इकलौते बच्चे की परवरिश ….. अपने बच्चों को ऐसा धाकड़ बनाएं कि वो किसी भी चैलेंज से भिड़ जाएं

बदलते समय में जहां परिवार का ढांचा बदला है, वहीं अब बच्चों की संख्या भी कम हो रही है। जॉइंट फैमिली की जगह वर्किंग पेरेंट्स अब न्यूक्लियर फैमिली में रहने को मजबूर हैं। जिसका असर फैमिली प्लानिंग पर भी आया है। ज्यादातर कपल वर्किंग होने की वजह से अब सिंगल चाइल्ड की ही सोच रखते हैं। ऐसे में माता-पिता, नाना-नानी और दादा-दादी का सारा प्यार अकेले बच्चे को मिलता है, जो कई बार उन्हें जिद्दी बना देता है। ये बातें उम्र के साथ बढ़ती जाती हैं, जो बच्चे को जरूरत से ज्यादा सेंसिटिव और झगड़ालू तक बना सकती हैं। पैरेंट्स अपने सिंगल चाइल्ड की परवरिश कैसे करें, ये बता रही हैं लाइफ कोच, पीयूष भाटिया से।

इकलौते बच्चे की चुनौतियां, जिसे जानना पैरेंट्स के लिए जरूरी है

  • अपनी छोटी-छोटी बातें और खुशियां अपनी उम्र के बच्चों से शेयर न कर पाने की वजह से वे जल्दी मायूस हो जाते हैं।
  • इकलौते बच्चे की हर ख्वाहिश पूरी होती है, जो उन्हें जिद्दी और अन-सोशल बनाता हैं।
  • बच्चा हर जगह अटेंशन पाने की ख्वाहिश रखता है, ऐसा न होने पर अग्रेसिव हो सकता है।
  • अपनी चीजें किसी से शेयर न करने की वजह से वो सेल्फिश बन सकते हैं।
  • सिंगल बच्चे अपने घर में ऐसे किसी हमउम्र को नहीं पाते हैं, जिससे वे शेयरिंग,केयरिंग, लड़ना और मिलनसार होना सीख सकें।
  • ऐसे बच्चे स्कूल-ट्यूशन में भी बाकी बच्चों से घुलने-मिलने में परहेज कर सकते हैं।
  • पेरेंट्स का किसी दूसरे बच्चे को प्यार करना उन्हें नाराज करता है, वे चिढ़चिढ़े हो जाते हैं।
  • जब सिंगल बच्चों को घर पर डांट पड़ती है, तो उन्हें ये लगने लगता है कि पेरेंट्स उसे प्यार नहीं करते। कई बार बच्चा जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होकर ये सोचने लगता है कि वो बुरा है।
  • सिंगल चाइल्ड पैरेंट्स के झगड़ों के बीच उलझ जाता है। माता-पिता जब अपनी लड़ाई में एक-दूसरे से नाराज होते हैं, तब बच्चे को समझ नहीं आता कि वो क्या करे, जबकि भारी-बहन होने की वजह से वो लड़ाई भूल जाते हैं।
पेरेंटिंग पर लाइफ कोच पीयूष भाटिया के टिप्स

बच्चे की बेहतरी के लिए क्या करें पेरेंट्स?

पीयूष अपने पास आने वाले सिंगल चाइल्ड पैरेंट्स को कहती हैं कि छोटे-छोटे मौके सेलिब्रेट करने के लिए वे बच्चों के साथ अनाथालय या वृद्धाश्रम जाएं। इससे बच्चे को इस बात का एहसास होगा कि वो कितने खुशकिस्मत हैं।

उन्हें सोशल एक्टिविटीज में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें। अगर बच्चा इतना बड़ा है कि वो कैंपिंग पर जा सकता है, तो उसे जरूर भेजें, ताकि वो पेरेंट्स से लग रहकर अपने उम्र के बच्चों के साथ घुल-मिलकर रहना सीखें।

रिश्तेदारों के घर पर होने वाले हर फंक्शन में बच्चे को साथ ले जाएं और सभी बच्चों के साथ खेलने-घुलने के मौके दें। उन्हें घर से ये सिखाकर न ले जाएं कि जहां जा रहे हो, वहां चुपचाप एक जगह बैठना है।

पैरेंट्स अपने फ्रेंड्स और भाई-बहनों के बीच मेलजोल बनाए रखें, ताकि बच्चा मिलनसार बने।

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