क्यों भरोसे लायक नहीं है कोविड से मौतों के आंकड़ों में हेरफेर वाली स्टडी’, सरकार ने दिए ये तर्क, पढ़ें मामले में कब क्या हुआ

सरकार ने कहा कि कोरोना से होने वाली मौतों का अनुमान लगाने के लिए मैगजीन में सही स्टडी का इस्तेमाल नहीं किया गया.

केंद्र सरकार ने शनिवार को एक अंतरराष्ट्रीय मैगजीन की उस खबर को खारिज किया है, जिसमें दावा किया गया था कि देश में कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से 5 से 7 गुना तक ज्यादा है. मैगजीन के दावों का खंडन करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) ने इसके कई कारण भी बताए हैं. सरकार ने कड़े शब्दों में कहा कि गलत सूचना दी गई है, क्योंकि इस लेख (आर्टिकल) में प्रकाशक (Publisher) का नाम नहीं है, ऊपर से ये नतीजे उन अनुमानों पर निर्भर हैं जो मान्य नहीं हैं. सरकार ने कहा कि ये अनुमान पब्लिक हेल्थ रिसर्च से जुड़े सबूतों के बिना केवल आंकड़ों के आकलन पर आधारित है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान जारी कर बिना नाम लिखे ऐसे लेख पब्लिश करने के लिए प्रकाशक की निंदा की है. मंत्रालय ने ‘द इकॉनमिस्ट’ में प्रकाशित आर्टिकल को कयास लगाने वाला, बिना किसी आधार वाला और भ्रामक करार दिया है और कहा कि ये अनुमान गलत एनालिसिस और महामारी विज्ञान से जुड़े सबूतों (Epidemiological Evidence) के बिना केवल आंकड़ों के आकलन पर आधारित है.’ सरकार कोविड डेटा मैनेजमेंट के मामले में पारदर्शी है और हमारे आंकड़ों में कोई गड़बड़ी नहीं है, जबकि ये अनुमान अस्पष्ट और स्थानीय सरकार के आंकड़ों और कंपनी रिकॉर्ड के आकलन पर आधारित है.

‘पत्रिका ने नहीं दी स्टडी करने के तरीके की जानकारी’

मंत्रालय ने कहा कि देश में कोरोना से होने वाली मौतों का अनुमान लगाने के लिए मैगजीन में जिस स्टडी का इस्तेमाल किया गया है, वह किसी भी देश या क्षेत्र की मृत्युदर (Death Rate) का पता लगाने के लिए मान्य तरीका नहीं है, इसलिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. मंत्रालय ने कहा कि वैज्ञानिक डाटाबेस जैसे पबमेड, रिसर्च गेट आदि में इंटरनेट पर रिसर्च पेपर की तलाश की गई, जो उन्हें नहीं मिला, इसीलिए पत्रिका की ओर से स्टडी करने के तरीके की जानकारी भी उपलब्ध नहीं कराई गई है. मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि मैगजीन में एक और सबूत दिया गया है कि ये स्टडी तेलंगाना में बीमा दावों के आधार पर की गई, लेकिन इस तरह के अध्ययन पर कोई सहकर्मी-समीक्षा वैज्ञानिक डेटा उपलब्ध नहीं है.

‘अनुमान लगाने के तरीके हो चुके हैं कई बार गलत साबित’

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मैगजीन की रिपोर्ट में दो और रिपोर्टों को आधार बनाया गया है, जिन्हें चुनाव विश्लेषण समूह (Election Analysis Group) ‘प्राशनम’ और ‘सी वोटर’ ने किया है, जो कि चुनाव नतीजों के पूर्वानुमान और एनालिसिस के लिए जाने जाते हैं. वे कभी भी पब्लिक हेल्थ रिसर्च से जुड़े नहीं हैं. चुनाव नतीजों का अनुमान लगाने के लिए भी उनके तरीके कई बार सटीक नहीं रहे और गलत साबित हो चुके हैं. सरकार ने कहा कि पत्रिका ने ये खुद भी स्वीकार किया है कि इस तरह के अनुमानों को अस्पष्ट और अविश्वसनीय स्थानीय सरकारी आंकड़ों से, कंपनी के रिकॉर्ड से और मृत्युलेख (Obituary) जैसी चीजों के एनालिसिस से निकाला गया है.

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