नीति आयोग ने राज्यों के प्रदर्शन की रिपोर्ट जारी की:मध्यप्रदेश ने 9 मानकों पर बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन सात में कमजोर प्रदर्शन से गिरी रैंकिंग

केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने गुरुवार को देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के प्रदर्शन के आधार पर तैयार रिपोर्ट ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) इंडेक्स एंड डैशबोर्ड 2020-21’ जारी की। रिपोर्ट में राज्यों को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण को लेकर किए गए कामों के 17 मानकों पर आंका गया है। यह रिपोर्ट का तीसरा साल है। केरल 100 में से 75 अंक हासिल कर दूसरे साल भी नंबर वन स्थान पर रहा है। हिमाचल और तमिलनाडु 74-74 अंक लेकर दूसरे नंबर पर रहे।

मप्र की रैंकिंग 3 पायदान नीचे आ गई। हालांकि उसका सूचकांक पिछले साल के 58 के मुकाबले 4 अंक बढ़कर 62 हो गया। लेकिन उसकी रैंकिंग बरकरार नहीं रह पाई। पिछले वर्ष दो राज्यों के साथ संयुक्त रूप से 14 वें स्थान पर था। हालांकि जिन मानकों के आधार पर यह सूचकांक तैयार होता है, उनमें से 9 में मप्र ने पिछले साल की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन आर्थिक और औद्योगिक विकास, क्वालिटी एजुकेशन समेत 7 सूचकांकों में प्रदर्शन पिछले साल से कमजोर रहा। जई ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए उसके फीडबैक के अंक 97.3 से गिरकर 47.4 ही रह गई। केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ 79 अंक के साथ अव्वल है।

तीसरे स्थान पर आंध्र, गोवा, कर्नाटक, उत्तराखंड
बिहार सबसे कम 52 अंक हासिल कर पिछले साल की तरह सबसे निचले स्थान पर आया है। खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में असम और झारखंड भी शामिल हैं। तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, उत्तराखंड, चौथे नंबर पर सिक्किम और पांचवें नंबर पर महाराष्ट्र रहे हैं। राज्यों में सतत विकास का लक्ष्य हासिल करने में में यह रिपोर्ट प्रारंभिक साधन है।

क्वालिटी एजुकेशन में भी मप्र पिछड़ा, 8वीं तक प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या घटी, 10वीं से पहले कई बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी

नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि औद्योगिक विकास के लिए पड़ोसी राज्यों के साथ माल ढुलाई की रोड कनेक्टिविटी को भी बेहतर बनाने के लिए भी मप्र में जरूरी प्रयास नहीं किए गए। इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में उसका प्रदर्शन नीचे आया। इसके लिए तय 10 अंकों में प्रदेश को महज 3.4 अंक ही मिले। रिपोर्ट कहती है कि मप्र में कक्षा एक से लेकर 8 वी तक बीच प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या में गिरावट आई है। इसके साथ 10 वीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ी है। इससे उसकी क्वालिटी एजुकेशन की रैंकिंग में गिरावट आई है।

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