SC में MP के स्कूल फीस का मामला:50 हजार स्कूलों में से सिर्फ 1307 ने दी स्कूल फीस की जानकारी; सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से 6 हफ्ते का मांगा समय
इंदौर जागृत पालक संघ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को दो हफ्तों में स्कूलों की फीस संबंधी जानकारी लेकर वेबसाइट पर अपलोड करने के आदेश दिए थे लेकिन प्रदेश सरकार अब इसमें असमर्थ दिखाई दे रही है। इसके चलते प्रदेश सरकार ने 6 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देकर 6 हफ्ते का समय मांगा है। इसके पीछे कारण बताए गए हैं कि प्रदेश में 50 हजार से अधिक स्कूल हैं और पहली बार इस तरह का डाटा लिया जा रहा है जिसमे समय लगेगा। अब तक 1307 स्कूलों से ही जानकारी मिलने कि बात कही गई है। उधर जिला समिति के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करने और उसके निराकरण के लिए भी डेढ़ माह समय देने कि मांग की गई है।
गौरतलब है कि टयूशन फीस के नाम पर स्कूल संचालकों द्वारा पूरी फीस वसूली जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। इस मामले में इंदौर के जागृत पालक संघ के अध्यक्ष एडवोकेट चंचल गुप्ता, सचिव सचिन माहेश्वरी व अन्य सदस्य लंबे समय से पेरेंट्स के हित में लड़ रहे हैं। संघ ने दिसम्बर 2020 में सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। इस बीच कोरोना की दूसरी लहर के कारण लंबे समय तक सुनवाई नहीं हुई। फिर संक्रमण कम होने पर कोर्ट खुली और 19 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें कोर्ट ने पेरेंट्स को राहत देते हुए कहा कि किसी भी पेरेंट्स को स्कूल से कोई शिकायत है तो वह जिला समिति के सामने शिकायत करेगा। समिति को चार हफ्ते में इसका निराकरण करना होगा। पूर्व में पेरेट्स द्वारा की जाने वाली शिकायत पर जिला प्रशासन गंभीर नहीं होता था और अधिकार क्षेत्र नहीं होने का कहकर टाल देता था लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा। इस पर 23 अगस्त 2021 को मप्र सरकार ने सभी जिला कलेक्टर को आदेश दिए कि वह सभी प्राइवेट स्कूलों की फीस संबंधी जानकारी 3 सितम्बर तक उपलब्ध कराएं क्योंकि 4 सितम्बर को विभाग को जानकारी पोर्टल पर अपलोड करनी थी। जब सभी स्कूलों से जानकारी नहीं मिली तो फिर मप्र सरकार ने 6 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देकर 6 हफ्ते का समय मांगा।
यह है मामला
2020 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आदेश दिए थे कि प्राइवेट स्कूल केवल टयूशन फीस ले सकेंगे क्योंकि अधिकांश स्कूल टयूशन फीस की आड़ में पूरी फीस ले रहे थे लेकिन स्कूलों ने यह आदेश नहीं माना। इसके चलते जागृत पालक संघ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और तर्क रखा कि प्राइवेट स्कूल ट्यूशन फीस के आड़ में पूरी फीस वसूल रहे हैं। इसमें यह मांग भी रखी गई की प्रशासन शिकायत पर सुनवाई नहीं कर रहा। इसी दौरान प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने भी एक याचिका लगाई जिसमें मांग की गई कि सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान प्रदेश के लिए जो फैसला दिया है उसके अनुसार प्राइवेट स्कूल पूरी फीस में से सिर्फ 15 प्रतिशत की कटौती कर पेरेंट्स को देंगे। बाकी पूरी फीस पेरेंट्स को देनी होगी। एडवोकेट मयंक क्षीरसागर ने प्राइवेट अस्पतालों की इस मांग पर आपत्ति लेते हुए सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया कि पिछला सेशन पूरा बीत चुका है और प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने अपनी याचिका में स्वीकार भी किया है कि वो आदेश को स्वीकारते हुए इस अनुसार फीस ले चुके हैं इसलिए इस समय इस तरह की मांग अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट उक्त तर्कों से सहमत होते हुए स्कूल एसोसिएशन की याचिका निरस्त कर दी। कोर्ट ने आदेश दिया था कि स्कूलों को यह बताना होगा कि वह पेरेंट्स से जो फीस ले रहे हैं वह किस किस मद में ले रहे हैं, उसके अलग-अलग हेड बताना होंगे। यह जानकारी जिला शिक्षा समिति को स्कूलों से लेना होगी। इसके बाद स्कूल शिक्षा विभाग मप्र सरकार को इस जानकारी को दो हफ्ते में अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना होगा। साथ ही अपने आदेश में यह भी कहा है कि अगर किसी पेरेट्स को स्कूल से कोई शिकायत है तो वह जिला समिति के पास अपनी शिकायत दर्ज करा सकेगा और समिति को चार हफ्ते में इसका निराकरण भी करना होगा।
इंदौर के सिर्फ 1.88 फीसदी स्कूलों ने दी जानकारी
मामले में इंदौर जिले के कुल 3084 स्कूलों में से सिर्फ 1.88 फीसदी यानी केवल 60 स्कूल संचालकों व प्रदेश के कुल 51283 स्कूलों में से मात्र 1307 यानी 2.55 फीसदी स्कूलों ने अभी तक शिक्षा विभाग को जानकारी दी है। यह जानकारी मप्र शासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गई है।