Bahubali: छात्रनेता से एक सांसद तक बृजभूषण शरण सिंह का सफर, वह बाहुबली जिसे प्रधानमंत्री भी जेल में लिखते थे चिट्ठी

बृजभूषण शरण सिंह यूं तो 1991 में आनंद सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े और पहली बार सांसद चुने गए. 113,000 वोटों से हुई उनकी जीत गोंडा लोकसभा के लिए इतिहास है. उसके बाद 1993 में विवादित ढांचा गिराया गया, तो लालकृष्ण आडवाणी समेत जिन 40 लोगों को आरोपी बनाया गया, उनमें बृजभूषण भी शामिल थे.

30 मई 1996, तिहाड़ जेल में एक प्रभावशाली सांसद के पास तत्कालीन प्रधानमंत्री की चिट्ठी पहुंची. उसमें लिखा था, प्रिय बृजभूषण जी, सप्रेम नमस्कार. आपका समाचार मिला, नए सिरे से ज़मानत का प्रयास करना होगा, आप हिम्मत रखें, अच्छे दिन नहीं रहे, तो बुरे दिन तो निश्चित ही नहीं रहेंगे. आजन्म कैद की सज़ा काटने वाले सावरकर जी का स्मरण करें, पढ़ें, संगीत सुनें, खुश रहें, मैं शीघ्र आऊंगा. हारिये ना हिम्मत, बिसारिये ना हरि को नाम, जाहि विधी राखे राम, ताहि विधि रहिए. चिट्ठी लिखने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री का नाम है अटल बिहारी वाजपेयी. केंद्र में 13 दिनों की सरकार चलाने वाले अटल पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, जिस सांसद को उन्होंने ये बेहद भावुक और निजी तौर पर चिट्ठी लिखी थी, उनका नाम है बृजभूषण शरण सिंह.

उत्तर प्रदेश की वो लोकसभा सीट जो कभी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली राजनीतिक कर्मभूमि थी, उस सीट पर वाजपेयी के बाद बीजेपी को जीत की गारंटी दिलाने वाले नेता का नाम बृजभूषण शरण सिंह और ये सब यकीनन उस ताकत और रौब के दम पर मुमकिन हुआ, जिसे हम और आप बाहुबली कहते हैं. 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार यूपी के बलरामपुर से सांसद चुने गए. उसके बाद 1998 और 1999 में कांग्रेस के बाहुबली नेता रिज़वान ज़हीर ने बीजेपी उम्मीदवार को हराया. बीजेपी नेताओं के मन में इस बात की टीस थी कि प्रधानमंत्री वाजपेयी की पहली सियासी सीट पर कमल नहीं खिल रहा है. आख़िरकार पार्टी ने एक ऐसे नेता पर दांव लगाया, जो 1999 के लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही जेल से रिहा हुआ था. बीजेपी ने बहुत बड़ा दांव चला था, जिसका नतीजा किसी को नहीं मालूम था.

विवादित ढांचा गिराने के मामले में CBI ने बनाया आरोपी

बृजभूषण शरण सिंह यूं तो 1991 में आनंद सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े और पहली बार सांसद चुने गए. 113,000 वोटों से हुई उनकी जीत गोंडा लोकसभा के लिए इतिहास है. उसके बाद 1993 में विवादित ढांचा गिराया गया, तो लालकृष्ण आडवाणी समेत जिन 40 लोगों को आरोपी बनाया गया, उनमें बृजभूषण भी शामिल थे. CBI ने सबसे पहले उन्हें ही गिरफ्तार किया. इसी बीच राजनीतिक षड्यंत्रों की वजह से उन्हें 1996 में टाडा के तहत दिल्ली तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया. आरोप बहुत बड़ा था. 1992 में मुंबई के जेजे हॉस्पिटल शूटआउट में पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय और बृजभूषण को आरोपी बनाया गया था.

पुलिस के मुताबिक जेजे हॉस्पिटल में अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली के जिस शूटर को मारा गया था, वो दाऊद के बहनोई का हत्यारा था. दाऊद ने बदला लेने के लिए डॉन सुभाष ठाकुर और ब्रजेश सिंह को भेजा था. कल्पनाथ राय और बृजभूषण पर ये आरोप था कि उन्होंने दाऊद के भेजे गए शूटर्स की मदद की थी. हालांकि, इस संगीन आरोप में बृजभूषण को क्लीनचिट मिली. उसके बाद उन्होंने एक बार फिर राजनीति में अपने बाहुबल का दमखम दिखाना शुरू किया.

अखाड़े से राजनीति की रणभूमि तक

बृजभूषण की दबंगई का रंग पचास किलोमीटर दूर तक फैला था. जब वो टाडा के तहत तिहाड़ जेल में बंद थे, तब उनकी पत्नी केतकी देवी ने बीजेपी के टिकट पर गोंडा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. उन्होंने कांग्रेस के आनंद सिंह को 80,000 वोटों के बड़े अंतर से हराकर सबको चौंका दिया था. बीजेपी को अंदाजा हो चुका था कि बलरामपुर सीट को अगर वापस पाना है, तो बृजभूषण पर दांव लगाना ही होगा. 1999 में पार्टी ने बलरामपुर लोकसभा से उन्हें प्रत्याशी बनाया.

लगातार दो बार से बलरामपुर लोकसभा जीतने वाले समाजवाद पार्टी के बाहुबली नेता रिज़वान ज़हीर को बृजभूषण सिंह ने हरा दिया. 2004 में एक बार फिर बलरामपुर लोकसभा पर वो विजयी रहे. ये भारतीय जनता पार्टी में एक बाहुबली नेता का उदय था, जिसने पहलवानों के अखाड़े से लेकर सियासी रणभूमि तक अपनी ताक़त का एहसास कराया. पहलवानी से लेकर भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष तक और बीजेपी से लेकर समाजवादी पार्टी तक बाहुबली नेता बृजभूषण ने हर बार खुद को सियासी दुनिया का बाहुबली साबित किया है. उनकी जिंदगी के शुरुआती दिनों में एक भूचाल आ गया.

पारिवारिक दुश्मनी में तोड़ दिया गया घर

चार भाइयों की मृत्यु के बाद वो बहुत डर गए थे. हर वक्त एक अनजाना सा डर और असुरक्षा की भावना रहती थी. रिश्तेदारों को लगा कि बृजभूषण लगभग अकेले हैं. उन पर स्कूल जाते वक्त कई बार हमले भी करवाए गए. घरवालों ने उन्हें पढ़ने के लिए मामा के घर भेज दिया. इसी दौरान 16 साल की उम्र में उनका पैृतक घर पारिवारिक दुश्मनी में गिरा दिया गया. इस घटना के कुछ साल बाद बृजभूषण सिंह ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए एक बार फिर अपने गांव लौट आए. गांव आने के बाद एक दिन जब वो कॉलेज गए, तो एक घटना ने उनका पूरा जीवन बदल दिया.

गर्मी की छुट्टियों का वक्त था. ब्रजभूषण सिंह अपने गांव के पास वाले कॉलेज जा रहे थे. रास्ते में कुछ लड़कियों के साथ छेड़खानी हो रही थी. ब्रजभूषण ने विरोध किया और मनचलों से भिड़ गए. इस घटना ने उन्हें छात्र नेता के तौर पर स्थापित करना शुरू किया. पहलवानों वाली कद काठी के ब्रजभूषण को कुछ ही समय में युवाओं का भरपूर साथ मिला. 1979 में उन्होंने रिकॉर्ड मतों के साथ छात्रसंघ चुनाव जीता. यहीं से शुरू होता है छात्रनेता ब्रजभूषण के बाहुबली नेता बनने का सिलसिला.

मंदिर आंदोलन में हुए सक्रिय

1980 के दौर में पूर्वांचल के 8-10 जिलों में युवा नेता के तौर पर उनका नाम गूंजता था. कुश्ती, दंगल, दौड़ हो या घुड़सवारी. गांव-गांव में युवा उनके नाम पर जीत की शर्त लगाने लगते. 1987 में गन्ना समिति के चेयरमैन का चुनाव लड़ा और पहली बार में ही जीत गए. इसके बाद अपने राजनीतिक गुरु की सलाह पर उन्होंने लोकसभा चुनाव में जनता दल की मदद की. 1988 के दौर में वो पहली बार बीजेपी के संपर्क में आए और हिंदूवादी नेता की छवि के तौर पर ख़ुद को स्थापित करने लगे. बीजेपी के क़रीब आने के बाद बृजभूषण सिंह ने पहली बार विधान परिषद यानी MLC का चुनाव लड़ा, लेकिन 14 वोट से हार गए. हालांकि, इस हार के बाद वो कमज़ोर नहीं पड़े, बल्कि लोकप्रिय होते चले गए. क्योंकि, सामने रामजन्मभूमि आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा था.

गोंडा के साथ-साथ अयोध्या में भी साधु संतों के क़रीबी बन गए. महंत रामचंद्र परमहंस, महंत नृत्य गोपाल दास, हनुमान गढ़ी के स्वामी धर्म दास समेत तमाम संतों का आशीर्वाद लेकर वो मंदिर आंदोलन में सक्रिय हो गए. यहां उन्हें लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता की छत्रछाया मिली.

आडवाणी की रामरथ यात्रा को जब बिहार में रोककर उन्हें गिरफ़्तार किया गया, तो उसी समय फैज़ाबाद प्रशासन ने बृजभूषण सिंह को एक महीने के लिए जेल में बंद कर दिया. आडवाणी जब जेल से छूटे तो उन्होंने पहली यात्रा अयोध्या से शुरू की और उसमें गोंडा से फैज़ाबाद, फैज़ाबाद से अयोध्या घाट और अयोध्या से लखनऊ तक वो आडवाणी के सारथी बनकर यात्रा के दौरान साथ रहे. बृजभूषण शरण सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राम मंदिर आंदोलन को संभाला.

मायवती के विरोध में उतरे बृजभूषण

बृजभूषण शरण सिंह 1991 में पहली बार सांसद बनने के बाद 1999 से लगातार चुनाव जीतते रहे. इसके पीछे उनकी दबंग वाली छवि और आक्रामक सियासी अंदाज़ की बड़ी भूमिका मानी जाती है. एक ऐसी ही चर्चित घटना है, जब वो गोंडा का नाम बदलने के मुद्दे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती से भिड़ गए थे. 2004 में मायावती ने गोंडा का नाम बदलकर “लोकनायक जयप्रकाश नारायण नगर” रखने की घोषणा कर दी थी. लेकिन बृजभूषण ने भारी जनसैलाब के बीच उनका विरोध किया. तत्काल उसी सभा में मुख्यमंत्री मायावती से अपना विरोध दर्ज कराया और एक जन आंदोलन तैयार किया.

मामला प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचा. तब बृजभूषण सिंह की अपील पर पीएम अटल ने मायावती को घोषणा वापस लेने के लिए कहा. आख़िरकार गोंडा का नाम नहीं बदला. लेकिन, राजनीतिक वर्चस्व की इस लड़ाई को जीतने के बाद बृजभूषण को बीजेपी से अलग होना पड़ा. कहते हैं बीजेपी के कुछ नेता बृजभूषण के वर्चस्व को देखकर नाराज़ थे. क्योंकि, गोंडा का नाम बदलने का जो ऐलान मायावती ने किया था, उस मुहिम के पीछे बीजेपी से जुड़े कुछ नेताओं का हाथ था. इसी बात को लेकर बीजेपी और बृजभूषण सिंह के बीच मतभेद, मनभेद तक पहुंच गया. उन्हें 2009 में पार्टी छोड़नी पड़ी.

कई मुकदमे हैं दर्ज

उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थामा और कैसरगंज लोकसभा से चुनाव लड़ गए. कैसरगंज से वो 63 हज़ार वोटों के अंतर से जीते. पार्टी भले ही बदल गई थी, लेकिन बृजभूषण का सियासी क़द और उनके बाहुबल का असर कम नहीं हुआ. वो 63,000 वोट से जीतकर संसद पहुंचे. लेकिन, समाजवादी पार्टी के साथ उनके वैचारिक मतभेद बहुत जल्दी शुरू हो गए. लिहाज़ा 2014के लोकसभा चुनाव से क़रीब 6 महीने पहले मुलायम और अखिलेश यादव का साथ छोड़कर दोबारा बीजेपी में शामिल हो गए.

उन्होंने एक बार फिर कैसरगंज से 73,000 वोटों के भारी अंतर से विजय हासिल की. बृजभूषण शरण सिंह का बाहुबली बनने का सफ़र कई तरह के गंभीर आरोपों और तमाम तरह के विवादित मामलों से होकर गुज़रता है. उन पर IPC की चार गंभीर और 7 कम गंभीर धाराओं में केस दर्ज किए गए. हालांकि, सज़ा किसी भी मामले में नहीं हुई. 1991 से 2019 तक उन्होंने 6 बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की. सियासत में दबंग छवि के अलावा भी उनका एक अंदाज़ है, जिसकी वजह से वो कई बार सुर्ख़ियों में रहे. उन्हें लेखन, गायन और साहित्य से विशेष लगाव है. वो अपने भाषण में अक्सर गीत और कविताएं भी सुनाते हैं.

गोंडा, बलरामपुर और आसपास के ज़िलों में बृजभूषण शरण सिंह के दर्जनों इंटर कॉलेज, डिग्री कॉलेज और शिक्षण संस्थान हैं. वो कहते हैं, शिक्षित समाज उनका सपना है, जबकि विरोधी कहते हैं कि गोंडा और आसपास के ज़िलों में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एकछत्र राज स्थापित कर लिया. हालांकि, सच ये है कि वीआईपी नंबर वाली महंगी गाड़ियां बृजभूषण सिंह के बाहुबली वाले अंदाज़ की गवाही देती हैं. उनकी ज़्यादातर गाड़ियों के नंबर 9000 हैं. उनके क़ाफ़िले में शामिल कारों की क़ीमत और मॉ़डल पर ग़ौर कीजिए. टोयोटा लैंड क्रूजर जिसकी क़ीमत 1.41 करोड़ रुपये है. टोयोटा फॉर्च्यूनर जिसकी कीमत करीब 40 लाख रुपए हैं और टाटा सफारी जिसकी कीमत करीब 16 लाख रुपए है.

कुश्ती का अखाड़ा छोड़ा, राजनीति का नहीं

बृजभूषण सिंह भले ही पहलवानी का अखाड़ा बरसों पहले छोड़ चुके हैं, लेकिन राजनीतिक अखाड़े में वो विरोधियों से भिड़ने में पीछे नहीं रहते. हालांकि, कई बार बात ज़्यादा बिगड़ जाती है. 4 मई 2019 को उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर बसपा सुप्रीमो मायावती पर विवादित बयान दे दिया था. जब उनसे सवाल पूछा गया कि ऐसा क्यों कहा, तो जवाब दिया कि मायावती ने एक रैली में उन्हें गुंडा और आंतकवादी बताया था. लिहाज़ा मैंने उन्हें जवाब दिया है.

इससे पहले 24 जून 2018 को उन्होंने कह दिया था कि कांग्रेस आतंकवादी पैदा करती है. उन्होंने जम्मू-कश्मीर के कांग्रेस नेता सैफ़ुद्दीन सोज़ पर पलटवार किया था. ओवैसी, आज़म ख़ान समेत तमाम नेताओं को लेकर वो तीखे बयान दे चुके हैं. बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह हिंदूवादी छवि के नेता हैं और वो उस ख़ुद को उस भूमिका में बरक़रार रखने के लिए अपने अंदाज़-ए-बयां का सहारा लेते हैं. विरोधी उन्हें शिक्षा माफ़िया कहते हैं, तो कई उन्हें दबंगई के दम पर चुनाव जीतने वाला बाहुबली कहता है.

विवादित ढांचा गिराने के मामले में 28 साल बाद 30 सितंबर 2020 को सांसद बृजभूषण बरी हो गए. देश के सबसे विवादित, चर्चित और लंबे समय तक चलने वाले मुक़दमे में जब वो बरी हुए, तो समर्थकों ने जश्न मनाया. तमाम आरोपों, विवादों और जेल यात्रा के बावजूद वो चुनाव जीतते रहे. उनके नाम पर उनका परिवार भी राजनीतिक रसूख हासिल करता रहा. पत्नी सांसद बनीं और बेटा विधायक. समाज में उनकी सक्रियता अक्सर देखी जाती है. लेकिन, ये सच है कि बृजभूषण शरण सिंह अपने राजनीतिक सफ़र में सिर्फ़ नेता नहीं बल्कि बाहुबली के तौर भी पहचाने जाते हैं.

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