खुद करियर को लेकर कन्फ्यूज्ड थे, बार-बार सब्जेक्ट बदले; अब स्टूडेंट्स की काउंसलिंग करते हैं, सालाना 10 लाख है टर्नओवर

झारखंड के गढ़वा जिले के रहने वाले आलोक तिवारी एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिताजी टीचर हैं, इस वजह से झारखंड के अलग-अलग शहरों में उनकी पोस्टिंग होती रही और आलोक भी एक के बाद एक स्कूल बदलते गए। हजारीबाग से ग्रेजुएशन करने के बाद आलोक ने चेन्नई से मास्टर्स की पढ़ाई की। नेहरू युवा केन्द्र में जॉब भी लग गई, लेकिन उनका मन नहीं लगा और एक साल बाद ही नौकरी छोड़ दी। 2012 में उन्होंने करियर काउंसलिंग का स्टार्टअप शुरू किया। अभी तक वे 50 से 60 हजार स्टूडेंट्स की काउंसलिंग कर चुके हैं। और हर साल 10-12 लाख रुपए टर्नओवर जेनरेट कर रहे हैं।

सब्जेक्ट सेलेक्शन चैलेंजिंग टास्क रहा

35 साल के आलोक की लाइफ में काफी उतार-चढ़ाव रहा है। पहले ग्रेजुएशन के वक्त सब्जेक्ट चयन को लेकर असमंजस की स्थिति और फिर उसके बाद करियर को लेकर कन्फ्यूजन। उन्होंने पहले केमिस्ट्री से ग्रेजुएशन का फैसला लिया, लेकिन अगले साल ही मन ऊब गया। कुछ दिनों तक वे अपसेट भी रहे, फिर इकोनॉमिक्स से बैचलर्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद बैंकिंग की तैयारी के लिए रांची चले गए, लेकिन वहां भी उनका मन नहीं लगा। फिर आर्मी में जाने के लिए SSB की तैयारी की, लेकिन इसमें भी कामयाबी नहीं मिली।

एक स्कूल में करियर काउंसलिंग की क्लास के दौरान बच्चों के साथ आलोक तिवारी।
एक स्कूल में करियर काउंसलिंग की क्लास के दौरान बच्चों के साथ आलोक तिवारी।

करियर को लेकर युवाओं के बीच असमंजस की स्थिति बड़ा मुद्दा है

करियर को लेकर अगर-मगर की स्थिति के बीच आलोक को एक दिन अखबार में चेन्नई के राजीव गांधी यूथ डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के बारे में जानकारी मिली। जिसमें यूथ एम्पावरमेंट को लेकर एक कोर्स में दाखिला के लिए इश्तेहार छपा था। आलोक को यह कोर्स अच्छा लगा, फीस भी कम थी। इसलिए उन्होंने तय किया कि मास्टर्स की पढ़ाई यही से करेंगे और दाखिला ले लिया। आलोक के लिए यह टर्निंग पॉइंट रहा। उन्होंने यूथ एम्पावरमेंट और स्किल डेवलपमेंट पर फोकस किया। इस दौरान उन्हें अहसास हुआ कि सब्जेक्ट सिलेक्शन और करियर को लेकर युवाओं के बीच असमंजस की स्थिति बड़ा मुद्दा है। सही गाइडेंस के आभाव में युवाओं का ज्यादातर वक्त जाया हो जाता है।

2010 में आलोक ने मास्टर्स की डिग्री हासिल की। और उसी साल नेहरू युवा केंद्र में नौकरी लग गई। उन्हें यूथ के बीच काम करने का मौका मिला। एक साल बिहार और झारखंड में काम किया। यहां भी उन्हें स्टूडेंट्स के बीच वही परेशानी देखने को मिली। ज्यादातर बच्चे तय नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें आगे क्या करना है? ग्रामीण इलाकों में तो यह परेशानी और ज्यादा थी। आलोक को लगा कि इनके लिए कुछ करना चाहिए। ऐसे बच्चों के लिए एक प्लेटफॉर्म होना चाहिए जिससे उन्हें सही वक्त पर सही गाइडेंस मिल सके।

साल 2011 के अंत में आलोक ने नौकरी छोड़ दी और नेशनल यूथ नेटवर्क के बैनर तले करियर काउंसलिंग का काम शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने गढ़वा में एक महिला कॉलेज में अपना कार्यक्रम किया। करीब 250 स्टूडेंट्स ने उसमें पार्टिसिपेट किया। ये कार्यक्रम सफल रहा। स्टूडेंट्स और उनके पेरेंट्स की तरफ से पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला। उसके बाद कई पेरेंट्स ने व्यक्तिगत रूप से आलोक को फोन कर एप्रिशिएट किया और अपने बच्चों के करियर के लिए उनसे कंसल्ट करना शुरू कर दिया।

तस्वीर 2011-12 की है। आलोक ने पहली बार करियर काउंसलिंग को लेकर एक कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित किया था।
तस्वीर 2011-12 की है। आलोक ने पहली बार करियर काउंसलिंग को लेकर एक कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित किया था।

शुरुआत में फंड जुटाने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा

आलोक बताते हैं कि शुरुआत में स्कूल और कॉलेजों में करियर काउंसलिंग का कार्यक्रम आयोजित करता था। इसमें स्टूडेंट्स अच्छी-खासी संख्या में भाग लेते थे, लेकिन बहुत कम ही स्टूडेंट पैसे देकर गाइडेंस लेने के लिए तैयार होते थे। तब स्कूल भी पेड प्रोग्राम को लेकर बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाते थे। कभी-कभी लगता था कि इस सेक्टर में करियर के लिहाज से कुछ खास नहीं है, लेकिन दूसरी तरफ इस बात से तसल्ली मिलती थी कि समाज और युवाओं के लिए कुछ बेहतर कर रहा हूं।

इसके बाद हमने झारखंड के अलग-अलग शहरों में करियर काउंसलिंग को लेकर प्रदर्शनी लगाना शुरू किया। उस दौरान कुछ पेरेंट्स ने दिलचस्पी दिखाई और अपने बच्चों से हमें मिलवाया। उन्होंने हमें पेमेंट भी किया। कई स्टूडेंट और पेरेंट्स की तरफ से मुझे फोन भी आने लगे थे। आलोक कहते हैं, ये मेरे स्टार्टअप के लिहाज से टर्निंग पॉइंट रहा। मुझे एहसास हो गया कि अगर सही लोकेशन को टारगेट किया जाए तो इस सेक्टर में बेहतर स्कोप है।

धीरे-धीरे एक के बाद एक स्कूलों से टाइअप करते गए

आगे चलकर 2013 में झारखंड सरकार के साथ आलोक को काम करने का मौका मिला। उन्होंने सरकार के साथ मिलकर करियर हेल्पलाइन नामक एक अभियान चलाया। इसके माध्यम से हजारों स्टूडेंट्स के साथ उन्हें इंटरैक्शन का मौका मिला। ट्राइबल वर्ग के बच्चों के बीच भी उन्होंने काम किया। इसी बीच उन्हें डीएवी स्कूल में बतौर करियर काउंसलर काम करने का ऑफर मिला। वहां वे वीकली बच्चों की क्लास लेते और स्कूल की तरफ से उन्हें पेमेंट मिलता था।

आलोक की टीम ने अभी 35 से 40 स्कूलों के साथ करियर काउंसलिंग को लेकर टाइअप किया है।
आलोक की टीम ने अभी 35 से 40 स्कूलों के साथ करियर काउंसलिंग को लेकर टाइअप किया है।

इसके बाद कारवां बढ़ता गया। एक के बाद एक बिहार और झारखंड के कई स्कूल उनसे जुड़ते गए। कुछ स्कूलों में टीचर्स को ट्रेनिंग और गाइड करने के लिए भी उन्हें ऑफर मिला। अभी करीब 35 से 40 स्कूल-कॉलेजों के साथ उनका टाइअप है। इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से कई स्टूडेंट्स व्यक्तिगत रूप से भी उनसे जुड़े हैं।

आलोक कहते हैं कि कोरोना के पहले हमारे ज्यादातर प्रोग्राम ऑफलाइन मोड में ही होते थे। हम लोग स्कूलों में जाकर बच्चों की काउंसलिंग करते थे, लेकिन पिछले साल जैसे ही लॉकडाउन लगा, हम भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट हो गए। अभी हर दिन 10 से 15 बच्चों के साथ हमारा ऑनलाइन इंटरैक्शन होता है। साथ ही जिन स्कूलों के साथ हमारा टाइअप है, उनकी भी ऑनलाइन काउंसलिंग क्लास लेते हैं।

कैसे करते हैं बच्चों को गाइड?

आलोक कहते हैं कि हमने तीन कैटेगरी में अपने प्रोग्राम को बांट रखा है। 10वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए हमने लक्ष्य नाम से प्रोग्राम रखा है। जिसमें हम एक-एक बच्चों की काउंसलिंग करते हैं। उनके इंटरेस्ट, उनकी स्ट्रेंथ और उनकी वीकनेस एनालिसिस करते हैं। फिर उसके हिसाब से हम उन्हें सजेस्ट करते हैं कि उन्हें आगे किस सब्जेक्ट का चयन करना चाहिए। उसमें करियर के लिहाज से क्या स्कोप है और अभी से स्टेप बाई स्टेप क्या प्लानिंग होनी चाहिए।

इसी तरह 12वीं या इससे ऊपर के बच्चों के लिए हमने रणनीति नाम से प्रोग्राम लॉन्च किया है। जिसमें हम बच्चों को करियर ओरिएंटेड सब्जेक्ट सिलेक्शन और उसे अचीव करने की स्ट्रेटजी पर जोर देते हैं। किसी को डॉक्टर बनना है, किसी को इंजीनियर बनना है या खुद का स्टार्टअप शुरू करना है। तो उसके लिए क्या तैयारी होनी चाहिए? उसकी प्रॉसेस क्या है? किन चीजों की जरूरत होगी और क्या चैलेंजेज होंगे? इन टॉपिक्स पर हम फोकस करते हैं।

आलोक कहते हैं कि कई बच्चे टैलेंटेड होते हैं, लेकिन सही गाइडेंस के अभाव में उन्हें इधर-उधर भटकना पड़ता है।
आलोक कहते हैं कि कई बच्चे टैलेंटेड होते हैं, लेकिन सही गाइडेंस के अभाव में उन्हें इधर-उधर भटकना पड़ता है।

हमारा तीसरा प्रोग्राम पैरेंटिंग और केयरिंग को लेकर है, क्योंकि कई पेरेंट्स अपने बच्चों के करियर और पढ़ाई को लेकर परेशान रहते हैं। कई बच्चों का उनके माता-पिता के साथ बेहतर रिलेशन नहीं होता। कई बच्चे टेंशन में रहते हैं और कुछ बच्चे सुसाइड भी कर लेते हैं।

इसलिए हमारे एक्सपर्ट पेरेंट्स को बताते हैं कि अपने बच्चों के साथ कैसे फ्रेंडली बिहेव करें? बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा तो उसकी केयर कैसे करें? उसके इंटरेस्ट और बैकग्राउंड के लिहाज से कौन-कौन से फील्ड में करियर स्कोप है। उसकी तैयारी, प्रॉसेस और क्या कुछ फीस होगी। यह सब हम अच्छी तरह से समझाते हैं।

आलोक की टीम ने careervector.in नाम से एक वेबसाइट तैयार की है। जिस पर विजिट करने के बाद स्टूडेंट्स काउंसलिंग के लिए रिक्वेस्ट कर सकते हैं। वे बताते हैं, इसके बाद हमारी टीम फोन या वीडियो कॉल के जरिए उनसे बात करती है। फिर उनकी समस्या का समाधान करते हैं। और करियर को लेकर डिसीजन लेने में उनकी हेल्प करते हैं। इसको लेकर करीब एक दर्जन एक्सपर्ट की टीम हमारे साथ जुड़ी है। इतना ही नहीं, हमने वेबसाइट पर एक डैशबोर्ड भी तैयार किया है। जिसकी मदद से स्टूडेंट अपनी रेगुलर परफॉर्मेंस रिपोर्ट देख सकता है।

आलोक जल्द ही प्री-मैरिज और पोस्ट मैरिज को लेकर भी काउंसलिंग प्रोग्राम शुरू करने वाले हैं। ताकि रिश्तों को टूटने से बचाया जा सके। हाल के दिनों में इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं, क्योंकि कई लोगों के बीच आपस में सामंजस्य नहीं बन पाता है।

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