प्रदेश की राजधानी और झीलों के शहर में बूंद-बूंद के लिए तड़प रहे लोग, 3 दिन में एक बार नहाते हैं.

कोरोना कर्फ़्यू में लोग परेशान है. मजदूरी मिल नहीं रही. खाने-पीने को हुए मोहताज़

भोपाल: कोरोनाकाल में लोगों का बुरा हाल है. संक्रमित लोग और उनके परिजन हर पल ठीक होने कामना कर रहे है. जो संक्रमण से बचे है वो भी डर के साये में जी रहे है. कई लोगों के पास खाने के लिए भोजन तक नहीं है.  राजधानी भोपाल में तो लोग पानी के लिए भी तरस रहे है. भोपाल से सटे सूखीसेवनिया के एकता नगर में लोग पिछले 15 सालों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. पिछले 15 सालों से यहां लोगों को जीवन यापन के लिए पानी खरीदना पड़ता है. सुबह 7 बजे से पानी के टैंकरों के आने का सिलसिला जारी रहता है. करीब 1200 की आबादी वाले इस गांव में प्रतिदिन लगभग 20 टैंकरों की खपत होती है. लोगों ने बताया कि हैण्ड पम्प तो यहां है लेकिन वो भी सूख चूके हैं.

ग्रामीणों से ऐंठे रुपए
ग्रामीणों का कहना है कि उनसे 2000 रुपये लेकर पाइपलाइन की सप्लाई भी की गई है. लेकिन इस पाइपलाइन में सिर्फ बारिश के मौसम में आधे घण्टे के लिये पानी आता है. बाकी पूरे साल लोग पानी खरीदकर इस्तेमाल करते हैं. स्थानीय लोग बताते है कि सरपंच को उन्होंने महीनों से नहीं देखा. ऐसे में आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कैसे लोगों को ठगा गया है.

विधायक जी बातें करते हैं सिर्फ
इतना ही नहीं स्थानीय लोगों ने ये भी बताया कि यहां उनके बीच विधायक रामेश्वर शर्मा जी तो आए लेकिन वो भी खानापूर्ति कर बाते बनाकर चले गए. लोगों ने अपनी समस्या बताते हुए बताया कि पानी की समस्या इस कदर है कि लोग जहां भीषण गर्मी में 2 से 3 दिन के अंतराल पर नहाते हैं. यहां तो पीने के लिए भी पानी नसीब नहीं होता है.

पानी की कमी से होगी मौत
यहां की महिलाओं का कहना है कि लॉकडाउन में मजदूरी नहीं मिल रही है. खाने की सोचें या पानी की इसलिए हम लोग अभी बिना पानी के खाना भी बनाने से बचते है. कपड़े भी मुश्किल से साफ कर पाते हैं. लोगों का कहना है कि कोरोना से तो नहीं लेकिन पानी के लिए जरुर मर जायेंगे. लोगों के हालात ऐसे है कि खाने-पीने दोनों के लिए तरस रहे है. स्थानीय लोगों को अब स्थानीय नेताओं से भी भरोसा उठ गया है. अब देखना होगा झीलों के इस शहर में यहां इन लोगों की मदद करने को कौन आगे आता है.

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