वित्तमंत्रीजी आप भी महिला, फिर हमें वादों का झुनझुना क्यों … मां बनने वाली महिलाओं का बजट आधा, सेफ्टी में कटौती, बाकी मंत्रालयों पर मेहरबानी

आज महीने का आखिरी दिन और स्नेहा को इंतजार है कि जैसे भी हो, दिन खत्म हो और 1 तारीख आए। नहीं-नहीं, उसे आम बजट आने का इंतजार नहीं है। उसे तो न ये बजट समझ आता है और न ही वह इससे ज्यादा मतलब रखती है। उसकी टेंशन है कि पहली तारीख हो और घर में सैलरी आए और वो फटाफट अपने छोटे-मोटे उधार चुकाए। बेटे के टैबलेट का चार्जर कब से खराब है, सबसे पहले वही ऑर्डर करना है।

बजट गड़बड़ाने की कहानी हमारे घरों की नहीं हमारे देश की भी होती है। जब खर्चे ज्यादा और कमाई कम होती है तो उसे घाटे का बजट कहा जाता है। वैसे कभी-कभार बजट फायदे का भी होता है, जब 31 तारीख तक स्नेहा के हाथ में पैसे बच जाएं। लेकिन जब भी खर्च हाथ से निकल जाता है तो स्नेहा को जैसे-तैसे मैनेज करना पड़ता है। कभी किसी से उधार लो और कभी चार्जर तो कभी अपनी फेवरेट ड्रेस खरीदने की प्लानिंग होल्ड पर डाल दो।

वैसे तो स्नेहा ने पहली जनवरी को ही अपने खर्च के लिए 5000 रुपए अलग से रख लिए थे। लेकिन इस बीच उसे पड़ोस में एक बर्थडे पार्टी में जाना पड़ा। उसने 500 रुपए का गिफ्ट और एक ड्रेस ली। इसलिए इस महीने उसका बजट गड़बड़ा गया।

स्नेहा के पास 3 ऑप्शन थे-

  • हाथ तंग रखो, खर्च में कटौती करो और घर चलाओ- इसे बजट रिवाइज्ड करना कहते हैं।
  • घर में किसी से उधार लो और काम चलाओ- इसे रिजर्व बैंक से उधार लेना कहते हैं।
  • ट्यूशन देकर या फ्रीलांसिंग करके एक्स्ट्रा इनकम करना- इसे बॉन्ड बेचना कहते हैं।

देश की सरकार भी ठीक स्नेहा की तरह ही काम चलाती है। पहले एक योजना के लिए खर्च का अनुमान लगाकर बजट बनाया जाता है। लेकिन जैसे स्नेहा के कुछ रुपए बर्थडे पार्टी में खर्च हो गए। उसी तरह से सरकार के पास भी कोरोना-लॉकडाउन जैसी कई चुनौतियां सामने आती हैं। इसके बाद बजट रिवाइज किया जाता है। स्नेहा 1 फरवरी को सैलरी आने से पहले ही अपना हिसाब-किताब देखेगी। ठीक वैसे ही जैसे दृश्यम फिल्म में विजय (अजय देवगन) पुलिस वाले से रहता है कि, साहब हम आम लोग हैं। महीने के अंत में देखते हैं कि कहां ज्यादा खर्च हो गया। इसी हिसाब-किताब को देखकर पता चलता है कि साल के अंत में बजट में कहां कितना खर्च हुआ।

अच्छा, हर बार ऐसा नहीं होता कि स्नेहा के पैसे महीना पूरा होने से पहले ही खत्म हो जाएं। अब देखिए न, अक्टूबर 20201 में ही उसके पास 2 हजार रुपए बच गए थे। उसने इससे अपने किचन के किए इंस्टैंट गीजर ले लिया था। इसे बजट सरप्लस होना कहते हैं। जब सरकार की कमाई ज्यादा होती है और खर्च कम रहता है तो वह कुछ जरूरी चीजों पर पैसे खर्च करती है।

देश की पहली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को चौथी बार आम बजट पेश करेंगी। ऐसे में उनसे उम्मीद की जा रही है कि वह महिलाओं के बटुए का पूरा-पूरा ध्यान रखेंगी।

चलिए, उनका बजट आने से पहले जान लेते हैं कि वो साल भर का हिसाब-किताब चलाने में कैसी रहीं…

आपने देखा न कुछ जगहों पर पर बजट कम हो गया। आइए देखते हैं कि वित्त मंत्री के सामने भी कहीं स्नेहा की तरह अचानक से बर्थडे पार्टी जैसा कोई खर्च तो नहीं आ गया था। या फिर टैबलेट का चार्जर खरीदने से पहले ड्रेस तो नहीं ले ली गई थी।

आप इन 10 पॉइंट को देखिए और खुद ही तय कीजिए…

  • महिला बाल विकास मंत्रालय का बजट 2020 में 21,000 करोड़ था। 2021 में 24,500 करोड़ रुपए हो गया।
  • मां-बच्चे के लिए मातृत्व वंदना योजना का बजट 2,500 करोड़ रुपए था। बाद में यह 1,300 करोड़ रुपए हो गया।
  • 2020 में शिक्षा का बजट 99 हजार करोड़ था। 2021 में 6 हजार करोड़ कम होकर 93 हजार करोड़ रह गया।
  • 2021 के ओलिंपिक और पैरालिंपिक में महिला खिलाड़ियों ने 3-3 मेडल जीते। लेकिन खेल मंत्रालय के 230 करोड़ रुपए कम हो गए।
  • महिलाओं को सुरक्षित और सशक्त करने के लिए ‘मिशन फॉर प्रोटेक्शन एंड एम्पावरमेंट ऑफ वुमन’ का बजट 726 करोड़ से 48 करोड़ हो गया।
  • हेल्थ और फैमिली वेलफेयर के लिए बजट रिवाइज्ड हुआ तो 9 हजार करोड़ रुपए कम हो गए।
  • नेशनल एजुकेशन मिशन का शुरुआती बजट 39 हजार करोड़ था। लेकिन अंत में 34 हजार करोड़ हो गया।
  • इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज के लिए शुरुआती बजट 28.50 हजार करोड़ रुपए था। अंत में यह 24 हजार करोड़ रुपए रहा।
  • महिलाओं के कल्याण के लिए जब बजट रिवाइज्ड हुआ तो 2 लाख करोड़ था लेकिन बाद में यह 1.5 लाख करोड़ रह गया।
  • बच्चों के कल्याण के लिए शुरुआत में 96 हजार करोड़ रुपए दिए थे, लेकिन अंत में यह 85.7 हजार करोड़ ही रहा।

हालांकि, ऐसा नहीं है कि वित्त मंत्री ने हर तरफ खर्च में कटौती ही की है। आइए, देखते हैं कि कहां-कहां खर्च बढ़ाया सरकार ने…

इन कामों में खर्च किया ज्यादा पैसा

  • 13% ओवरऑल बजट रिवाइज्ड होकर बढ़ गया।
  • 64% बजट जल शक्ति मंत्रालय का पिछली बार के मुकाबले बढ़ा।
  • 48% बजट उपभोक्ता मामलों और खाद्य वितरण मंत्रालय का बढ़ा।
  • 31% बजट संचार मंत्रालय का बढ़ाने का फैसला लिया गया।

स्नेहा हो या सरकार, दोनों पैसे आने पर एक महीने या एक साल का बजट नहीं बनाते। आपको याद है न, स्नेहा ने अक्टूबर के अंत में 2000 रुपए बच जाने पर अपने किचन के लिए इंस्टैंट गीजर खरीदा जो अगले साल भी उसके काम आएगा। इसी तरह सरकार को भी कुछ ऐसी योजनाओं के लिए अलग से पैसे रखने पड़ते हैं जो लंबे समय के लिए होती हैं।

ये भी देख लीजिए, कि किस चीज में कितने पैसे लगाने की योजना बना रही है सरकार…

2021 से 2026 तक के लिए किस सेक्टर को क्या मिलेगा

  • हेल्थ सेक्टर: 31.75 हजार करोड़ रुपए
  • स्कूली शिक्षा: 4800 करोड़ रुपए
  • उच्च शिक्षा: 6 हजार करोड़

(Source: 15th Finance Commission)

सरकार ने ऊपर बताए तीनों सेक्टर पर अगले 5 साल में खर्च होने वाले पैसे अलग से रखे। ये तीनों सेक्टर बेशक महिलाओं से भी जुड़े हैं। लेकिन दूसरी तरफ महिलाओं के खेलने-कूदने से लेकर सुरक्षा तक का बजट भी कम हो गया। ये कटौती इस तस्वीर में बड़ी आसानी से समझ आ जाएगी…

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