जितनी हाईटेक कार, उतनी आसानी से चोरी…जानिए कैसे:लखनऊ और गोरखपुर में गैंग, 8 मिनट में बंद कार ऑनलाइन स्टार्ट कर देते हैं; 2 तरीके जिनसे आप बच सकते हैं
गोरखपुर से एक ऐसा गैंग पकड़ा गया है, जो पलक झपकते ही लग्जरी कारों को चुरा लेता है, वह भी बिना चाबी के। इतना ही नहीं, यह गैंग चुराई गई कारें भूटान और म्यांमार जैसे देशों में बेचता है। यह गैंग इस बात की तरफ स्पष्ट इशारा है कि अगर आपके पास भी लग्जरी कार है तो आपको सतर्क रहने की जरूरत है।
लखनऊ, गोरखपुर, मेरठ, नोएडा समेत पूरे उत्तर प्रदेश लेकर मप्र, दिल्ली एनसीआर, गुजरात, राजस्थान तक फिल्मी स्टाइल में कार चोरी करने वाला गिरोह सक्रिय है। कार के सिक्योरिटी फीचर चाहे कितने भी मजबूत हों, उन्हें महज 8 मिनट में क्रैक करने के लिए मैकेनिकल और सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी इस गिरोह में शामिल हैं। कंपनियां भले ही दावा करें कि उनकी कार बिना चाबी के 100 मीटर तक भी नहीं जा सकती, क्योंकि ऐसा करते ही कार का स्टेयरिंग व इंजन तक लॉक हो जाएगा, लेकिन यह तमाम दावे इस हाईटेक गैंग के आगे गलत साबित हो रहे हैं।
आइए जानते हैं कैसे यह गैंग चोरी को अंजाम देता है…
सॉफ्टवेयर से कर देते हैं प्रोग्रामिंग बंद
आजकल 7 लाख या उससे ऊपर की जितनी भी कारें बनाई जा रही हैं, उनमें से ज्यादातर में इंजन इमोबिलाइजर फीचर आता है। इससे जब भी आप कार में चाबी लगाते हैं तो चाबी, डैशबोर्ड पर लगे सभी मीटर की सेटिंग मैच होने पर ही स्टार्ट होती है। हर कार में एक सॉफ्टवेयर इनबिल्ट होता है। इसका कंट्रोल स्टेयरिंग के पास लगे इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स से जुड़ा होता है। जिन चाबियों से कार स्टार्ट होती है, उनका नंबर इसी सॉफ्टवेयर में अपडेट रहता है। यदि कोई डुप्लीकेट चाबी लगाने का प्रयास करे तो तुरंत ही कार का सिक्योरिटी का सायरन बज उठता है। कार की इंजन और स्टेयरिंग लॉक हो जाती है।
स्टेयरिंग लॉक का निकाला तोड़
चोरों ने इसका तोड़ निकाल लिया है। दिल्ली-मुंबई में कार की इस तरह की प्रोग्रामिंग को बंद करने वाले कई तरह के सॉफ्टवेयर 40 से 50 हजार रुपए में मिल जाते हैं। चोर इसे अपने टैबलेट या लैपटॉप में इंस्टॉल कर लेते हैं। इसी सॉफ्टवेयर की मदद से चोर कार के सिक्योरिटी सिस्टम को डीकोड कर देते हैं। इसके लिए कार खोलना तक जरूरी नहीं है।
दरअसल, कार में सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम और इंफोटेनमेंट फीचर्स रेडियो सिग्नल पर काम करता है। इसका दायरा करीब 30 मीटर तक होता है। यही रेडियो सिग्नल कार को लॉक करने और खोलने में रिमोट से जुड़े होते हैं। सॉफ्टवेयर की मदद से चोर इसी रेडियो सिग्नल के बराबर यानी वाईफाई के राउटर में रेंज में टैबलेट लेकर आते हैं।
8-10 मिनट में फीचर होता है डिसेबल
फिर रेडियो सिग्नल के जरिए कार के सॉफ्टवेयर या इंफोटेनमेंट सिस्टम में बग या लू-फॉल को ढूंढकर उसे हैक कर लेते हैं। महज 8 से 10 मिनट में पूरा सिक्योरिटी फीचर डिसेबल हो जाता है। गिरोह के पास एक मास्टर चाबी होती है, जो किसी भी कार में लगाकर उसे स्टार्ट करने के काम आती है।
सीट के नीचे कंप्यूटर को हैक करके बदला सॉफ्टवेयर
क्रेटा के टॉप मॉडल गाड़ियों के लॉक को खोलने के लिए टच स्क्रीन सिस्टम काम करता है, जिसका कंप्यूटर सिस्टम ड्राइवर की सीट के नीचे लगा रहता है। वाहन चोर इस सॉफ्टेवर को हैक करते थे। गोरखपुर में पकड़ा गया गैंग का सदस्य खलूल रहमान ड्राइवर की सीट के पास लगे शीशे को तोड़ करके लैपटॉप से फायर वॉयर के माध्यम से सीट के नीचे लगे कंप्यूटर को आपस में जोड़ता था। अतुल की कीप प्रोग्रामर से कार लॉक सिस्टम को हैक करके नया सॉफ्टवेयर जनरेट करते था। पुराने सिस्टम को बदलने के दौरान जो मैसेज वाहन के पास जाता था। उसे भी फॉरवर्ड करके दूसरे मोबाइल पर मंगवाते थे, जिससे कार चोरी की जानकारी वाहन मालिक को नहीं हो सके।
ऐसे बच सकते हैं…
कारों के एक्सपर्ट मैकेनिकल इंजीनियर सौरभ कुमार द्विवेदी बताते हैं कि सभी कंपनियों की नई कारों में आधुनिक जमाने के तमाम सिक्योरिटी फीचर जैसे एंटी थेफ्ट, इंजन इमोबिलाइजर, सिक्योरिटी अलार्म, सेंट्रल लॉकिंग पहले से ही लगे होते हैं। लेकिन चोरों ने इसका तोड़ निकाल लिया है। ऐसे में अगर आपकी कार किसी ऐसी जगह पार्क होती है, जहां लोगों की आवाजाही आसान है तो आपको कार में टायर लॉक, स्टेरिंग लॉक, गियर लॉक जैसे टूल्स भी लगा लेना चाहिए। इंजन में लगने वाला जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम भी बहुत कारगर होता है, क्योंकि एकदम से इस पर ध्यान नहीं देते और कार चोरी हो भी जाए तो उसे जल्दी ट्रैक किया जा सकता है।
पहले ऑर्डर फिर कई शहरों से चोरी
कार चोरी की इन वारदातों को बाकायदा ऑर्डर लेने के बाद ही अंजाम दिया जाता है। गिरोह के कुछ सदस्य अलग-अलग शहरों से गाड़ियों के ऑर्डर लेकर रेकी करने वाले सदस्यों तक जानकारी भेजते हैं। फिर रेकी करने वाली टीम चोरी करने वाले लोगों को कार का पता-ठिकाना और आसपास की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में बताते हैं। नोएडा में तो यह भी पता चला था कि चोरी करने वाले कुछ लोग फ्लाइट से आते हैं और कार चुराने के बाद उसे चलाकर डिलीवरी करने वाले शहर तक ले जाते हैं।
लखनऊ से नोएडा तक बिखरे पड़े हैं चोरियों के सबूत
इस हाईटेक कार चोरी गिरोह के सबूत लखनऊ से नोएडा तक बिखरे पड़े हैं। हाल ही में गोरखपुर पुलिस ने एक ऐसा गैंग पकड़ा गया है, जो पलक झपकते ही लग्जरी कारों को चुरा लेता था। वह भी बिना चाबी के। पड़ताल के मुताबिक, हाईटेक तरीके से चुराई गई यह कारें भूटान और म्यांमार जैसे देशों में बेची जाती हैं।
इसी तरह की चोरियां पिछले साल जून से लेकर अक्टूबर के बीच लखनऊ में भी हुई, जिसमें सफेद रंग की क्रेटा कारों को ही टारगेट कर चोरी कर लिया गया। इसके बाद नोएडा, वाराणसी में भी चोरी की वारदातें सामने आईं। नवंबर माह में मप्र के इंदौर, भोपाल और सागर में कई क्रेटा इसी सॉफ्टवेयर की मदद से चोरी की गई। इन चोरियों के CCTV फुटेज खंगालने पर कुछ लोग टैबलेट हाथ में लिए कार के आसपास नजर भी आए थे।
सरगना राजस्थान का, गैंग मेरठ से
जिन जगहों पर चोरी में शामिल हुए गिरोह के लोग पकड़े गए हैं, उनकी पड़ताल में सामने आया है कि इस गैंग का सरगना राजस्थान का है। वहीं, गैंग के ज्यादातर सदस्य मेरठ के रहने वाले हैं। इंदौर और नोएडा में चोरी गई कारों की छानबीन में भी इसी तरह की बातें सामने आई थीं। अब गोरखपुर से नई बात निकलकर आई है कि यह कारें भूटान और म्यांमार जैसे देशों में भी बेची जा रही हैं। देशभर के शहरों से कार चुराने वाले गैंग के सदस्य चोरी की कारों को नागालैंड तक पहुंचाते हैं।
असम से भूटान और म्यांमार में कारों की होती थी बिक्री
वाहन चोर यूपी, एमपी, हरियाणा, दिल्ली, बिहार से कारों की चोरी करके असम पहुंचाते थे, जहां पर वाहनों की बिक्री करने की जिम्मेदारी क्रिश सेमा के जिम्मे थी। लेकिन, वह किसी से नहीं मिलता था। उसकी जिम्मेदारी वाहनों को भूटान, म्यांमार में बेचने की थी। गाड़ियां असम में रहने वाले शब्बीर तीन से चार लाख में खरीदता था। फिर क्रिश सेमा को सौंप देता था। जहां पर क्रिश सेमा वाहनों को दूसरे देश में 10 से 13 लाख रुपए में बेचता था। पुलिस के मुताबिक क्रिश सेमा की पुलिस से भुठभेड़ भी हो चुकी है, जिसमें उसके पैर में गोली लग चुकी है।
10 दिनों तक रेकी के बाद वाहनों की करते थे चोरी
गोरखपुर पुलिस द्वारा पकड़े गए शेख मुबारक, खलूल रहमान, राम प्रताप चोरी करने से पहले 10 दिनों तक उसकी रेकी करते थे। इस दौरान उनकी कोशिश ऐसे वाहनों की चोरी की होती थी, जिसकी कीमत 25 लाख रुपए से अधिक हो। खलूल रहमान हुंडई कंपनी में काम कर चुका है और कंप्यूटर का जानकार है। जबकि, असम का रहने वाला राम प्रताप चोरी के वाहनों को बिचौलियों को बेचता था। जिसके माध्यम से वाहन म्यांमार और भूटान में बेचे जाते थे।
10 दिनों तक असम और भूटान में रही पुलिस, 2000 CCTV फुटेज की जांच
वाहन चोरी की सूचना के बाद गोरखपुर पुलिस 10 दिनों तक असम और भूटान में डेरा डाले रही। इस दौरान गोरखपुर से भूटान तक लगभग 2000 CCTV फुटेज को खंगाला, जिसके बाद वाहन चोरों के नेटवर्क की जानकारी हुई। वाहन बरामदगी के दौरान भूटान में पुलिस का विरोध भी हुआ। लेकिन, स्थानीय पुलिस के सहयोग से भूटान से वाहन को कब्जे में लेकर गोरखपुर लाई। पूछताछ के दौरान असम और भूटान में पुलिस ने ही उत्तर प्रदेश पुलिस को वाहन चोर समझा और कड़ाई करने लगे। लेकिन, परिचय पत्र दिखाने के साथ ही उच्चाधिकारियों से बातचीत के बाद मामला साफ हुआ।