बाढ़ ने किसान की उम्मीदें भी डुबो दीं:शिवपुरी में 4500 से बढ़कर 16336 हेक्टेयर पहुंचा फसल नुकसान का आकलन; 125 नहीं 294 गांवों में सब तबाह हो गया
शिवपुरी में बाढ़ का कहर तो खत्म हो गया है, लेकिन गांव में घर के साथ-साथ फसल भी बह गई है। फसल नुकसान के आंकड़ें बढ़ते ही जा रहे हैं। बारिश में खेती से उसकी जो भी आशाएं थीं, उन पर पानी फिरता नजर आ रहा है। कृषि विभाग बाढ़ के दौरान जहां प्रारंभिक तौर पर 4500 हेक्टेयर फसल के नुकसान अनुमान लगा रहा था, वह आई सर्वे (आंखों देखी) में प्रारंभिक तौर पर ही अब 16,336 हेक्टेयर तक पहुंच गया है।
अधिकारी मान कर चल रहे हैं कि अभी यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है, क्योंकि जमीनी सर्वे के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। चार दिन से युद्धस्तर पर सर्वे जारी है। बावजूद, इसके कोई भी अधिकारी कोई विश्वसनीय आंकड़ा बताने को तैयार नहीं हैं। प्रारंभिक तौर पर जहां जिले के 125 गांव में नुकसान का आकलन किया जा रहा था, वह बढ़ कर 294 तक पहुंच गया है। अब देखना यह होगा कि वास्तविक नुकसान की तस्वीर उभर कर कब तक सामने आती है। अधिकारी अधिकतम हफ्ता भर में स्थिति साफ होने का आश्वासन दे रहे हैं। वहीं किसान 90% खेती खराब होने की बात कह रहे हैं।
मिट्टी में मिल गई मेहनत
किसानों का कहना है कि बाढ़ ने उनकी मेहनत और फसल मिट्टी में मिलाकर रख दी है। खेतों के कुएं में अब मिट्टी और रेत भर चुकी है। पिछले रोज बिची गांव के कुछ किसान अपनी पीड़ा सुनाने के लिए जब कलेक्ट्रेट पहुंचे तो डिप्टी कलेक्टर बीएम श्रीवास्तव ने उन्हें यह कहते हुए रवाना कर दिया कि वह अपना आवेदन आपदा कंट्रोल रूम में दे जाएं। दूसरी ओर पिपरसमा के एक किसान का कहना है कि उसकी करीब 40 बीघा जमीन में टमाटर की खेती की थी। खेतों में पानी भर गया। करीब 15 लाख का नुकसान हो गया। अभी भी आधी जमीन डूबी है।
किसान तक नहीं पहुंच रहे सर्वेयर
अधिकारी भले ही युद्धस्तर पर सर्वे होने की बात कह रहे हैं, परंतु सच्चाई यह है कि जब किसानों से इस सर्वे की हकीकत जानने का प्रयास किया गया तो किसानों ने स्पष्ट तौर पर स्वीकार किया कि अभी तक उनके पास कोई भी सर्वेयर नुकसान का आकलन करने के लिए खेत पर नहीं पहुंचा है।

अन्नदाता की पीड़ा
- हमने 40 बीघा जमीन पर टमाटर की खेती की थी, बारिश और बाढ़ में सब बह गई। इस बाढ़ में 15 लाख रुपए की लागत का नुकसान हो गया है। अब दोबारा पूरी लागत लगानी पड़ रही है। सर्वे के लिए अभी तक कोई नहीं आया है। – वीरू प्रजापति, किसान, पिपरसमां
- हमारी खेती खराब हो गई है, अभी तक कोई मदद नहीं पहुंची है। न ही कोई अभी तक खेतों में हुए नुकसान के सर्वे के लिए पहुंचा है। – राजेंद्र आदिवासी, किसान, बिची
- बाढ़ और बारिश के कारण सब कुछ मिट्टी में मिल गया है। खेतों में बने कुंओं में भी मिट्टी भर गई है, जिससे वह भी मिट्टी हो गए हैं। अब कुछ नहीं बचा है, बच्चों को पालें तो कैसे पालें।– रघुवीर आदिवासी, किसान, बिची