बाघों की मौत के मामले में MP पहले नंबर पर

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में 6 सालों में 170 बाघों की मौत, कुछ का शिकार हुआ तो कुछ अपनी मौत मरे

टाइगर स्टेट’ कहलाने वाला मध्यप्रदेश बाघों की मौत के मामले में भी देश में नंबर 1 है। यहां पिछले 8 महीने में 31 बाघों की जान जा चुकी है। कुछ का शिकार किया गया, तो कुछ स्वाभाविक मौत मरे। इसमें सबसे ज्यादा 18 मौतें टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुई हैं। हाल ही में रातापानी सेंचुरी में भी 2 बाघों के शव मिले थे।

बाघों की मौत के मामले में पार्क प्रबंधन की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। वन्य प्राणी प्रेमी बाघों की मौत का कारण टाइगर रिजर्व में ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति को मानते हैं, जिनका वाइल्ड लाइफ प्रबंधन से कोई लेना-देना नहीं है।

टेरिटोरियल फाइट में जा रही बाघों की जान
PCCF वाइल्ड लाइफ आलोक कुमार का कहना है कि बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है, जिसकी वजह से उनमें टेरिटोरियल फाइट होती है। इसमें कमजोर बाघ घायल होकर या तो इलाका छोड़ देता है या मर जाता है। यह प्राकृतिक है। टेरिटोरियल फाइट रोकने के लिए सेंचुरी बनाकर नए इलाके की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है।

8 महीने में जितने बाघ मरे, पन्ना में उतनी संख्या बढ़ाने में 10 साल लगे
पन्ना टाइगर रिजर्व में फरवरी 2009 में बाघ विहीन हो गया था। यहां बाघों के कुनबे को बढ़ाने के लिए दो अलग-अलग टाइगर रिजर्व से बाघ-बाघिनों को शिफ्ट किया गया। इसके करीब ढाई साल बाद जंगल में अप्रैल 2012 में एक बाघिन ने 4 शावकों को जन्म दिया। इसके बाद यहां बाघों का कुनबा लगातार बढ़ता गया। वर्तमान में पन्ना में 31 बाघ हैं।

नई सेंचुरी की घोषणा, पुरानी ठंडे बस्ते में
बाघों की मौत का सही कारण नहीं मिलने और मौत को दबाने के लिए हर बार एक घोषणा कर दी जाती है। हाल ही में वन मंत्री विजय शाह ने बुंदेलखंड में नई सेंचुरी घोषित की, जबकि कांग्रेस सरकार की प्रस्तावित 9 सेंचुरी की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। इसमें सीहोर की सरदार वल्लभ भाई सेंचुरी भी शामिल है।

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