जलपुरुष का दावा:राजेंद्र सिंह- नदियों में खनन, मिट्‌टी के क्षरण और अफसरों की लापरवाही से आई अंचल में बाढ़

  • सिंध और चंबल में रेत खनन व मिट्‌टी का क्षरण नहीं रोका ताे परिणाम ज्यादा खतरनाक होंगे

जलपुरुष के तौर पर पहचाने जाने वाले मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह का मानना है कि ग्वालियर अंचल में जो बाढ़ आई, उसका मूल कारण नदियों के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ हाेना है। नदियों में होने वाले रेत खनन और उसके आसपास से लगातार मिट्‌टी का क्षरण होने से नदियों में उफान आ रहा है।

सिंध एवं चंबल नदी की बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में दौरा करने के बाद राजेंद्र सिंह ने दैनिक भास्कर संवाददाता से हुई बातचीत में कहा- ये दोनों नदियां लगातार खतरनाक स्थिति में पहुंचती जा रही हैं। क्योंकि, माफिया इनसे हर हद पार करके रेत का खनन कर रहे हैं, जो कि बाढ़ का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा नदी क्षेत्र के आसपास की मिट्‌टी लगातार क्षरण होने के कारण नदी के तल तक पहुंचकर जमा हो रही है। जिससे तल में पानी को जगह नहीं मिल रही। यदि देश की नदियों में ऐसे क्षरण की बात करें तो इसमें 28% मिट्‌टी क्षरण के साथ चंबल नदी सबसे ऊपर है। इसके साथ ही ग्वालियर अंचल के हरसी, ककैटो, अपर ककैटो एवं कोटा बैराज बांध से अफसरों ने लापरवाही के साथ जो पानी छोड़ा। वह भी अंचल में बाढ़ लाई और लोगों को तबाही का सामना करना पड़ा।

जलसंकट: सूखे और बाढ़ के क्षेत्र भी बढ़े
जल व्यवस्था पर लगातार काम करने वाले सिंह का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में देश के सूखे और बाढ़ क्षेत्र दोनों में ही बढ़ोत्तरी हुई है। देश में पहले की अपेक्षा 10 गुना सूखे क्षेत्र आज हैं, जो उप्र-मप्र से लगे बुंदेलखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना में स्थित हैं। ये हालात पहले सिर्फ राजस्थान में हुआ करते थे। ऐसे ही बाढ़ग्रस्त क्षेत्र 8 गुना बढ़े हैं। इनका बड़ा कारण हरियाली खत्म होना और नदियों के संरक्षण पर काम न होना है। बारिश एवं खेती का जो प्राकृतिक चक्र है उसे भी लोगों ने खुद की सुविधा से तय कर लिया है।

तैयारी: सामुदायिक जल प्रबंधन जरूरी
केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में जल-आपूर्ति के 72 प्रतिशत संसाधन सूखे की चपेट में हैं और 2030 तक देश में पानी की मांग लगभग दोगुनी हो जाएगी। ऐसी स्थिति में देशवासियों को गंभीर जलसंकट का सामना करना पड़ेगा। इसलिए सरकार को अभी से सामुदायिक विकेंद्रीकरण जल प्रबंधन पर काम कर देना चाहिए। बड़े-बड़े बांध और स्त्रोत तैयार करने के साथ ज्यादा फोकस ऐसा सिस्टम तैयार करने पर किया जाए। जिससे पानी को जमीन के अंदर भी रोका जा सके।

आंदोलन: पानी-जवानी यात्रा 2 अक्टूबर से
राजेंद्र सिंह का मानना है कि देश में पानी संकट के साथ जवानी (बेरोजगारी) और किसानी पर भी बड़ा संकट है। इसलिए वे 2 अक्टूबर से पानी-किसानी-जवानी चेतना भारत स्वराज्य यात्रा की शुरूआत कर रहे हैं। जो कि 26 नवंबर तक चलेगी। उन्होंने बताया कि मौजूदा केंद्र सरकार किसानों को बर्बाद करने के लिए जबरिया ढंग से अपना एग्रीमेंट (कृषि कानून) मनवाना चाहती है। ये एग्रीमेंट सरकार ने उद्योगपतियों के फायदे और किसानों की बर्बादी के लिए तैयार किया है। ऐसे ही देश में बढ़ रही बेरोजगारी चिंताजनक है।

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