अमर ज्योति ट्रांसफर का स्वदेशी एंगल … अमर जवान ज्योति की सही जगह ब्रिटिश काल में बने इंडिया गेट में नहीं, आजाद भारत के वॉर मेमोरियल में है

15 अगस्त हो या 26 जनवरी, देश के पीएम और सेना के प्रमुख अधिकारी इंडिया गेट में जल रही अमर ज्योति को नमन कर शहीदों को श्रद्धांजलि देते थे। लेकिन साल 2019 में नेशनल वॉर मेमोरियल बनने के बाद यह प्रथा बदल गई। शहीदों को नमन अब नेशनल वॉर मेमोरियल में किया जाने लगा।

मोदी सरकार ने इस परंपरा को बदलकर यह संकेत दे दिया था कि अब देशभक्ति का प्रतीक इंडिया गेट नहीं बल्कि नेशनल वॉर मेमोरियल होगा। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, ‘नेशनल वॉर मेमोरियल की आधारशिला रखते वक्त यह तय हो गया था कि शहीदों के लिए अमर ज्योति जलेगी। नेशनल वॉर मेमोरियल के अमर चक्र में अमर जवानों के लिए लिए लौ जलेगी। लेकिन इंडिया गेट में जल रही मशाल बुझेगी नहीं, बल्कि उसका इस लौ में विलय होगा।’

सूत्रों की मानें तो ‘1971 वॉर के शहीदों को उनकी सही जगह देने के लिए यह फैसला लिया गया। उनके मुताबिक यह फैसला ब्रिटिश गुलामी की मानसिकता से बाहर आने के तहत भी लिया गया। नेशनल वॉर मेमोरियल आजाद भारत के शहीदों की याद में बनी एक ऐसी इमारत है, जो हमारे वीर जवानों पर गर्व करने के लिए प्रेरित करेगी। यहां उन जवानों के नाम भी लिखे हैं जो शहीद हुए।’ अमर ज्योति को नेशनल वॉर मेमोरियल ले जाने पर सवाल उठाने की जगह हमें यह पूछना चाहिए कि आजादी के इतने सालों बाद शहीदों के लिए अब तक ऐसे मेमोरियल की कल्पना क्यों नहीं की गई थी?’

रिटायर्ड कर्नल और शौर्य चक्र विजेता डीपीके पिल्लई इस विवाद पर पूछते हैं, ‘क्या आज भी संसद में वायसराय या ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारी बैठे हैं, जो हम इस बात से दुखी हो रहे हैं कि ब्रिटिश काल में बने इंडिया गेट से ज्योति को आजाद भारत में बने वॉर मेमोरियल क्यों ले जाया गया?’

पिल्लई कहते हैं, ‘यह मेमोरियल तो पहले ही बन जाना चाहिए था। सारे शहीदों को एक साथ श्रृद्धांजलि दी जाए तो गलत क्या है? दरअसल, हम आजाद तो हो गए लेकिन मानसिक गुलामी छोड़ नहीं पाए। इंडिया गेट ब्रिटिश काल का प्रतीक है। वह ब्रिटिश हुकूमत जिसके लिए भारतीय सैनिक लड़े, लेकिन उन्हें कभी ब्रिटिश सैनिकों के बराबर न वेतन मिला न सम्मान।

दिल्ली में 50 साल से इंडिया गेट की पहचान बन चुकी अमर जवान ज्योति शुक्रवार को वॉर मेमोरियल की ज्योति में विलीन हो गई।
दिल्ली में 50 साल से इंडिया गेट की पहचान बन चुकी अमर जवान ज्योति शुक्रवार को वॉर मेमोरियल की ज्योति में विलीन हो गई।

‘ब्रिटिश सैनिक के मुकाबले भारतीय सैनिकों को मुश्किल से चौथाई सैलरी मिलती थी। सुविधाएं भी दोयम दर्जे की ही दी जाती थीं। तो क्या गुलाम भारत के वीर सैनिकों की याद में जलाई गई ज्योति को यह हक नहीं कि उसे भारतीय इमारत में जलाया जाए? गुलाम भारत के सैनिकों की याद हम आजाद भारत के सैनिकों के साथ करें?’

रिटायर्ड कर्नल पिल्लई कहते हैं, ‘जिन्हें यह लगता है कि ब्रिटिश हुकूमत ने इंडिया गेट ब्रिटिश भारतीय सैनिकों के बलिदान को सम्मान देने के लिए बनाया था, तो वे गलतफहमी में हैं। क्योंकि यह स्मारक दरअसल ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को सेना में भर्ती होने के लिए लुभाने का प्रयास था।’

इंडिया गेट कब बना था?
इंडिया गेट स्मारक ब्रिटिश सरकार के समय 1921 में बनकर तैयार हुआ था। यह 1914-1921 के बीच अपनी जान गंवाने वाले ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की याद में बना था। यह करीब 7000 ऐसे भारतीय सैनिकों की याद दिलाता है, जो प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश हुकूमत के लिए वीरता से लड़े। यहां करीब 13,000 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम भी हैं। ये सभी अफगान युद्ध में मारे गए थे।

इंडिया गेट की अधाराशिला ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी। इसे इडविन लुटियन ने डिजाइन किया था।

अमर जवान ज्योति को पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में शहीद होने वाले भारतीय जवानों की याद में जलाया गया था।
अमर जवान ज्योति को पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में शहीद होने वाले भारतीय जवानों की याद में जलाया गया था।

कब जलाई गई थी लौ?
इंडिया गेट आजादी से पहले बना था लेकिन आजादी मिलने के बाद अमर जवान ज्योति जलाई गई। दरअसल दिसंबर 1971 में भारत-पाक युद्ध में अपने प्राण गंवाने वाले सैनिकों के सम्मान में उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यह ज्योति जलाई थी। यह युद्ध 3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक चला था। पूर्व पीएम ने 26 जनवरी, 1972 में इस ज्योति को प्रज्वलित किया था।

क्यों खड़ा हुआ राजनीतिक विवाद ?
दरअसल इस ज्योति के ट्रांसफर पर सबसे पहले कांग्रेस का ट्वीट आया। ट्वीट में कहा गया- “अमर जवान ज्योति को बुझाना, उन वीरों के साहस और बलिदान का अपमान है, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े किए थे. वीरता के इतिहास को मिटाने की भाजपाई साजिश को कोई देशभक्त बर्दाश्त नहीं करेगा। शहीदों के अपमान का मोदी सरकार का ये रवैया बहुत घृणित है।” उसके बाद आम आदमी पार्टी से लेकर रालोद तक हंगामा कटा हुआ है।

इसके जवाब में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा सफाई देते हुए ट्वीट किया है, ‘अमर जवान ज्योति को बुझाया नहीं जा रहा है। उसे राष्ट्रीय समर स्मारक की ज्योति में मिला जा रहा है। ये बात अटपटी थी कि अमर जवान ज्योति 1971 और दूसरे युद्धों के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए लगी थी, मगर उनमें से किसी का नाम वहाँ नहीं लिखा था।”

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