यूपी विधानसभा चुनाव: नेताओं के बोल-बचन की गर्मी, कोई गर्मी उतार रहा तो कोई भूसा भर रहा

अगर राजनेताओं को नियंत्रित कर पाने में राजनीति नाकाम हुई तो आने वाले दिन घोर अराजकता के होंगे. धर्म, समुदाय और जातियों के बीच की यह दूरी घाव पैदा कर रही है.

अपना परचा भरने के एक दिन पहले यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ ने गुरुवार को अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. जबकि यह काम उन्हें बहुत पहले करना था. अब तो पानी काफ़ी बह चुका है. वेस्ट यूपी (West UP) के कई ज़िलों में अगले हफ़्ते आज के ही दिन विधानसभा चुनावों ( UP assembly election)  मतदान है. और सरकार अभी तक यहां सिर्फ़ कटूक्तियां ही सुनाती रही. अभी तक इस पूरे इलाक़े में एक भी ऐसा भाषण किसी तरफ़ से नहीं आया, जिससे यहां के लोगों में कोई सकारात्मक संदेश जाता. आपस में भले एक-दूसरे पर कीचड़ न उछाला गया हो किंतु इतना ज़हर उगला गया कि इन भाषणों से जनता के बीच जो खाई पैदा हुई, उसे भरा जाना मुश्किल है. उत्तर प्रदेश के रण में भिड़े दोनों ही गठबंधनों को अपने नेताओं के बयानों पर अंकुश लगाना था, मगर कोई भी विचार नहीं किया गया. मज़ा तो यह है कि बड़े-बड़े नेता भी किसी तरह की सीमा रेखा मानने को तैयार नहीं हैं.

चुनाव खत्म होने के बाद गलबहियां करेंगे

हैरानी होती है इन सबके भाषण सुन कर. जीत के लिए राजनेता जिस तरह के बोल-कुबोल पर उतर आए हैं, उसे देख हर आदमी सन्न है. कोई कह रहा है, गर्मी निकाल देंगे तो पलट कर विरोधी जवाब देता है, भूसी भर देंगे. इस तरह की बातों से गर्मी जाए न जाए गर्मी पैदा ज़रूर हो रही है. माहौल में तनाव भरता जा रहा है. इस तरह के बोल चुनाव आयोग भी सुन रहा है, पर उसका जवाब होता है, हमारे हाथ में कुछ नहीं. चुनाव ख़त्म हो जाएंगे, नेता लोग चुप साध जाएंगे और उन्हीं नेताओं के साथ गलबहियां करेंगे, जिनकी गर्मी छांटने की बात वे कर रहे हैं. किंतु जो गर्मी वे पब्लिक के बीच पैदा कर जाते हैं, उसकी तपिश वर्षों तक झुलसाएगी.

यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ ने हापुड़ में 30 जनवरी को लोगों के बीच कहा, जो गर्मी अभी कैराना, मुज़फ़्फ़रनगर में दिख रही है, वह उतर जाएगी. मैं मई और जून को शिमला बना देता हूं. इस पर पलटवार करते हुए रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने कहा, लगता है योगी बाबा पर शीत लहर का असर है, उन्हें ठंड लग गई है.

दरअसल नेता लोग जीत के लिए इतने उतावले हैं कि किसी भी तरह बस चुनाव जीतना चाहते हैं. उनके बयानों से समाज में कितना ज़हर घुलेगा, इसकी परवाह उन्हें नहीं है. लगता है, हर नेता अपने अंदर नफ़रत की गठरी समेटे है, और जहां भी उसे माल बिकने की संभावना दिखी फ़ौरन गठरी खोल दी.

पांच दशक पहले ही हुई थी शुरुआत

आज से पांच दशक पहले से ही नेताओं के बीच चुनाव जीतने के लिए आपस में कड़वे बोल बोलने की प्रतियोगिता शुरू हो गई थी, लेकिन तब ये कटु वचन सिर्फ़ चुनाव जीतने के निमित्त थे. नेता एक-दूसरे पर कीचड़ भले उछालें, लेकिन पब्लिक को नहीं घसीटा जाता था. लोगों की भावनाओं का ध्रुवीकरण नहीं होता था. इसलिए चुनाव बाद किसी तरह की गरमा-गरमी नहीं. मगर अब जो माहौल बना है, उसमें पब्लिक के बीच भी दूरियां बढ़ती जा रही हैं. चुनाव के बाद पड़ोसी, पड़ोसी को नहीं देखना चाहेगा.

इस तरह की फ़ब्तियों में रूलिंग पार्टी को सदैव संयम का परिचय देना चाहिए क्योंकि उसकी ज़िम्मेदारी ज़्यादा है. उसको ख़ुद से इस तरह के बयानों से बचाना चाहिए. यूं भी विरोधी दल तो रूलिंग पार्टी की दिशा में ही बहेंगे. क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं होता. यह भी ध्यान रखना चाहिए, कि एक राष्ट्रीय दल को सदैव क्षेत्रीय दलों जैसी बयानबाजी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसका आभा मंडल बहुत विस्तृत होता है. मगर पिछले कुछ वर्षों से रूलिंग पार्टी इस ज़िम्मेदारी को नहीं समझ रही. इस तरह से हमलावर हो जाने से जीत भले मिल जाए, मगर आगे जिन समस्याओं से रू-ब-रू होना पड़ेगा, वे उसे ही घेरेंगी.

सरकार को अपनी उपलब्धियां बतानी चाहिए

यूं भी उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार को अपनी सफलताएं गिनानी चाहिए, क्योंकि पिछले पांच वर्षों से वह सत्ता में है. न सिर्फ़ प्रदेश में बल्कि केंद्र में भी इसलिए सीएम ऐसा कोई बयान न दें, जिससे पब्लिक के बीच ग़लत मेसेज जाए. अगर वे विपक्ष के आरोपों या अनर्गल बयानों पर टिप्पणी करने के बजाय, उन्हें उसकी हताशा बताते तो मुख्यमंत्री का क़द बढ़ता. उत्तर प्रदेश में बीजेपी को पिछले चुनाव में बहुमत मिला था. इससे यह तो साबित हो ही गया था कि प्रदेश की जनता क्षेत्रीय दलों से मुक्ति चाहती थी. इसके पहले 1991 में बीजेपी सरकार आई थी. फिर किसी भी राष्ट्रीय दल को बहुमत नहीं मिल सका. किंतु इस तरह के बयानों से उसे लगने लगा है कि यदि बीजेपी नेता भी ऐसे बयान देंगे तो क्षेत्रीय दलों और उनमें अंतर क्या है!

दागी प्रत्य़ाशी में देने में सब बराबर

इसमें कोई शक नहीं कि कुबोल बोलने और दागी प्रत्याशियों को टिकट देने में बीजेपी और सपा लगभग समान पायदान पर खड़ी है. चूंकि उत्तर प्रदेश में यही दोनों दल आमने-सामने हैं, तब वोटर इन्हीं दोनों की तुलना करेगा. ऐसे में जब वह पाएगा, कि जली-कटी सुनाने और दागी उम्मीदवारों को टिकट देने में दोनों के बीच कोई अंतर नहीं है, तो उसे 2017 के अपने फ़ैसले पर ग्लानि होगी. लेकिन यहां तो बीजेपी खुद ही सिक्का यूं उछालती है कि सपा और उसके गठबंधन के नेताओं को गुगली फेंकने में मज़ा आनंद आने लगता है. फिर वे चाहे जयंत चौधरी हों या ओम प्रकाश राजभर अथवा शिवपाल सिंह यादव. वे सब लोग जो मन में आया बोलने लगते हैं.

उत्तर प्रदेश में इस तरह के बोल बोलने से आगे हालात और ख़राब होते जाएंगे, इस पर सोचा नहीं जा रहा.

यही नहीं बीजेपी और सपा ने जिस तरह के प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं, उनकी छवि जन-प्रतिनिधि कम आपराधिक अधिक है. एडीआर (Association for Democratic Reforms) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है, कि उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक दागी प्रत्याशी भाजपा के हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी के बाद सपा और फिर बसपा तथा रालोद है. उसी तरह धनबल में भी बीजेपी प्रत्याशी अव्वल हैं तथा सपा और कांग्रेस उसके बाद हैं.

अब इससे एक मेसेज यह जाता है कि बीजेपी के पास बाहुबल और धनबल बहुत ज़्यादा है. ऐसे में चुनाव आम जनता के पहुंच में कहां हुआ……

कोई किसी से कम नहीं

जब चुनाव में जनता के सरोकार न हों तब पब्लिक को प्रोवोक किया जाता है. इस अभियान में कोई किसी से कम नहीं. बीजेपी नेता अपने साथ बजरंग बली को लेकर आते हैं तो मेरठ से सपा उम्मीदवार रफ़ीक अंसारी ने कह दिया, हिंदू-गर्दी नहीं चलने देंगे. इस तरह के बयानों से यूपी विधान सभा में कैसे-कैसे लोग चुन कर आएंगे, यह सोच कर ही सिहरन होती है. और नेता कैसे क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग करेंगे, यह पूरे पुलिस तंत्र के लिए चिंता का विषय है. एक तरह से देखा जाए तो लगता है, उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में हर कोई निर्वस्त्र हो गया है. भुगतेगी तो बेचारी जनता.

अगर राजनेताओं को नियंत्रित कर पाने में राजनीति नाकाम हुई तो आने वाले दिन घोर अराजकता के होंगे. धर्म, समुदाय और जातियों के बीच की यह दूरी घाव पैदा कर रही है. हालांकि राजनीति की यह दशा-दिशा पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव से ही तय होने लगी थी किंतु उसे मीडिया में इतनी सुर्ख़ियां नहीं मिली थीं. पर उत्तर प्रदेश चुनाव में तो हर नेता के बोल-कुबोल हाई लाइट हो जाते हैं. यह जो गांस लोगों के दिल में पड़ने लगी है, उसका निकलना मुश्किल है. उत्तर प्रदेश में सात चरणों में वोट पड़ेंगे और हर चरण में तथा हर क्षेत्र में इसी तरह की बयानबाजी होगी, तब कैसे उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाया जा सकेगा!

(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.

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