पंजाब में जातिवाद-2 …… गांव के जट गुरुद्वारों में दलितों का रिप्रिजेंटेशन नहीं; ‘चन्नी को सीएम बनाना कांग्रेस का पॉलिटिकल स्टंट’
जट्टा सरेआम तूतां, धक्का करदां हैं। जट्टा तू तो ओपनली फोर्स करदा हैं।’ ये है मशहूर पंजाबी गाना जिसके यूट्यूब पर करीब 14 करोड़ व्यूज है। इस गाने का मतलब है कि- ‘जट्ट व्यक्ति सरेआम गुंडागर्दी करता है, जट खुअलेआम ताकत के दम पर अपनी मनमर्जी करता है।’ पंजाबी म्यूजिक में जट प्राइड पर आधारित ऐसे दर्जनों गाने हैं, जिनमें जातिवाद, गन कल्चर, गुंडा कल्चर कूट-कूटकर भरा है।
अब एक दूसरे गाने के बोल सुनिए- ‘गबरू चमार मुंडे रेंडा पड़दां, हर साल कॉलेज विच टॉप करदां’। इस गाने में दलित समुदाय से आने वाले लड़के की तारीफ की गई है, कि कैसे वो विदेश जाकर पढ़ाई पर फोकस कर रहा है। इश्क प्यार में पड़े बिना सख्त लौंडे की तरह पढ़ाई पर फोकस करता है और एसपी या डीसी बनता है। दलित प्राइड पर आधारित इस तरह के गाने भी पंजाब में काफी बनने लगे हैं। रूप लाल धीर, गिन्नी माही जैसे कई सारे गायक दलित समुदाय पर आधारित गाने ही बनाते हैं। पंजाबी फोक म्यूजिक में यही बंटवारा पंजाब के सामाजिक बंटवारे की तस्वीर है।
पंजाब में जातिवाद की रिपोर्टिंग के दौरान हमने पंजाब के 5 जिलों का दौरा किया। इस सीरीज की पहली रिपोर्ट में हमने आपको रूपनगर जिले के संधुआं, अमृतसर के भराड़ीवाल, तरन तारन के नुशहरा डल्ला, मांसा के मट्टी और संगरूर के झल्लूर गांव जाकर पंजाब में जातिवाद की जमीनी हकीकत बताई। पंजाब के गांव में जाति के आधार पर गुरुद्वारे, श्मशान, धर्मशाला, रहने के इलाके, बर्तन, पहनावा तक बंटा हुआ है। अब इस सीरीज की दूसरी रिपोर्ट में हम दलितों के प्रतिनिधित्व की बात करेंगे। गांव की पंचायत और गुरुद्वारों में किस जाति का कितना प्रतिनिधित्व है, इसकी पड़ताल करेंगे।
पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर राजीव लोचन बताते हैं कि ‘चमार वर्ग के लोगों ने पिछले 10-12 सालों में अपनी पहचान को लेकर गर्वान्वित महसूस करना शुरू कर दिया है और ये पंजाबी फोक म्यूजिक में भी दिखता है। यूट्यूब पर ऐसे कई सारे गाने मिल जाएंगे, जिस में दलित प्राइड को उभारकर पेश किया गया है। दलित लोगों, प्रतीकों का इन गानों में जमकर इस्तेमाल किया गया और इन समुदायों में ये गाने जमकर मशहूर भी हुए।
प्रोफेसर राजीव लोचन बताते हैं कि- ‘जब यूट्यूब नया-नया आना शुरू हुआ तो पंजाब के जाट लड़कों ने जाट प्राइड के गाने बनाए, जिसका भाव हुआ करता था कि ‘मैं जाट हूं, मैं कुछ भी कर सकता हूं। मैं बलवान हूं। मैं बंदूक चला दूंगा। लड़की को चंडीगढ़ ले जाऊंगा।’ वहीं एससी समुदाय के लोगों ने जब गाने बनाए तो उसमें दलित प्रतीकों को उभार दिया गया- ‘मैं आगे बढूंगा, मेरा समाज आगे बढ़ेगा। बाबा साहेब अंबेडकर के प्रति हमारा सद्भाव है।’
2011 की जनगणना के मुताबिक पंजाब में 31.9% दलित आबादी है। इसमें से 19.4% दलित सिख हैं और 12.4% हिंदू दलित हैं। वहीं कुल दलित आबादी में से करीब 26.33% मजहबी सिख, 20.7% रविदासी और रामदासी, 10% अधर्मी और 8.6% वाल्मीकी समाज से आते हैं।
जट गुरुद्वारों में कोई दलित प्रतिनिधित्व नहीं
रूपनगर जिले का संधुआं गांव पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी का विधानसभा क्षेत्र में आता है। जैसे ही हमने संधुआं गांव में प्रवेश किया तो सामने बड़ा सा गुरुद्वारा दिखा। गुरुद्वारे के सामने ही हमें मिल गए करीब 80 साल के जगीर सिंह। जट समुदाय से ताल्लुख रखने वाले जगीर सिंह से हमने पूछ लिया कि गांव में पंचायत से लेकर गुरुद्वारों तक दलितों का प्रतिनिधित्व कैसा है? जवाब में उन्होंने कहा- ‘दलितों और जटों के बीच हमारे गांव में कोई फर्क नहीं है।’
हमें जब ये बात हजम नहीं हुई तो हमने पूछ लिया- आपके पीछे जो जट गुरुद्वारा है उसकी प्रबंधक कमेटी में किस जाति से कितने लोग है? दलितों का कितना प्रतिनिधित्व है? जवाब मिलता है- ‘10 मेंबर हैं और सारे जट ही हैं।’ इसी जवाब में दलितों के प्रतिनिधित्व की सारी हकीकत छिपी हुई है। इसके बाद हम दलितों वाले गुरुद्वारे में भी गए, वहां पर भी लोगों ने बताया कि उस गुरुद्वारे की प्रबंधक कमेटी में भी ज्यादातर दलित ही हैं। इसी तरह पंचायत में भी 1 सरपंच और 7 पंच हैं। मौजूदा सरपंच जट समुदाय से आते हैं, वहीं 7 में से 3 पंच दलित समुदाय से हैं।
करीब-करीब यही तस्वीर बाकी के 4 जिलों के 4 गांव की भी है। जट गुरुद्वारों में दलितों का प्रतिनिधित्व ना के बराबर है। वहीं पंचायत में भी दलितों का प्रतिनिधित्व आरक्षण के नियमों के मुताबिक करीब एक तिहाई ही है। पंजाब में जातिगत बंटवारे की पहली रिपोर्ट में हमने आपको संगरूर जिले के झल्लूर गांव के बलविंदर की कहानी बताई थी कि कैसे गांव की रिजर्व कोटे की जमीन का ठेका पाने के लिए दलितों को सवर्णों के खिलाफ लड़ाई लड़नी पड़ी। अधिकार पाने की इस लड़ाई के दौरान झल्लूर के बलविंदर सहित सैकड़ों लोगों ने अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक के दरवाजे खटखटाए लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई।
‘पूरा सिस्टम सवर्णों से भरा है, हमारी सुनने वाला कोई नहीं’
बलविंदर बताते हैं कि- ‘पूरा सिस्टम सवर्णों से भरा पड़ा है। अधिकारों की लड़ाई लड़ने के बाद उल्टा हमारे ही उपर केस डाले गए। हमें ही परेशान किया गया। अधिकारियों से लेकर नेताओं तक पूरा सिस्टम ही हमारे खिलाफ रहा।’ हमने बलविंदर से पूछा कि अब तो पंजाब के सीएम ही एससी समुदाय से बन गए हैं क्या अब कोई बदलाव दिखेगा? उन्होंने कहा- ‘चन्नी के सीएम बन जाने से सिस्टम रातों-रात नहीं बदल जाएगा। ये सारा पॉलिटिकल स्टंट है, जिससे जमीन पर कुछ नहीं बदलेगा। अफसरशाही से लेकर लेकर राजनेता अभी भी वही हैं, जो पहले थे।’
‘दलितों को जट गुरुद्वारों में प्रमुख नहीं बनाते’
मजदूरों और किसानों के बीच काम करने वाले मजदूर मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता विजय कुमार बताते हैं कि- ‘संवैधानिक आरक्षण दलितों को हासिल हैं, लेकिन वो कई स्तरों पर ठीक से लागू नहीं होता। कई जगह जट्ट लोग दलितों को मोहरे के रूप में चुनाव में खड़ा करते हैं, लेकिन असल पावर अपने ही पास रखते हैं। अगर कोई ये मानता है कि एक दलित व्यक्ति को सीएम बनाए जाने से दलितों का सशक्तिकरण होगा, तो ये बात सही नहीं है। गुरुद्वारों में दलितों को कहीं भी नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया जाता है। गुरुद्वारा जो कि सामाजिक एकता का प्रतीक होना चाहिए, वहीं पर सबसे ज्यादा बंटवारा और भेदभाव दिखता है।’
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के गुरुद्वारों का संचालन करने वाली सर्वोच्च कमेटी है- ‘शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC)’। गुरुद्वारों के नियम-कायदे बनाने और लागू करने की जिम्मेदारी इसी कमेटी की होती है। हमने कमेटी की अध्यक्ष जागीर कौर से पूछा कि SGPC में कितने सदस्य जट समुदाय से आते हैं? और कितने सदस्य दलित और अन्य समुदायों से आते हैं? जवाब में जागीर कौर ने कहा कि- ‘ना हम पूछते हैं कि दलित कौन है? ना हम पूछते हैं कि सिख कौन है? हम सिर्फ ये देखते हैं कि व्यक्ति को सिख धर्म का ज्ञान कितना है? वो पंथ के रास्ते पर कितना चलता है।’
इस जवाब में ही पंजाब के जातिवाद की हकीकत छिपी हुई है। अगर जातिवाद पंजाब की हकीकत है तो इसे दूर करने की जिम्मेदारी भी पंजाब के लोगों और यहां के संस्थाओं की है। ऐसे में राजनीति से लेकर धार्मिक संस्थाओं तक समाज के हर तबके का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना इनकी जिम्मेदारी है। पंजाब में जातिवाद रिपोर्टिंग सीरीज की तीसरी किस्त में हम आपको पंजाब पर रिसर्च करने वाले कुछ समाजशास्त्रियों, इतिहासकारों से मिलवाएं और पंजाब के जातिवाद की जड़ों में उतरने की कोशिश करेंगे और हाल में आए बदलावों को समझेंगे।