर्मा दिल्ली की राजनीति में एक मजबूत चेहरा हैं. वह दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं और पश्चिम दिल्ली से दो बार सांसद रह चुके हैं. 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रवेश वर्मा ने महरौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और आम आदमी पार्टी के नरिंदर सिंह सेजवाल और कांग्रेस के डॉ योगानंद शास्त्री को हराकर जीत दर्ज की. उन्होंने सेजवाल को 4564 वोटों से मात दी थी.

फिर 2014 लोकसभा चुनाव में AAP के जरनैल सिंह और कांग्रेस के महाबल मिश्रा को हराकर पश्चिम दिल्ली से सांसद बने. इस चुनाव में उन्होंने जरनैल सिंह को 2,68,586 वोटों के बड़े अंतर से हराया. 2019 लोकसभा चुनाव में उन्होंने इतिहास रचते हुए रिकॉर्ड 5,78,486 वोटों के अंतर से फिर से जीत हासिल की. इस बार उनके सामने कांग्रेस के महाबल मिश्रा और आप के बलबीर सिंह जाखड़ थे. 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, जिससे उन्हें बड़ा झटका लगा. अब प्रवेश वर्मा नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उनका मुकाबला अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के संदीप दीक्षित से है.

प्रवेश वर्मा दिल्ली में पार्टी के हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी एजेंडे का अहम चेहरा हैं. चुनाव में उन्होंने AAP पर कड़े हमले किए, लेकिन क्या बीजेपी के पारंपरिक वोटरों को पूरी तरह से एकजुट कर पाए? चुनावी विश्लेषक आदेश रावल का मानना है कि बीजेपी ने केजरीवाल के सामने प्रवेश वर्मा को टिकट देकर अच्छी कोशिश की है. अगर उन्हें सफलता मिलती है तो राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उनका बढ़ सकता है. प्रवेश वर्मा के सामने करो या मरो वाली स्थिति है. 

वहीं, मनोज मिश्रा का कहना है कि लोकसभा में बीजेपी ने इसलिए ही प्रवेश वर्मा को टिकट नहीं दिया था, ताकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ काम करने के लिए उतार सकें. लोकसभा से पहले ही ये सब तय हो गया था.

दिल्ली चुनाव 2025: तीन पार्टी और कई नेताओं की साख दांव पर

असदुद्दीन ओवैसी: क्या AIMIM को मिलेगी दिल्ली में जगह?
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस बार दिल्ली में अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन क्या मुस्लिम वोट बैंक उन्हें स्वीकार करेगा या वे AAP-कांग्रेस में बंट जाएंगे?  

ओवैसी पर आदेश रावल ने कहा, दिल्ली का मुस्लिम वोट बैंक बस ये देख रहा है कि कौन बीजेपी को हरा रहा है. उन्हें पता है कि कांग्रेस पार्टी जीतने की स्थिति में है नहीं, तो मुस्लिम वोट बैंक आम आदमी पार्टी के साथ जा सकता है. असदुद्दीन ओवैसी का खाता खुलना भी मुश्किल है.

मनोज मिश्रा का कहना है कि दिल्ली में कोई भी कांस्टीट्यूएंसी पूरी तरह से मुस्लिम आबादी वाली नहीं है, हालांकि 17 ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है. तीन दशक पहले ऐसे 4-5 विधानसभा क्षेत्र ही थे. 2001 की जनगणना में मुस्लिम वोट 12 से 15 फीसदी हुआ करता था, अब ये 20 फीसदी के आसपास है. दिल्ली का हर पांचवां वोटर मुसलमान है. इनमें अगर बंटवारा नहीं हुआ, तो केजरीवाल को हराना मुश्किल होगा. अगर कांग्रेस इन्हें बांटने में कामयाब हो जाती है या एकतरफा वोट ले जाती है, तो नतीजे बदल सकते हैं.

आकाश आनंद: क्या BSP ने असर डाला?  
मायावती के उत्तराधिकारी माने जा रहे आकाश आनंद ने दलित वोटों पर फोकस किया. सवाल यह है कि क्या बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव इस बार दिल्ली चुनाव में दिखा या नहीं?

वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल ने बताया, ‘दिल्ली में प्रचार के दौरान बहुजन समाज पार्टी या आकाश आनंद कहीं नजर नहीं आए. लगता नहीं कि दलित वोट बैंक चुनाव की दिशा बदल सकता है. कांग्रेस पार्टी दलित और मुस्लिम वोट बैंक पर टारगेट कर रही है. मुस्लिम वोट बैंक का ज्यादातर हिस्सा आम आदमी पार्टी की तरफ जाने का अनुमान है. दलित वोट बैंक किस ओर जाएगा, ये 8 फरवरी को चुनाव नतीजे वाले दिन पता चल जाएगा. बीएसपी को सफलता मिलने की उम्मीद नहीं है. देखना ये है कि बीएसपी किस-किसी सीट पर कितना और किसका वोट काटेगी.’

वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा भी मानते हैं कि दिल्ली चुनाव में BSP कोई फैक्टर नहीं है. उन्होंने कहा, पश्चिमी यूपी में बीएसपी के कोर वोटर केवल जाटव हैं और दिल्ली में जाटव आबादी बहुत बड़ी नहीं है. जाटव से ज्यादा सफाई कर्मचारी हैं, जिन्हें वाल्मीकि कहते हैं. पहले जब मायावती एक्टिव थीं, तब बीएसपी को वोट मिलते थे.   

केजरीवाल की जीत से विपक्ष को मिलेगा बल?
भले ही राहुल गांधी ने केजरीवाल पर तीखे और व्यक्तिगत हमले किए हों, लेकिन अगर AAP दिल्ली में फिर से जीतती है, खासतौर पर अगर केजरीवाल चौथी बार मुख्यमंत्री बनते हैं तो इससे विपक्ष को मजबूती मिल सकती है. बीजेपी हमेशा से केजरीवाल को सिर्फ दिल्ली और पंजाब तक सीमित नहीं, बल्कि भविष्य में एक संभावित खतरे के रूप में देखती रही है.

इस चुनाव का असर सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा. यह पूरे देश में राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है. सवाल यह है क्या BJP दिल्ली की सत्ता वापस ले पाएगी या AAP की जीत से विपक्ष को नया जोश मिलेगा? यह सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि देश की राजनीति का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है.

दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य न हो, लेकिन इसका चुनाव राजनीतिक रूप से बेहद अहम है. बीजेपी यहां जीतकर अपने राष्ट्रीय एजेंडे को और मजबूती देना चाहती है, जबकि AAP के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है. अब देखना यह होगा कि जनता किसके पक्ष में अपना फैसला सुनाती है.

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