दोस्ती के 74 साल …. 1971 में भारत के लिए आधी दुनिया से लड़ गया था रूस, 15 तस्वीरों में देखें दोनों देशों की दोस्ती
एक तरफ ओमिक्रॉन का कहर और दूसरी ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा। ये वो वक्त है जब पूरी दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष अपने-अपने देशों में डटे हुए हैं, लेकिन पुतिन ने भारत से वायदा किया तो किया। वो 6 दिसंबर को एक दिनी भारतीय दौरे पर हैं। ये दोस्ती कोई नई नहीं है, इस दोस्ती की नींव 21 दिसम्बर 1947 को पड़ी थी। तब से अब तक कई बार दुनिया में उथल-पुथल मची, लेकिन भारत और रूस के रिश्ते नहीं बिगड़े। आइए इस 74 साल की दोस्ती की गहराई को 15 तस्वीरों में नापते हैं।
1947: आजादी मिले 4 महीने गुजर गए थे, लेकिन भारत को उसका असली दोस्त अब तक नहीं मिला था। 21 दिसम्बर 1947, दिन था- रविवार। एक रूसी पति-पत्नी अपने बच्चों को लिए दिल्ली हवाईअड्डे पर उतरे। उनका नाम था- किरिल नोविकोव। इन्होंने ही भारत और रूस के अटूट रिश्ते की नींव रखी। ये आजाद भारत के पहले रूसी एंबेसडर थे।
1951: अजादी के सिर्फ 4 साल बीते थे, किरिल नोविकोव (बीच में) भारतीयों में ऐसे रच-बस गए थे जैसे वो यहीं के हों। ये फोटो तब की है जब उन्होंने अपने एक सेलिब्रेशन में भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को बुला लिया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद चले भी गए। ये मौका था रूस में हुई दुनिया की सबसे बड़ी मजदूरों की अक्टूबर समाजवादी क्रांति की 34वीं वर्षगांठ मनाने का।
1955: दोस्ती की मिठास बढ़ती जा रही थी। 8 साल हुए थे और पहली बार USSR मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष निकोलाई बुल्गानिन और निकिता ख्रुश्चेव (CPSU सेंट्रल कमेटी के मुख्य सचिव) खुद भारत आ गए। दोनों ने नई दिल्ली में बने हैदराबाद हाउस में नवंबर 1955 में कई दिन बिताए।
1955: ये दोनों कश्मीर घूमने भी गए। वहां इनके स्वागत में कश्मीरियों ने जुलूस निकाल दिया। जब वे श्रीनगर की सड़कों पर निकले तो सड़कें जाम हो गईं। सात साल बाद मौका आया तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस (सोवियत संघ) ने 22 जून 1962 को अपने 100वें वीटो से कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करके पाकिस्तान को बैकफुट पर ढकेल दिया।
1955: वक्त आ गया था इस दोस्ती को कागज पर उतारने का। रूसी मंत्री निकोलाई बुल्गानिन और निकिता ख्रुश्चेव ने उसी भारतीय दौरे में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिले। दोनों देशों के बीच राजनयिकों को बुलाया गया। दोनों देशों ने अलग-अलग तरीके से एक-दूसरे के साथ देने के लिए कई समझौते किए।
1960: भारत किसी को गाय गिफ्ट कर दे ये बात समझ आती है, लेकिन कोई और देश हमारे PM को गाय गिफ्ट कर दे, मतलब कि दोस्ती को गाढ़ा करने का एक भी मौका न छोड़ना। ये बात है 27 मार्च 1960 की। तब के PM जवाहरलाल नेहरू को रूस सरकार ने एक गाय गिफ्ट कर दी थी। जब सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव ने गाय की रस्सी नेहरू को थमाई तो वो तुरंत उसे चारा खिलाने लगे।
1966: भारतीय सरकार ने तय किया कि अब अगर देश को आगे बढ़ाना है तो उसे स्टील प्लांट लगाना ही पड़ेगा। पर प्लांट लगाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था न थी। भारत ने दोस्त रूस की ओर देखा, उसने तुरंत खास मदद भेजने का ऐलान कर दिया। नतीजा 1966 में तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बोकारो स्टील प्लांट की आधारशिला रखी।
1971: इस तस्वीर को जरा गौर से देखिए इस तस्वीर में इंदिरा गांधी और रूस के कद्दावर विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रॉमिको हाथ मिला रहे हैं। जानते हैं क्यों? एक ऐसे समझौते के लिए जिसके बाद भारत के लिए रूस आधी दुनिया से टकरा गया था। पूरे मामले को अगली तस्वीर के साथ देखिए तब मजा आएगा।
1971: हुआ ये था कि पाकिस्तान में बंगाली लोगों की हत्या हुई। भारत ने युद्ध छेड़ा, लेकिन अमेरिका ने भारत को विलेन कहना शुरू किया। UK, फ्रांस, UAE, टर्की, इंडोनेशिया, चीन और आधी दुनिया ने पाकिस्तान को सपोर्ट करना शुरू किया, लेकिन रूस ने समुद्री रास्ता रोककर अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों के पोत को भारत पर हमला करने से रोक दिया।
1984: रूस ने भारत को सिर्फ जंग के मैदान में ही नहीं बल्कि आसमान और अंतरिक्ष को फतह करने में भी साथ दिया। 1975 में पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण में और फिर 1984 में राकेश शर्मा के अंतरिक्ष यात्रा में भी रूस ने काफी मदद किया था। इस तस्वीर में भारत और सोवियत संघ (रूस) के अंतरिक्ष चालक दल के सदस्य साथ दिख रहे हैं।
1988: 1971 के बाद भारत और रूस की दोस्ती दुनिया भर के लिए मिसाल बन गई थी। दुनिया के दूसरे देश दोनों देशों की दोस्ती पर नजर लगानी शुरू कर दी। इसके बाद जब सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव आधिकारिक दौरे पर भारत आए तो प्रधानमंत्री राजीव गांधी उनका स्वागत करने सीधे एयरपोर्ट पहुंच गए थे। यह तस्वीर नवंबर 1988 नई दिल्ली की है।
1993: एक बार फिर से भारत के दौरे पर रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन आए। इस दौरान राष्ट्रपति भवन में एक स्वागत समारोह में भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन का स्वागत किया। यह तस्वीर उसी समय की है।
2000: ‘दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं’ कहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी समझते थे कि पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी से निपटने के लिए रूस जैसा एक यार तो पक्का ही साथ होना चाहिए। इसीलिए दोस्ती को मजबूत करने के लिए अक्टूबर 2000 में वाजपेयी और राष्ट्रपति पुतिन मिले। इस दौरान भारत और रूस के बीच सामरिक भागीदारी की घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए थे।
2007: अटल बिहारी वाजपेयी के बाद सरकार भले बदल गई हो पर भारत को लेकर पुतिन के प्यार में कोई कमी नहीं आयी। एक बार फिर पुतिन भारत आए और हिंदुस्तान को परमाणु ऊर्जा के लिए तकनीक और संसाधन देने का वादा किया। इस तस्वीर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह (बाएं से दाएं) दिख रहे हैं।
2014: नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने पर दुनिया भर में हाय तौबा मची कि भारत की यह सरकार अमेरिका के ज्यादा करीब है, लेकिन पुतिन को पता था भारत कहीं नहीं जाने वाला है। यही वजह है कि एक बार फिर जब पुतिन 2014 में भारत आए और अपने कलेजे से प्रधानमंत्री मोदी को लगाया तो आधी दुनिया के देश इस दोस्ती को देख जल गए। यह तस्वीर नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में 11 दिसंबर 2014 को ली गई।
2021: मामला कश्मीर का आया तो रूस ने आगे बढ़कर संयुक्त राष्ट्र में भारत की आवाज बुलंद की। अब ड्रैगन को जवाब देने के लिए रूस भारत को S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम भेज रहा है। रूस भारत को सुखोई Su-30MKI, जेट फाइटर का अपडेट वर्जन देता है, जिसका वह अपने देश की सुरक्षा के लिए भी इस्तेमाल करता है। इसलिए ये यात्रा बहुत जरूरी है।