वैज्ञानिकों ने की सोलर कोरोना की खोज, धरती पर फैले कोरोना से है एकदम अलग

होनोलुलु (हवाई): जब दुनिया कोरोना वायरस (Coronavirus) की महामारी से जूझ रही है, हवाई यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोनॉमी (आईएफए) के शोधकर्ताओं ने सौर कोरोना (Solar Corona) का अध्ययन किया और सोलर कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र का पता लगाया. सोलर कोरोना यानी सूर्य का बाहरी वातावरण जो अंतरिक्ष में फैला होता है. सूर्य की सतह से निकलने वाले आवेशित कणों की इस धारा को सौर पवन कहा जाता है और ये पूरे सौर मंडल में फैल जाते हैं. 3 जून को एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में IFA के छात्र बेंजामिन का एक अध्ययन प्रकाशित हुआ. जिसमें कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र के आकार को मापने के लिए पूर्ण सूर्य ग्रहण के पर्यवेक्षणों का उपयोग किया.

कोरोना को पूर्ण सूर्य ग्रहण(total solar eclipse) के दौरान आसानी से देखा जाता है, जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के ठीक बीच में होता है और सूर्य की चमकदार सतह को रोकता है.

पूर्ण सूर्य ग्रहणों को देखने के लिए ये शोधकर्ता संवेदनशील वैज्ञानिक उपकरणों को साथ दुनिया भर में घूमे. और इन सूर्यग्रहणों का बारीकी से अध्ययन करने पर कोरोना को परिभाषित करने वाली भौतिक प्रक्रियायों के रहस्य से पर्दा उठा. पिछले दो दशकों में हुए 14 ग्रहणों के दौरान कोरोना की ली गई तस्वीरों का अध्ययन किया गया.

अध्ययन में पाया गया कि कोरोनल चुंबकीय क्षेत्र लाइनों का पैटर्न बेहद संरचित है. समय के साथ ये पैटर्न बदलता रहता है. इन परिवर्तनों की मात्रा निर्धारित करने के लिए, बोए ने सूर्य की सतह के सापेक्ष चुंबकीय क्षेत्र कोण को मापा. न्यूनतम सौर गतिविधि की अवधि के दौरान, कोरोना के क्षेत्र को भूमध्य रेखा और ध्रुवों के पास सूर्य से लगभग सीधे निकला, जबकि यह मध्य-अक्षांशों पर कई कोणों में निकला. जब सौर गतिविधियां ज्यादा थीं तो कोरोनल चुंबकीय क्षेत्र बहुत कम संगठित और ज्यादा रेडियल था. ये सूर्य का कोरोना फिलहाल पृथ्वी पर फैले कोरोना वायरस से बिलकुल अलग है. पृथ्वी पर फैले कोरोना वायरस से संक्रमित मामलों की संख्या बढ़कर 2.28 लाख हो गई, जबकि मरने वालों का आंकड़ा 6500 से अधिक हो गया है.

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