खुद्दार कहानी:फरीदाबाद की ऋतु की नई पहल; बुटीक के बचे हुए कपड़ों से नए कपड़े बनाकर देशभर में गरीबों को भेजती हैं

कहते हैं हर छोटा बदलाव, बड़ी सफलता का हिस्सा होता है। इसकी मिसाल दी है फरीदाबाद की रहने वाली ऋतु सिंह ने, जो बुटीक के बचे हुए कपड़ों और कतरनों से जरूरतमंद बच्चों और बूढ़ों के लिए कपड़े, बैग सहित कई जरूरत की चीजें बना कर देशभर में भेजती हैं।

 

ऋतु पिछले 4 साल से ऐसा कर रही हैं। शुरुआत उन्होंने टेलर और बुटीक से कपड़े मांग कर की, लेकिन उनकी इस अनोखी पहल को जानने के बाद देश के कई हिस्सों से लोग उन्हें कपड़े भेजते हैं, जिससे ऋतु कुछ महिलाओं की मदद से स्लम और अनाथालय के बच्चों और वृद्धाश्रम की महिलाओं के लिए कई जरूरत की चीजें बनाती हैं। सबसे खास बात ये है कि इनका कोई NGO नहीं है और न ही किसी संस्था से जुड़ी हैं। वे ये सारे काम खुद ही करती हैं जिसे वो ‘नयी सोच’ नाम देती हैं।

आज की खुद्दार में जानते हैं ऋतु की कहानी, जिनकी एक छोटी सी पहल से कई लोगों को मदद मिल रही …

टेलर को कतरन फेंकता देख आइडिया आया

    

ऋतु टेलर और बुटीक से इकट्ठा किए हुए कपड़ों से बच्चों के लिए नए कपड़े तैयार करती हैं।

44 साल की ऋतु ने इंटरनेशनल बिजनेस में MBA करने के बाद कुछ साल फैशन इंडस्ट्री में काम किया। सोशल वर्क में उनका रुझान शुरू से रहा। ऋतु बताती हैं वो कई सालों से समाज सेवा से जुड़े काम कर रही हैं।

ऋतु कहती हैं, मैं अपनी बेटी को रोज स्कूल के लिए बस स्टैंड छोड़ने जाती थी। पास में एक टेलर की दुकान थी। अक्सर मैं देखती थी कि उसकी दुकान में बचे हुए कतरन का ढेर रखा रहता था। एक दिन मैंने उस टेलर से पूछा कि वो इस कपड़े का क्या करते हैं ? उसने कहा कि कचरे में फेंक देते हैं। मुझे लगा अगर एक टेलर इतने कपड़े फेंकता है तो हर दिन ऐसे कितने बचे हुए कपड़े फेंके जाते होंगे। मैंने सोचा कि ये सब नए कपड़े ही हैं और अगर इन्हें जोड़ लिया जाए, तो कुछ नया डिजाइन तैयार करके हम फिर से इस्तेमाल में ला सकते हैं। यहीं से मुझे कतरन से कपड़े बनाने का आइडिया आया।

उसके बाद ऋतु आस-पास के बुटीक और टेलर से बचे हुए कपड़े इकट्ठा करने लगीं। उन बचे हुए कपड़ों से अलग-अलग चीजें बनाकर जरूरतमंद लोगों में जाकर बांटने लगीं।

अनाथ आश्रम के बच्चों और वृद्धाश्रम की महिलाओं के लिए काम करती हैं

वृद्धाश्रम की महिलाओं के लिए ब्लाउज, बैग और कई जरूरत की चीजें भी बनाती हैं

ऋतु बताती हैं कि सबसे पहले उन्होंने उसी टेलर से बचे हुए कपड़ों से पाउच बनवाया और फिर लोगों में बांट दिया। ऐसे ही वो कई और टेलर से अलग-अलग तरह के ड्रेस और बैग बनवाने लगीं और जरूरतमंद बच्चों को गिफ्ट करने लगीं। धीरे-धीरे उन्होंने शहर के अनाथ आश्रम, वृद्धाश्रम और स्लम एरिया में जाना शुरू किया। वो बताती हैं, “मुझे लोगों की मदद करने में काफी खुशी मिलने लगी। मैं ज्यादा से ज्यादा कपड़े बनाने लगी और आश्रम के बच्चों को जाकर बांटने लगी। बच्चों के अलावा मैं वृद्धाश्रम की महिलाओं के लिए ब्लाउज, बैग और उनके जरूरत के हिसाब से और भी चीजें बनाकर भेजने लगी। जिसका रिस्पांस बहुत अच्छा मिलने लगा और इस तरह मैंने अपना काम बढ़ाया।

ओडिशा के जलंधर पटेल के वृद्धाश्रम के लिए भी ऋतु काम करती हैं। वहां की बुजुर्ग महिलाओं के लिए ब्लाउज और कुछ फोल्डर बनवाकर उन्हें फरीदाबाद से ओडिशा भेजती हैं। इसके अलावा वो कई आश्रम और अनाथालय के बच्चों-बूढ़ों की जरूरत की चीजें बनवाकर देश के कई हिस्सों में भेजती हैं।

सोशल मीडिया से बहुत मदद मिली

ऋतु दिल्ली और फरीदाबाद के कई स्लम और अनाथालय के बच्चों के लिए भी कपड़े तैयार करती हैं।

करीब 4 साल से ऋतु कतरन से नई चीजें बनाकर लोगों की मदद कर रही हैं। उनके दोस्तों के कहने पर उन्होंने उन्हें सोशल मीडिया पर ‘नयी सोच’ नाम से एक पेज बनाया है। जिस पर पोस्ट देखने के बाद कई लोग उनकी मदद के लिए सामने आने लगे। ऋतु बताती हैं, टेलर्स और बुटीक के अलावा, एक-दो मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स ने भी अपने यहां बचने वाले कपड़े मुझे भिजवाए हैं। अब मेरे पास देश के अलग-अलग हिस्सों से कपड़े आने लगे। हाल ही में गुजरात, मुंबई और दिल्ली से कई लोगों ने मुझे कपड़े भेजे हैं। कई फैशन डिजाइनर ने भी बचे हुए कपड़े भिजवाए हैं। जिनका मैं क्रिएटिव इस्तेमाल कर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाऊंगी।

ऋतु का कहना है कि वो इस काम में किसी और की आर्थिक मदद नहीं लेती हैं। उन्होंने सिलाई के लिए चार और महिलाओं को काम दिया है जो उनकी मदद करती हैं। वे बताती हैं, मेरे साथ कुछ महिलाएं काम करती हैं। वे भी जरूरतमंद हैं और अपने घरों में सिलाई का काम करती थीं। इससे उनकी थोड़ी-बहुत कमाई हो जाती है और मुझे अच्छे कपड़े मिल जाते हैं। ज्यादातर टेलर, इन कतरनों को जोड़कर फिर से कपड़े सिलने का सिरदर्द नहीं लेते, लेकिन ये महिलाएं बहुत ही मेहनत से नए डिजाइन के कपड़े तैयार करती हैं।

50 से ज्यादा बच्चों के लिए तैयार कर चुकी हैं कपड़े

ऋतु अब तक 50 से भी ज्यादा स्लम एरिया और अनाथालय के बच्चों के लिए कतरन से तैयार नए कपड़े बनवाकर पहुंचा चुकी हैं।

ऋतु अब तक 50 से भी ज्यादा स्लम और अनाथालय के बच्चों को कतरन से तैयार नए कपड़े बनवाकर पहुंचा चुकी हैं। ‘एसओएस विलेज’ संगठन के बच्चों के लिए कपड़े बनवाकर दिए हैं। ऋतु बताती हैं, “मैंने फरीदाबाद और सरिता विहार के दो-तीन अनाथ आश्रमों में भी बच्चों के लिए कपड़े बनवाकर भेजे हैं। फरीदाबाद में कई स्लम एरिया हैं, जहां में अक्सर जाती हूं और बच्चों के लिए इस तरह से तैयार कपड़े देकर आती हूं। नए कपड़ों को देखकर बच्चों के चेहरे पर जो खुशी होती है, उससे दिल को सुकून मिलता है। ऐसा नहीं है कि मैं सिर्फ दूसरे बच्चों को ही ये कपड़े दे रही हूं। मैं अपने बच्चों के लिए भी इन्हीं कतरनों से कपड़े बनवाती हूं।”

ऋतु अपने इस काम को ‘नयी सोच’ का नाम देती हैं। उनके इस काम के बारे में जानने के बाद, कई लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। ऋतु बताती हैं मुझे किसी तरह की कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती, न ही मैंने कोई NGO बनाने के बारे में सोचा है। मेरा इरादा सिर्फ और सिर्फ लोगों की मदद करना है और वो मैं इसी तरह से करती रहूंगी।”

बच्चों को फैशन इंडस्ट्री से होने वाले प्रदूषण पर क्लास भी देती हैं

ऋतु स्कूलों में बच्चों को टेक्सटाइल इंडस्ट्री से होने वाले प्रदूषण की जानकारी देने के लिए क्लास भी लेती हैं।

हममें से कई लोगों को फैशनेबल और ट्रेंडी कपड़ों का काफी क्रेज होता है। आज कल लोगों को कपड़े जरूरत के लिए नहीं बल्कि फैशन के लिए चाहिए होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि दुनिया में प्रदूषण के मामले में फैशन इंडस्ट्री टॉप 10 में शामिल है। आपको बता दें हर एक टी शर्ट या जीन्स को बनाने में ही हजारों लीटर पानी बर्बाद होता है।

इसलिए आज हर किसी को निजी स्तर पर इस विषय में सोचने की जरूरत है। जरूरी नहीं कि हम कुछ बड़ा ही करें, छोटे-छोटे प्रयास भी पर्यावरण के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। ऋतु सिर्फ ‘नयी सोच’ के जरिए सिर्फ समाज सेवा ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी काम कर रही हैं।

ऋतु कहती हैं, “मैंने कई सालों तक फैशन इंडस्ट्री के लिए काम किया है इसलिए मुझे हर खूबसूरत कपड़े के पीछे पर्यावरण को कितना नुकसान होता है, इसकी भी जानकारी है। मुझे खुशी है कि मैं अपने काम से नेचर को भी फायदा पहुंचा रही हूं। मैं सिर्फ बच्चों को कपड़े ही नहीं देती बल्कि कई स्कूल में क्लास भी लेती हूं जहां बच्चों को टेक्सटाइल इंडस्ट्री से होने वाले प्रदूषण के बारे में बताती हूं। जिससे उनमें नेचर के बारे में समझ बढ़ती है और वो खुशी से इन कपड़ों को पहनते हैं।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *