नई दिल्ली। केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने गुरुवार को लोकसभा को बताया कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2023-24 में स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में चिंताजनक गिरावट दर्ज की गई है। खासकर प्राथमिक स्तर पर, जहां 2021-22 की तुलना में इस संख्या में लगभग आठ प्रतिशत की गिरावट आई है।
आदिवासी छात्रों की स्कूल जाने की संख्या घटी
आदिवासी लोगों के जीवन स्तर पर एक सवाल का जवाब देते हुए उइके ने बताया कि प्राथमिक स्तर पर आदिवासी छात्रों का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 2021-22 में 103.4 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 97.1 प्रतिशत हो गया है। इसकी तुलना में, सभी समुदायों के छात्रों का जीईआर 2021-22 में 100.13 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 91.7 प्रतिशत हो गया।
आंकड़ों से पता चला है कि माध्यमिक स्तर (कक्षा 9-10) पर आदिवासी छात्रों का जीईआर 2021-22 में 78.1 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 76.9 प्रतिशत हो गया। सभी समुदायों के छात्रों के लिए माध्यमिक स्तर पर जीईआर 2021-22 में 79.56 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 77.4 प्रतिशत हो गया।
नरेन्द्र मोदी सरकार शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है- विपक्ष
उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा 11-12) पर एसटी छात्रों का जीईआर 2021-22 में 52 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 48.7 प्रतिशत हो गया। इसकी तुलना में इस स्तर पर सभी समुदायों के छात्रों का जीईआर 2021-22 में 57.56 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 56.2 प्रतिशत हो गया।
गौरतलब है कि बुधवार को कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने हाल के वर्षों में स्कूल नामांकन में आई ”महत्वपूर्ण गिरावट” पर सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की थी और आरोप लगाया था कि नरेन्द्र मोदी सरकार शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है।
पिछले पांच वर्षों में 669 एशियाई शेरों की मौत, 2024 में सबसे ज्यादा: मंत्री
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि पिछले पांच वर्षों में कुल 669 एशियाई शेरों की मौत हुई है, लेकिन शिकार के कारण कोई मौत दर्ज नहीं की गई। गुजरात में गीर का जंगल एशियाई शेरों का एकमात्र प्राकृतिक आवास है।
2024 में 165 शेरों की मौत हुई
सिंह ने कहा कि 2020 में 142 शेरों की मौत हुई, 2021 में 124, 2022 में 117, 2023 में 121 और 2024 में 165 शेरों की मौत हुई। उन्होंने कहा, ”(गुजरात) राज्य सरकार द्वारा बताई गई रिपोर्ट के अनुसार, शेरों की मौत के कथित कारणों में बुढ़ापा, बीमारी, संघर्ष से चोट लगना, शावकों की मृत्यु, खुले कुओं में गिरना, बिजली की चपेट में आना, दुर्घटनाएं आदि शामिल हैं।”

मंत्री ने यह भी कहा कि इन वर्षों के दौरान शिकार के कारण शेरों की मौत की कोई घटना नहीं हुई। गुजरात में एशियाई शेरों की आबादी 2015 में 523 से बढ़कर जून, 2020 में सबसे हालिया अनुमान के अनुसार 674 हो गई है।
शेरों की आबादी को विलुप्त होने से बचाएगा
विशेषज्ञों ने कई वर्षों से भारत में शेरों के स्थानांतरण की मांग की है क्योंकि ये गीर में भौगोलिक दृष्टि से अलग-थलग हैं। उनका ‘दूसरा घर’ उन्हें महामारी, शिकार में अप्रत्याशित गिरावट या प्राकृतिक आपदाओं के मामले में शेरों की आबादी को विलुप्त होने से बचाएगा।