मास्टरस्ट्रोक या मजबूरी? 358 दिन बाद किन वजहों से मोदी सरकार ने Farm Laws को लिया वापस
पिछले साल 26 नवंबर को कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन शुरू हुआ. उसके एक साल पूरा होने से ठीक एक हफ्ते पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया.
गुरु नानक जयंती के इस प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में जैसे ही कहा कि मैं क्षमा मांगता हूं, हर किसी के जेहन में यही सवाल उमड़ा कि किस बात की क्षमा. अगले ही वाक्य में पीड़ा, दर्द, बेबसी और मलाल के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐतिहासिक घोषणा के साथ उसको समझा दिया. पीएम ने कहा, सच्चे मन और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी
जिसके कारण दीये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए. आज गुरुनानक देव जी का प्रकाश पर्व है. ये समय किसी को भी दोष देने का नहीं. आज मैं आपको पूरे देश को बताने आया हूं कि हमने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है
पिछले साल 26 नवंबर को कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन शुरू हुआ. उसके एक साल पूरा होने से ठीक एक हफ्ते पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया. अब सवाल है कि ये प्रधानमंत्री मोदी का मास्टरस्ट्रोक है या मजबूरी. अगर ये फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मास्टरस्ट्रोक है तो इसकी वजहें ये गिनी जा सकती हैं:
- प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के हाथों से बड़ा मुद्दा छीन लिया है.
- एक झटके में प्रधानमंत्री मोदी किसानों की नाराजगी दूर करने वाले नेता की तरह दिखने लगे.
- यूपी, उत्तराखंड और पंजाब चुनावों से ठीक पहले किसानों की बात मानकर उन्होंने चुनाव में बीजेपी के खिलाफ आक्रोश को शांत करने की कोशिश की है.
- जिस कृषि कानून पर सहयोगी दल बीजेपी को छोड़कर चले गए थे, उनकी एनडीए में घरवापसी का दरवाजा भी खोल दिया है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले से बीजेपी के तमाम नेताओं ने राहत की सांस ली है.
बीजेपी को ये लग सकता है कि कृषि कानून को वापस लेना पीएम मोदी का मास्टरस्ट्रोक है लेकिन उनकी माफी, उनके फैसले को विपक्ष चुनावी मजबूरी मान रहा है. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने पीएम मोदी के इस फैसले को चुनावी मजबूरी करार दिया है. तो अगर प्रधानमंत्री मोदी ने 14 महीने बाद अपने तीन कानून के फैसले को वापस लिया तो कौन सी मजबूरी हैं:
- सबसे बड़ी मजबूरी यूपी का चुनाव है जहां पश्चिमी यूपी में इस बार किसान बेहद नाराज दिख रहे हैं.
- वैसे ही पंजाब में बीजेपी के लिए अपने वजूद को बचाने के लिए जरूरी था कि कृषि कानून खत्म हो.
- हरियाणा में भी किसान इतने नाराज दिखे कि कई जगहों पर बीजेपी नेताओं का कार्यक्रम ही नहीं होने दिया.
प्रधानमंत्री मोदी किसानों से बातचीत का स्वागत पहले दिन से कर रहे थे. वो किसानों के कहने पर कृषि कानून को दो साल तक रोकने के लिए भी तैयार थे लेकिन अब वापस लिया जाना उनकी इन्हीं मजबूरियों को दिखाता है जिसपर विपक्ष के तंज टंगे हुए हैं. कृषि कानूनों की वापसी में मजबूरी और मास्टरस्ट्रोक के बीच पीएम मोदी का एक अफसोस भी है कि काश, ऐसा नहीं होता.
क्यों किसानों को समझा नहीं पाई सरकार?
आप लोग ये जानना चाहते हैं कि आखिर कृषि कानून पर सरकार किसानों को कैसे नहीं समझा पाई. तो उसके कुछ जवाब इस तरह हैं:
- किसानों में अपनी जमीन छीन जाने का डर पैदा हुआ, जिसको सरकार दूर नहीं कर पाई.
- किसानों में ये बात भी घर कर गई कि उनकी खेती पर कॉरपोरेट का कब्जा हो जाएगा.
- उस पर से, मंत्रियों-सांसदों तक ने जिस तरह किसानों का मजाक उड़ाया, उनको मवाली तक कह दिया, उससे किसानों की नाराजगी बढ़ी.
- लखीमपुर हिंसा कांड ने माहौल और बिगाड़ दिया.
- शिरोमणि अकाली दल जैसे पुराने सहयोगी के अलग होने से ये संदेश गया कि कृषि कानून ठीक नहीं है.
- कमोबेश सभी विपक्षी दल किसानों के पक्ष में आ खड़े हुए.
एक तरफ राजनीतिक खींचतान और दूसरी तरफ किसानों का कृषि कानून के खिलाफ घमासान. ऐसे में सरकार किसानों से बातचीत करके किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई. ऐसा लग रहा था कि किसानों का आंदोलन चाहे जितना लंबा खिंचे, सरकार अपने फैसले से इंच भर नहीं हटेगी. लेकिन शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला कर लिया.