किसानों ने कहा- सरकार ने हम पर अत्याचार किए, बदनाम किया; पहले फैसला होता तो हमारे साथियों की जान नहीं जाती
दिल्ली से 100 किलोमीटर दूर राजस्थान के जयसिंहपुर खेड़ा बॉर्डर पर पिछले करीब एक साल से किसान आंदोलन कर रहे हैं। यहां किसानों ने सड़क को ही अपना घर बना लिया है, सब्जियां भी उगानी शुरू कर दी हैं। शुक्रवार सुबह जेसे ही प्रधानमंत्री मोदी की ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की, यहां बैठे किसानों को खुशी का ठिकाना नहीं रहा। किसी ने अपने घरवालों को कॉल किया तो कोई आंदोलन में शहीद हुए अपने साथियों को याद करके भावुक हो गया।
इन सब के बीच अभी भी किसानों को सरकार की बात पर भरोसा नहीं है। उनका कहना है कि जब तक तीनों बिल संसद में कानूनी रूप से रद्द नहीं होते, तब तक हम यहीं रहेंगे। कोटा के रहने वाले किसान कश्मीर सिंह कहते हैं,’ मैं सालभर से यहां हूं। अब हमने यहां खेती भी शुरू कर दी है, पेड़-पौधे लगाए हैं। प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद आज हमने खुशी मनाई है, लेकिन सरकार जब तक लिखित में नहीं देगी, हम यहां से जाने वाले नहीं हैं। अब हम यहीं रहेंगे अपने घर वालों से बोल कर आए हैं कि फैसला आने के बाद ही लौटेंगे।
ग्रामीण किसान मजदूर समिति के प्रदेश महासचिव सतवीर सिंह का कहना है कि मोदी सरकार का फैसला अच्छा है। देर आए दुरुस्त आए। इस आंदोलन में सैकड़ों किसानों की शहादत हुई है। ये उनकी शहादत का ही परिणाम है। सरकार इस मामले में लेट हो गई। अगर समय पर निर्णय लेती तो शहादत ना होती। संसद में जल्द से जल्द इन कानूनों की वापसी होनी चाहिए। जिन किसानों पर केस दर्ज हुए हैं, वो तुरंत रद्द किए जाएं।
वे कहते हैं कि सरकार MSP की गारंटी को लेकर जो कमेटी बनाई है, उसमें किसानों को साथ लेकर स्थिति स्पष्ट करे। हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि जल्द संसद में किसान कानूनों की कानूनी रूप से वापसी होगी।
वहीं गंगानगर के रहने वाले 80 साल के अजमेर सिंह का कहना है कि जिस दिन किसान मोर्चा ने यहां धरना शुरू किया था, मैंने पहले दिन आकर अपना ट्रैक्टर-ट्रॉली रोका था। आज मुझे आठ महीने हो गए हैं। मेरे घर में बेटे-पोते हैं, जो अपना काम कर रहे हैं। अगर मैं यहां से चला जाऊंगा तो सारा काम खराब हो जाएगा। अगर सरकार ने फैसला किया तो घर जाने का मन करेगा, नहीं तो बिना फैसले के हम घर जाकर क्या खाएंगे। आज घर पर मैंने बात की, परिवार वालों ने मुझे बधाई दी है।
सीकर के रहने वाले 82 साल के रामेश्वर सिंह कहते हैं कि मोदी जनता की सेवा के लिए नहीं है वो जनता को धोखा देने के लिए है। हम गर्मी, सर्दी, धूप और बरसात सब सहन करते हैं। हम मोदी की तरह एअरकंडीशनर में नहीं बैठते। आज मोदी को यह समझ आ गया है कि किसानों के साथ सरकार ने बुरा बर्ताव किया है। अभी कानूनों की वापसी नहीं हुई है, धोखा देने वाली सरकार है, ये लोग आगे कुछ भी कर सकते हैं। हमें तो तभी भरोसा होगा तब तीनों कृषि कानूनों के रद्द होने वाले पेपर पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाएंगे।
वहीं अलवर से आए सुभाष चंद बताते हैं कि मैंने इस आंदोलन में अपने 45 साल के दोस्त सरजीत को खो दिया। आज अगर सरजीत जिंदा होता तो बहुत खुश होता। पिछले साल कड़ाके की सर्दी के बाद भी लगातार वह आंदोलन में आता रहा। वह बीमार भी हुआ, लेकिन आंदोलन में आना जारी रखा। इसी वजह से उसकी मौत भी हो गई। सरजीत की पत्नी और बच्चे हर रोज मोदी सरकार को कोसते हैं। हमने किसानों की याद में यहां स्मारक बना रखा है।
वे कहते हैं कि सरकार ने हम पर बहुत अत्याचार किया है। किसान आंदोलन में बाहर से पैसा आने का आरोप लगाकर हमें बदनाम किया।