भारत में राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों है?

 भारत में राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों है? ये 5 वजहें हैं इसका जवाब

विधि आयोग ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आखिर क्यों देश में राजद्रोह कानून को बनाए रखने की जरूरत है. रिपोर्ट में कुछ प्वाइंट्स बताए गए हैं.

देश में पिछले कुछ दशकों में नागरिकों के ऊपर राजद्रोह के मामलों की संख्या में अभूतपूर्व इजाफा होते हुए देखा गया है. राजनीतिक नेताओं से लेकर शिक्षाविदों और आम नागरिकों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक की राजद्रोह के कानून के तहत गिरफ्तारी हुई है. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि इस कानून के जरिए पत्रकारों और मीडिया घरानों पर भी राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है. हालांकिLaw Commission का कहना है कि राजद्रोह कानून को बनाए रखने की जरूरत है.

NCRB के आंकड़ों से एक चौंकाने वाला खुलासा भी हुआ है. पिछले कुछ सालों में राजद्रोह के मामलों में सजा की दर में 3% से 33% के बीच उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. यही वजह है कि राजद्रोह कानून को लेकर नागरिक समाज और सुप्रीम कोर्ट में हमेशा ही बहस होती रहती है. सुप्रीम कोर्ट कानून के दुरुपयोग को लेकर चिंता भी जाहिर कर चुका है. शीर्ष अदालत ने यहां तक कहा था, ‘अब समय आ गया है कि ये परिभाषित किया जाए कि राजद्रोह क्या है और क्या नहीं.’

क्यों राजद्रोह कानून बनाए रखने की जरूरत?

हालांकि, अब यहां ये सवाल उठता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट चिंतित है, लोग चिंतित हैं, वो नेता भी चिंतित हैं, जिन पर इसके तहत कार्रवाई हुई है, तो फिर लॉ कमीशन या कहें भारत के विधि आयोग ने अंग्रेजों के जमाने के इस कानून को अभी भी इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा में बनाए रखने की सिफारिश क्यों की है. हाल ही में लॉ कमीशन ने सरकार को अपनी 279वीं रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बताया है कि क्यों इस राजद्रोह कानून की जरूरत है. आइए इस कानून को बनाए रखने की वजहें जाना जाए.

(1.) भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए: आईपीसी का सेक्शन 124A के तहत राष्ट्र-विरोधी और अलगाववादी तत्वों से निपटा जाता है. सरकार को इस कानून के जरिए शक्ति मिलती है कि वह हिंसक और अवैध तरीके से जरिए सरकार गिराने वाले तत्वों से निपट पाए. इस संदर्भ में देखा जाए, तो सेक्शन 124A को बनाए रखना जरूरी है. सरकार इसके जरिए किसी भी खतरनाक मंसूबों को शुरुआत में ही खत्म कर पाती है. इससे देश की एकता और अखंडता की रक्षा सुनिश्चित होती है.

(2.) राजद्रोह को औपनिवेशिक विरासत बताकर खत्म करना वैध नहीं: लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि किसी कानून या संस्थान को औपनिवेशिक बताना अपने आप में पुरातन नहीं हो जाता है. इसके अलावा अगर किसी कानूनी प्रावधान का ऑरिजन औपनिवेशिक है, तो इसे सिर्फ इस आधार पर हटा देना वैलिड नहीं हो सकता है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि अक्सर कहा जाता है कि राजद्रोह का अपराध औपनिवेशिक विरासत है, जो उस जमाने पर आधारित हैं, जब इसे लागू किया गया. कानून का इतिहास भी बताता है कि इसे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया. हालांकि, इस आधार पर देखें तो पूरी भारतीय कानून प्रणाली का ढांचा ही औपनिवेशिक विरासत है. पुलिस फोर्स और ऑल इंडिया सिविल सर्विस का विचार भी ब्रिटिश काल के समय से ही आया.

(3.) हर देश में वास्तविकता अलग-अलग: आईपीसी की धारा 124A को सिर्फ इस आधार पर नहीं हटाया जा सकता है कि कई सारे देशों में ऐसा किया गया है. ऐसा करना बिल्कुल वैसा है, जैसे भारत की जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेना. दुनिया के कई सारे प्रमुख लोकतांत्रिक देशों में राजद्रोह के कानून में केवल दिखावटी बदलाव किए गए हैं.

(4.) अन्य कानूनों (जैसे आतंकवाद विरोधी कानून) की वजह से राजद्रोह कानून की जरूरत खत्म नहीं होती: आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विशेष कानून और आतंकवाद विरोधी कानून का इस्तेमाल देश में होने वाले अपराधों को रोकने के लिए किया जाता है. दूसरी ओर, IPC की धारा l24A कानून द्वारा स्थापित लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हिंसक, अवैध और असंवैधानिक रूप से उखाड़ फेंकने से रोकने का प्रयास करती है. हालांकि, बाकी के कानूनों का मतलब ये नहीं है कि आईपीसी की धारा 124ए के तहत बताए गए अपराध के सभी प्वाइंट्स उनमें कवर हो जाए.

(5.) आर्टिकल 19 (2) के तहत बोलने की आजादी को प्रतिबंधित करता है राजद्रोह: संविधान में आर्टिकल 19 (2) के तहत बोलने की आजादी है, लेकिन इसका ये तात्पर्य नहीं होना चाहिए कि ऐसे बयान दिए जाएं, जिससे देश या सरकार को नुकसान पहुंचे. इसलिए IPC की धारा l24A बोलने की आजादी को कुछ हद तक सीमित करने का काम करती है.

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