इंदौर … सिस्टम का संक्रमण सुधरे तो पेट का संक्रमण पता चले … MY में 5 साल से एंडोस्कोपिक मशीन बंद; 50 पत्र लिखे, न खरीदी न सुधरवाई

‘हमारे पास दो-दो क्वालिफाइड (डीएम) डॉक्टर्स हैं, लेकिन एंडोस्कोपिक मशीन खराब होने के कारण विभाग की सेवाएं ठप पड़ी हैं। कोई काम नहीं हो रहा है। इस मामले को देखें और एक्शन लें।’ ये चंद लाइनें 5 साल में लिखी गई 50 से ज्यादा चिट्ठियों में से किसी एक की हैं। यह सिस्टम के संक्रमण की व्यथा प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल एमवाय की है। यहां 2017 से एंडोस्कोपिक मशीन खराब है।

पेट की बीमारी के मरीजों की जांच इस मशीन से की जाती है, लेकिन यहां पिछले पांच साल से यह सुविधा बंद है। मेडिसिन विभाग और पेट रोग विशेषज्ञों ने खुद मशीन सुधरवाने या नई खरीदने के लिए आला अधिकारियों को ये चिट्ठियां लिखी हैं। इसके बावजूद पांच साल बाद भी नतीजा सिफर है। विभाग में पेट रोग विशेषज्ञ डाॅ. अतुल शेंडे और डॉ. अमित अग्रवाल पदस्थ हैं।

दोनों ही डीएम-इन गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट हैं। पांच साल में दोनों ने एमवायएच के मरीजों की कोई एंडोस्कोपी नहीं की, क्योंकि मशीन खराब है। वहीं यह जांचें निजी अस्पताल में 3 से 5 हजार रुपए में होती हैं। एक ओपीडी में 20 से 25 मरीज ऐसे होते हैं, जिनको इस जांच की जरूरत पड़ती है। हफ्ते में 4 ओपीडी होती हैं।

2005 में खरीदी गई थी मशीन, 15 साल रहती है लाइफ

यह मशीन 2005 में खरीदी गई थी। कई बार पहले भी मशीन खराब हो चुकी है। इस कारण लोअर व अपर जीआई मशीन के लिए 2014 से मांग की जा रही है। वैसे भी इसकी अधिकतम उम्र 15 साल मानी जाती है, यानी मशीन की लाइफ खत्म हो चुकी है। अच्छी क्वालिटी की मशीन पर अधिकतम 50 लाख का खर्च आएगा।

मशीन न होने से इतने खराब हालात

रोज 10 से 15 मरीजों को रैफर करना पड़ रहा। इससे न केवल शिक्षण व अध्यापन बल्कि मरीज का मैनेजमेंट तीनों प्रभावित हो रहे हैं। कई सालों से मरीजों की एक भी एंडोस्कोपी नहीं की है। – डॉ. वीपी पांडे, मेडिसिन विभागाध्यक्ष

पांच साल से ढेरों पत्र लिख चुके हैं। जो मशीन थी, उसकी लाइफ पूरी हो चुकी है। उस कंपनी के अब पुर्जे भी नहीं मिल रहे हैं, इसलिए दुरुस्त भी नहीं करवा पा रहे। नई मशीन के लिए पांच साल से लगातार पत्र लिख रहे हैं। – डॉ. अतुल शेंडे, पेट रोग विशेषज्ञ

इस अनदेखी पर जिम्मेदारों के जवाब

मेरी जानकारी में जैसे ही यह मामला आया, तुरंत संज्ञान लिया गया। मशीन खरीदी के ऑर्डर हो चुके हैं।– डॉ. संजय दीक्षित, डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज

खरीदी का अधिकार कॉलेज प्रशासन का है। वहीं से तय होता मशीन कब, कहां से खरीदी जाएगी।-डॉ. पीएस ठाकुर, अधीक्षक

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