20 सालों में 1.5 डिग्री तक गर्म होगी धरती! फिर दिखेगा कुदरत का कहर, हीटवेव और अत्यधिक गर्मी से परेशान होगा इंसान
‘जलवायु परिवर्तन 2021: भौतिक विज्ञान आधार’ रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले दो दशकों में पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री तक बढ़ सकता है. इससे हीटवेव और अत्यधिक गर्मी देखने को मिलेगी.
वैज्ञानिकों ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी. अब ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल’ (IPCC) ने चेतावनी दी है कि पृथ्वी दो दशकों में 1.5 डिग्री तक गर्म हो सकती है. इस वजह से मौसम में काफी बदलाव देखने को मिलेंगे. पैनल ने मानव गतिविधियों को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराया है. ये रिपोर्ट 2013 के आकलन की उत्तराधिकारी है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन और मानवीय गतिविधियों से पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाया गया है.
छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) ‘जलवायु परिवर्तन 2021: भौतिक विज्ञान आधार’ में कहा गया है कि दुनिया के हर क्षेत्र में मानव प्रभाव के कारण जलवायु में परिवर्तन हो रहे हैं. इस रिपोर्ट को IPCC के 195 सदस्य सरकारों द्वारा 26 जुलाई को एक वर्चुअल कार्यक्रम में मंजूर किया गया था और ये दो सप्ताह से अधिक समय से रोक कर रखी गई थी. लेकिन अब इसे जारी कर दिया है. इसमें अनुमान लगाया गया है कि आने वाले दशकों में सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन में वृद्धि देखने को मिलेगी.
1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर क्या होगा?
ये पहला मौका है जब संयुक्त राष्ट्र के IPCC ने विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में इन चरम घटनाओं की संभावना की निर्धारित की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर पृथ्वी पर हीटवेव में वृद्धि, लंबा गर्म मौसम और कम ठंडा मौसम देखने को मिलेगा. वहीं, अगर ग्लोबल वार्मिंग का स्तर 2 डिग्री सेल्सियस हो जाता है तो गर्मी इतनी बढ़ जाएगी कि कृषि और स्वास्थ्य के लिए इसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाएगा.
आने वाले वक्त में क्या होगा?
पृथ्वी का भविष्य और भी गंभीर नजर आ रहा है. अत्यधिक तापमान में वृद्धि का मतलब है कि धरती पर लगातार मौसम में परिवर्तन देखने को मिलेंगे. यदि उत्सर्जन की रफ्तार में कटौती नहीं होती है तो आने वाले वक्त में तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है. ऐसे में हर एक या दो साल में हीटवेव देखने को मिलेगा. इस रिपोर्ट में पाया गया है कि इस दौरान पृथ्वी के जमीन के नीचे जमी बर्फ पिघलने लगेगी. ग्लेशियर और आइस शीट भी पिघलने लगेगी. इस वजह से आर्कटिक में भी बदलाव देखने को मिलेगा.
रिपोर्ट में ये हैं पॉजिटिव बातें
हालांकि, इस रिपोर्ट में आशा की किरण भी हैं, क्योंकि कहा गया है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के जरिए ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करना अभी भी संभव है. इसका मतलब ये है कि अगर ऐसा कर लिया जाएगा तो पृथ्वी पर होने वाले ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम कर दिया जाएगा. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पर्यावरण परिवर्तन संस्थान के एसोसिएट डायरेक्टर और IPCC रिपोर्ट के लेखकों में से एक डॉ. फ्राइडेरिक ओटो ने कहा, अगर हम 2040 तक वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन को घटाकर नेट-शून्य कर देते हैं, तब भी 1.5 डिग्री तक पहुंचने का दो-तिहाई मौका है. वहीं, अगर हम सदी के मध्य तक वैश्विक स्तर पर नेट-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करते हैं, तो इसे हासिल करने का एक तिहाई मौका अभी भी है.