क्लाइमेट चेंज से दुनिया के हर कोने में तबाही शुरू हो गई है, लेकिन सरकारें आम आदमी को धोखा दे रही हैं

इन दिनों रोज-रोज कुछ खबरें छप रही हैं, जिनमें लिखा रहता है- COP26, ग्लास्गो मीटिंग, कार्बन एमिशन, नेट जीरो, ग्लोबल वॉर्मिंग, क्लाइमेट चेंज; लेकिन पूरी खबर देख जाओ कुछ साफ-साफ समझ आता नहीं है।

इसलिए हमने रिपोर्ट्स के साथ एक्सपर्ट से बात की। मालूम हुआ कि क्लाइमेट चेंज पर पूरी दुनिया की सरकारें आम आदमी को मूर्ख बना रही हैं, जबकि इंसानियत खतरे में है, लोग मरना शुरू हो चुके हैं।

और ये सब 2050 के बाद शुरू नहीं होगा, ऑलरेडी शुरू हो चुका है-

क्लाइमेट चेंज से बीमारी का पहला मामला आ गया है
3 दिन पहले कनाडा में 70 साल की महिला को सांस लेने में परेशानी हुई। डॉक्टर्स के पास पहुंची तो वो बोले कि क्लाइमेट चेंज के कारण ऐसा हो रहा है। डॉक्टर ने कहा कि पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में भले आज लोग गंभीर न हों, लेकिन सच ये है कि क्लाइमेट चेंज से भारी बीमारी फैलेगी।

अब सवाल उठता है कि इस तबाही का जिम्मेदार कौन है?
हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। अगर 2050 तक इसे 500 करोड़ टन तक नहीं रोका तो तबाही तय है। फिलहाल दुनिया को इस खतरे में डालने के लिए टॉप 5 देशों में अमेरिका, चीन और भारत शामिल हैं। हवा में सबसे ज्यादा, 28%,कार्बन अमेरिका घोलता है।

अब अमेरिका ये दिखावा कर रहा है कि वो दुनिया को बचाना चाहता है। असल में अभी जो गर्मी का मौसम बीता उसमें अमेरिका में जो हीट वेव आई, उसी को देखकर अमेरिका की हालत बिगड़ी है। जर्मनी में जो बाढ़ आई उसने यूरोप को हिला दिया है।

इसीलिए इन दिनों ये हो-हल्ला सुनाई दे रहा है। जर्मनी के ग्लास्गो में G-20 समिट का उद्देश्य यही था। सभी बड़े कार्बन छोड़ने वाले देशों से 2050 तक नेट जीरो करने को कहा जा रहा है। नेट जीरो मतलब देश में जितना भी कार्बन निकले, वो पूरा का पूरा वो देश खुद ही खत्म भी कर दे।

भारत की सरकार ने नेट जीरो के लिए 2070 का टारगेट रखा है
भारत कह रहा है कि हमने दुनिया को तबाह नहीं किया है। बीते 170 साल में कुल कार्बन हवा में घोलने में हमारी सिर्फ 4% की भागीदारी है, इसलिए हम 2070 तक नेट जीरो करेंगे; लेकिन ये बातें भी सिर्फ बातें हैं, क्योंकि कार्बन को एब्जॉर्ब करने वाले जंगल 2017 से 2019 के बीच 66,000 हेक्टेयर कम हो गए हैं। यानी, भारत के कुल जंगल का 5% कम हो गया है। ऐसे में कार्बन कैसे कम होगा।

पर्यावरण कर्मी पीपल बाबा जैसे लोगों का मानना है कि दुनिया की सरकारें क्लाइमेट चेंज पर काम करने के नाम पर आम आदमी को मूर्ख बना रही हैं।

आज जानना जरूरी है में इतना ही। आप कोई सुझाव देना चाहें तो भास्कर ऐप में स्टोरी के नीचे सुझाव सेक्शन में दे सकते हैं।

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