उस दिन बुजुर्ग को पुलिस वालों ने पीटकर अधमरा कर दिया, मैं वकील होकर भी देखती रह गई, कुछ नहीं कर पाई
‘पुलिस! जिस पर लोग आंख मूंदकर भरोसा करने को तैयार रहते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे पुलिस के पास हमारी सब समस्याओं का समाधान होता है। पर, सिक्के का दूसरा पहलू भी है। मैंने अपनी आंखों से पुलिस थानों के भीतर बेकसूर लोग पिटते देखे हैं। रिहाई की गुहार लगाते देखे। यही वजह रही कि हर पुलिस थाने में सीसीटीवी कैमरा लगाने की पिटीशन शुरू की। इस चुनावी माहौल में राजनेताओं को पुलिसिया बर्बरता पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि इस समस्या का भी हल निकल सके।’ ये शब्द हैं दिल्ली-एनसीआर में वकील और एक्टिविस्ट सितवत नबी के।
कोलकाता में पली-बढ़ी सितवत वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहतीं, ‘मैं एक वकील हूं और बहुत नजदीक से पुलिस की बर्बरता को देखा है। मुझे याद है जब मैं किसान आंदोलन में किसानों की लीगल हेल्प के लिए गई तो अपनी आंखों से किसी किसान को पुलिस थाने में पिटाई खाकर आते देखा। तब लगा कि पुलिस की ये बर्बरता रुकनी चाहिए।
सामने से देखीं पुलिस की चलती लाठियां
एक बहुत बुजुर्ग किसान को पुलिस ने पूछताछ के लिए थाने बुलाया और जब उन्हें वापस भेजा तो इतना मार पीटकर भेजा कि उनके पूरे शरीर से खून बह रहा था। यही नहीं सीएए प्रोटेस्ट के दौरान भी पुलिस की लाठियां बेगुनाहों पर लगती देखीं। एक बार घरेलू हिंसा की पीड़ित महिला को लेकर दिल्ली में ही जब एक पुलिस थाने पहुंची तो वहां उसका मामला दर्ज नहीं किया गया और टालमटोल करके हमें वहां से भगा दिया। उस दिन लग रहा था कि मैं वकील हू्ं और इस महिला की कुछ मदद नहीं कर पा रही। तभी से निश्चय किया कि इस बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाउंगी फिर चेंज डॉट ओआरजी (change.org) के साथ पिटीशन शुरू की।
मानवाधिकार उल्लंघन मामले में यूपी सबसे ऊपर
अभी तक मैं आंखों देखी का बयान कर रही थी, लेकिन जब रिसर्च शुरू की तो मालूम हुआ कि “राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के हालिया अध्ययन के अनुसार, यूपी लगातार तीन बार मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की सूची में सबसे ऊपर रहा। 8 दिसंबर, 2021 को राज्यसभा में गृह मंत्रालय की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 31 अक्टूबर 2021 तक पिछले तीन वित्तीय वर्षों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा सालाना दर्ज किए गए मानवाधिकार उल्लंघन के लगभग 40 प्रतिशत [करीब आधे] मामले उत्तर प्रदेश के थे।”
हिरासत में भी हिंसा
जिस तेजी से यूपी में पुलिस की बर्बरता बढ़ रही है उससे जनता के बीच डर बैठ गया है। पिछले कुछ ताजा उदाहरण हमारे सामने हैं कि यूपी पुलिस बल ने कितने क्रूर और अत्यधिक बल का सहारा लिया है, जिसमें भीड़ पर गोलियां चलाना, तमाशबीनों की पिटाई करना, हिरासत में लेना और पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को समान रूप से डिटेन और टॉर्चर करना शामिल है। हिरासत में भी हिंसा की जाती है। 11 फरवरी 2020 को, NHRC ने राज्य में हो रही क्रूरता की घटनाओं के लिए यूपी सरकार को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था।
मैंने देखा है कि पुलिस थानों में अत्याचार इतना नियमित है कि अक्सर उसका उपयोग केवल लोगों को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। जब भी पुलिस पर हिरासत में प्रताड़ना और मौत का आरोप लगाया जाता है, तो ऐसे मामलों में निष्पक्ष जांच कम ही हो पाती है।
हर पुलिस थाने में सीसीटीवी कैमरा लगाने की मांग
इस पीटिशन में मेरी यही मांग है कि यूपी में हर पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगने चाहिए ताकि सच बाहर आ सके। मैं तो उसी की मांग कर रही हूं जिसपर हमारे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही आदेश जारी किया है और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जिसके लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं, अब बस यूपी सरकार को इसे लागू करना है।
बचपन से गलत के खिलाफ बोला
मैं बचपन से गलत के खिलाफ बोलने वाली रही हूं। लॉ की पढ़ाई करने के दौरान भी जब चाइल्ड ट्रैफिकिंग और महिला मुद्दों पर काम किया और लगातार पुलिस थानों का चक्कर काटे। तब भी उनके हक की बात की।
पुलिस और वकील मिलकर काम करें तो व्यवस्था बिगड़ेगी नहीं
यूपी में जिसकी भी सरकार बने उससे मेरी यही उम्मीद है कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को लागू करें और यूपी के हर थाने में सीसीटीवी कैमरे लगाएं। मैं जब इस मांग की सफलता की ओर देखती हूं तो उम्मीद से भर जाती हूं। मुझे उम्मीद है मेरी यह मांग जल्द ही पूरी होगी। अगर पुलिस के काम का तरीका जनता के हक में होगा तो आधे से ज्यादा गैर कानूनी काम बंद हो जाएंगे और न्यायालय पर मामलों का बोझ नहीं बढ़ेगा।