वक्फ बोर्ड क़ानून पर सुनवाई बेमतलब !
वक्फ बोर्ड क़ानून पर सुनवाई बेमतलब
अब चूंकि याचिकाएं आईं हैं तो माननीय सुप्रीम कोर्ट को उनकी सुनवाई करना पड़ रही है । माननीय अदालत का करम है कि उसने तमाम याचिकाओं को एक झटके में खारिज नहीं किया ,हाँ माननीय कोर्ट ने इन याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की मांग जरूर ठुकरा दी थी। देश को और इस क़ानून के विरोधियों को भले ही सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद हो ,लेकिन मुझे नहीं है ,क्योंकि ऐसा लगता नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इस क़ानून को लेकर सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ कोई फैसला देगा।
मेरे हिसाब से वक्फ बोर्ड कानून पर सुनवाई का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि ये कानून संसद के दोनों सदनों में लम्बी बहस के बाद बहुमत से पारित किया गया है। ये कानून भले ही संविधान की मूल भावनाओं के विरुद्ध हो किन्तु इसमें सरकार की भावना महत्ववपूर्ण है और माननीय कोर्ट इसे भली- भांति समझता है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने इशारों-इशारों में माननीय कोर्ट को सरकार की भावना से अवगत भी करा दिया है। किरण ने पिछले दिनों ही कहा था कि माननीय न्यायालय को वक्फ बोर्ड क़ानून पर सरकार की भावना समझना चाहिए।
वक्फ बोर्ड कानून सत्ता प्रतिष्ठान के हिन्दू एजेंडे से ही बाबस्ता है। सरकार शुरू से एक देश ,एक क़ानून और एक देश ,एक चुनाव की बातें करती आ रही है। मौजूदा सरकार स्पष्ट रूप से देश के अल्पसंख्यक समुदाय के लिए आजादी के बाद बने तमाम कानूनों को जमीदोज कर अल्पसंख्यकों के कामकाज ,धारणाओं,मानयताओं में मदाखलत करने की कोशिश कर रही है। सरकार को लगता है कि इस देश में सिवाय हिन्दुओं के सभी लोग चोर हैं,बेईमान हैं, भ्रष्ट हैं ,इसलिए उनके खिलाफ कार्रावाई के लिए नए कानूनों की जरूरत है। कौन सा समाज किस तरह से जीवित रहेगा इसकी फ़िक्र समाज से ज्यादा अब सरकार को होने लगी है और नया वक्फ कानून इसी फ़िक्र का नतीजा है।नयेकानून किमुखालफत करने वालों को सत्ता प्रतिष्ठान और उससे जुड़े लोग पहले हिअरबन नक्सली कह चुके हैं।
मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि हम अधमरे चौथे स्तम्भ के लोग संसद से बड़े नहीं है। अदालतों से बड़े नहीं हैं ,लेकिन हमारी चिंताएं हैं। हमारी जिम्मेदारियां हैं और उन्हींके तहत हम सत्ता प्रतिष्ठान को आगाह करते रहते हैं। अल्पसंख्यकों को लेकर हमारा ऐसा कोई एजेंडा नहीं है जैसा कि सरकार का है। हमें ऐसा कोई भय नहीं है कि एक दिन ऐसा आएगा जब इस देश पर अल्पसंख्यकों का कब्जा हो जाएगा। हमें केवल एक ही डर है कि हमने यानि देश ने आजादी के बाद जिस तरह से समरसता का ,समन्वय का देश बनाया था वैसा देश अब शायद बचा नहीं है। आज हमारा देश इंद्रधनुष के रंगों वाला देश नहीं है ,आज देश को एक रंग में रंगने की बेशर्म कोशिश हो रही है।
बात नए वक्फ बोर्ड क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में सुने जाने की है । सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम इसीलिए है क्योंकि वो सभीको सुनता है।सरकार सबको नहीं सुनती । लेकिन सरकार और सुप्रीम कोर्ट में एक बात सामान्य हैकि दोनों जगह बहुमत से फैसले किये जाते हैं। मेरा अंतर्मन कहता हैकि जिस तरीके से संसद में बहुमत इस नए क़ानून के पक्ष में खड़ा था उसी तरह से अदालत में भी बहुमत का फैसला आएगा तो सत्ता प्रतिष्ठान के पक्ष में आएगा। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केवल सरकार ही बदल सकती है। सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट बदल सकता है ,कोर्ट ने अतीत में अनेक प्रकरणों में या तो सरकार के फैसले बदले हैं या उनकी समीक्षा कराई है। ऐसी भी अनेक नजीरें हैं जहाँ सत्ता प्रतिष्ठान से माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को मैंने से इंकार कर दिया और नयी व्यवस्था दे दी। मै इस तरह की नजीरों की तफ्सील में नहीं जाऊंगा समझदार को इशारा काफी है। जब जिसका बहुमत होता है वो पार्टी और उसकीसरकार अपने ढंग से माननीय न्यायालय के फैसलों का सम्मान करते हैं ,करते आ रहे हैं।
नए वक्फ बोर्ड क़ानून को लेकर मेरी आशंकाओं के पीछे कुछ ठोस आधार है। पहले का संकेत मैंने किया ही और अब दूसरे मामले में मै सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस गवई को उद्घृत करना चाहता हूँ। जस्टिस गवई ने डॉ. आंबेडकर की जयंती के मौके पर कहा कि हमारे पास ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो गर्व के साथ कह सकते हैं कि हम यहां संविधान की वजह से पहुंचे हैं। जस्टिस गवई से पहले पूर्व सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ देश के प्रधानमंत्री के साथ गणपति वंदना कर चुके हैं। जिस देश का कोर्ट देश के प्रधानमंत्री के प्रति शृद्धानवत हो उस देश में कोई फैसला सरकार के खिलाफ भला आ सकता है क्या ?देश के प्रधानमंत्री के प्रति शृद्धा रखना क़ानून कोई जुर्म नहीं है किन्तु यदि देश का सुप्रीम कोर्ट सार्वजनिक रूप से पंत प्रधान की वंदना करता है तो वो आपत्तिजनक है।
बहरहाल आने वाले दिनों में आप रोजाना वक्फ बोर्ड कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई देखिये, सुनिए और फिर बताइये की मै गलत हूँ या सौ फीसदी सही ?मै उन लोगों में से हूँ जो इस देश की पंच परमेश्वर न्याय व्यवस्था पार यकीन रखते हैं। फिर चाहे वो पंच परमेश्वर मुंशी प्रेमचंद का हो या मुंशी नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी का।