सपा के कार्रवाई मिनिस्टर शिवपाल नेता न बनते तो सीबीआई या वायुसेना के अधिकारी होते

पिछली सपा सरकार में ब्यूरोक्रेसी को टारगेट पर रखने की वजह से शिवपाल यादव को ‘कार्रवाई मिनिस्टर’ कहा जाने लगा था। ये 2012 का दौर था। उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद उन्हें लोक निर्माण, सिंचाई, सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने इन विभागों के भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कई बड़े अधिकारियों और अभियंताओं के खिलाफ कार्रवाई की थी। इसके बाद एक अखबार ने तो उन्हें ‘कार्रवाई मिनिस्टर’ की संज्ञा दे दी। यहीं से ये नाम चल निकला था।

2022 के विधानसभा चुनाव में फिर भतीजे अखिलेश के साथ वह मैदान में हैं। मशहूर ज्योतिषाचार्य नस्तूर बेजान दारुवाला कहते हैं कि अगर वह नेता नहीं होते तो ग्रह का संयोग ऐसा है कि वायुसेना या सीबीआई के अधिकारी हो सकते थे। अखिलेश उनका सही इस्तेमाल करें, तो नई ऊंचाई तक जा सकते हैं। अखिलेश अगर बाण हैं, तो शिवपाल धनुष हैं।

ज्योतिष की निगाह से वह कहते हैं कि शिवपाल मेष राशि के हैं। कर्म का मालिक शनि हैं, वरुण ग्रह के साथ संगम में हैं। ये योग ऐसा है कि वो जब तक जीवित रहेंगे, चर्चा में ही रहेंगे। चुनाव जीतते रहेंगे। इसके अतिरिक्त एक और योग उनके पक्ष में नहीं है। उनकी कुंडली में गुरु और केतु के एक साथ होने की वजह से वो जिस पद तक तक पहुंचना चाहते थे। नहीं पहुंच सके। आने वाले 20 सालों में वो यूपी के डिप्टी सीएम या सपा के संरक्षक की भूमिका तक पहुंच सकते हैं।

शिवपाल का जन्म 6 अप्रैल 1955 को इटावा के सैफई गांव में हुआ था।
इनके पिता सुघर सिंह यादव और मां मूर्ति देवी थीं।
उनकी शुरुआती शिक्षा सैफई और करहल में हुई थी।
1976 में यूनिवर्सिटी ऑफ कानपुर से बीए की डिग्री ली।
उनका विवाह 23 मई 1981 को सरला यादव से हुआ।
इनके 2 बच्चे हैं। बेटे का नाम आदित्य यादव और बेटी अनुभा यादव।

1988 में शिवपाल ने औपचारिक रूप से राजनीति में कदम रखा।
वो जिला सहकारी बैंक इटावा के अध्यक्ष चुने गए थे।
1991 और 1993 में भी वो यहां के अध्यक्ष चुने जाते रहे।
1994 से 1998 तक उनके पास उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के अध्यक्ष की जिम्मेदारी रही।
1995 से 1996 तक उन्होंने इटावा के जिला पंचायत अध्यक्ष का दायित्व भी संभाला।
उन्हें उत्तरप्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक का अध्यक्ष बनाया गया।

13वीं विधानसभा में जसवंतनगर से चुनाव लड़ा और जीते भी।
उन्हें समाजवादी पार्टी के प्रदेश महासचिव का पद सौंपा गया।
मई 2009 तक प्रदेश अध्यक्षता संभाली। फिर उन्हें यूपी विधानसभा में नेता विरोधी दल की जिम्मेदारी दे दी गई।
वरिष्ठ नेता आजम खान की वापसी के दिन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दिया था।
2017 में शिवपाल ने समाजवादी पार्टी छोड़ दी थी।
इसकी वजह अखिलेश यादव और शिवपाल के रिश्तों में आई दरार बताई गई।
29 अगस्त 2018 को शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई।
अब 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश से उनकी सुलह हो गई है।
वो एक बार फिर जसवंतनगर से विधानसभा चुनाव में खड़े हुए हैं।

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