पहले चरण की 58 सीटों का सियासी समीकरण … 2017 में भाजपा को 43 सीटों का फायदा, बसपा को 18 तो सपा को 12 सीटों का हुआ था नुकसान, जानिए हॉट सीटें
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पश्चिम के 11 जिलों की 58 सीटों पर पहले चरण का मतदान आज है। इसमें मेरठ मंडल, आगरा मंडल की प्रमुख सीटें हैं। नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, बुलंदहशर में आज चुनाव होना है। इनका पिछले दो बार के विधानसभा चुनावों का परिणाम चौंकाने वाला रहा।
2017 के विधानसभा चुनावों की मोदी लहर में इन 58 में 53 सीटों भाजपा ने जीत हासिल की थी। 2012 में इनमें भाजपा केवल 10 सीटें जीत सकी थी। यानी, भाजपा को 44 सीटों का फायदा हुआ था। इसके बाद भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार बनने के बाद पश्चिम यूपी में बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कैराना पलायन, मुजफ्फरनगर दंगों को भाजपा ने जमकर भुनाया।
2017 में मोदी लहर का ऐसा जादू चला कि सपा, बसपा, रालोद का गढ़ कही जाने वाली सीटों पर भी कमल खिला। सपा ने कैराना में नाहिद हसन और मेरठ शहर में रफीक अंसारी की बस दो सीटें ही जीतीं। वहीं, रालोद सिर्फ छपरौली सीट पर जीत दर्ज कर पाई। बसपा ने मथुरा की मांट और हापुड़ से धौलाना कुल दो सीटें जीतीं। 2017 के चुनाव में मायावती की पार्टी बसपा 58 में से कुल 2 सीटों पर सिमट गई।
2012 में पश्चिम में तेजी से दौड़ा मायावती का हाथी
इन जिलों में अगर पिछले दो चुनावों के नतीजे देखें, तो सबसे ज्यादा असर बसपा पर हुआ है। 2012 से पहले यूपी में मायावती सरकार थी। हालांकि, 2012 में मायावती की बसपा चुनाव हार गई, लेकिन पश्चिम ने हाथी का पूरा साथ दिया। 2012 में 58 सीटों में से 20 सीटें लेकर बसपा नंबर एक पर रही थी।
वहीं, यूपी में 2012 में सरकार बनाने वाली अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी 2012 के चुनाव में पश्चिम में कुल 14 सीटें लाई थी। 2017 में सभी दलों को पछ़ाडकर आगे निकली भाजपा को 2012 में सिर्फ 10 सीटें ही मिली थीं। 2022 में अपने वजूद को बचाने उतरी कांग्रेस 2012 में पश्चिम में चार सीटें लाई थी, जबकि 2017 में तो खाता तक नहीं खुला। वहीं, किसानों की पार्टी रालोद ने नौ सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस लिहाज से देखें तो बसपा ने 20, सपा ने 14, भाजपा ने 10 और रालोद ने 9 सीटें जीती। कांग्रेस कुल चार सीट जीत सकी और मथुरा की एक सीट निर्दलीय रही।
2017 में | इतनी सीटें मिलीं | 2012 में | इतनी सीटें मिलीं |
भाजपा | 53 | भाजपा | 10 |
सपा | 2 | सपा | 14 |
बसपा | 2 | बसपा | 20 |
रालोद | 1 | रालोद | 9 |
कांग्रेस | 0 | कांग्रेस | 4 |
निर्दलीय | 0 | निर्दलीय | 11 |
अब राजनीतिक दलों की परीक्षा की घड़ी आ गई है। पश्चिमी यूपी के 11 जिलों की 58 सीटों पर चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में पहले चरण की उन 10 सीटों को देखते हैं, जिस पर रहेंगी सभी की नजर…
1- नोएडा: यह बीजेपी की अहम सीट है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बेटे और विधायक पंकज सिंह यहां से प्रत्याशी हैं। सपा-रालोद गठबंधन से सुनील चौधरी मैदान में है। सामने सपा से बगावत कर कांग्रेस में आई पंखुड़ी पाठक हैं। बसपा ने कृपाराज शर्मा को उतारा है। पंखुड़ी के आने के बाद यहां मुकाबला कठिन हो गया है।
2- कैराना: शामली जिले की कैराना सीट पश्चिमी यूपी के चुनाव का केंद्र बिंदु वाली सीट है। दंगा, पलायन, हिंदुत्व, ध्रुवीकरण चुनाव के ये सारे मुद्दे इसी सीट से उपजे हैं। राजनीति के चाणक्य अमित शाह, सीएम योगी सहित पूरी भाजपा 2014, 2017, 2019 के चुनावों में इसी कैराना का जिक्र करते हुए वोट हासिल करती रही है। यहां सपा से नाहिद हसन चुनाव लड़ रहे हैं।
नाहिद जेल में हैं। वे जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं। सामने भाजपा के कद्दावर नेता और यहां से सांसद रहे स्व. बाबू हुकुम सिंह की बेटी मृगांका हैं। नाहिद की बहन खुद चुनाव लड़ना चाहती थीं, अब भाई को चुनाव लड़ा रही है। इधर, मृगांका इस सीट पर पिछला चुनाव हारी थीं। बसपा के राजेंद्र सिंह, कांग्रेस के अखलाक भी इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
3- सरधना: मेरठ जिले की सरधना से भाजपा के फायर ब्रांड नेता और वर्तमान विधायक संगीत सोम मैदान में हैं। सामने अखिलेश की टीम के करीबियों में शामिल अतुल प्रधान मैदान में हैं। संगीत सोम के पास ठाकुरों के 24 गांवों, ठाकुर चौबीसी का मजबूत वोट बैंक है। छात्र राजनीति से नेता बने अतुल प्रधान के पास गुर्जरों का वोट है। संगीत और अतुल दोनों ही चर्चित नाम हैं। कांग्रेस से सईद रिहानुद्दीन तो बसपा से संजीव धामा चुनावी मैदान में हैं।
4- मुजफ्फरनगर: पहले दंगों और अब किसान आंदोलन के कारण चर्चित इस सीट पर भाजपा के मंत्री कपिलदेव अग्रवाल की प्रतिष्ठा दांव पर है। मंत्री के सामने गठबंधन ने सौरभ स्वरूप को उतारा है। भाकियू का गढ़ कही जाने वाली इस सीट पर किसान आंदोलन, किसान महापंचायत के कारण भाजपा की मुश्किलें बढ़ी हैं। राकेश टिकैत, नरेश टिकैत का क्षेत्र इसी सीट पर है। कांग्रेस से पंडित सुबोध और बसपा से पुष्कर पाल यहां से चुनावी मैदान में हैं।
5- हस्तिनापुर: मेरठ की यह सीट हमेशा चर्चा में रहती है। इस सीट के साथ कहावत जुड़ी है कि जिस दल का विधायक हस्तिनापुर से जीता, CM भी उसी पार्टी का बनता है। इस सीट पर कोई विधायक दोबारा जीत नहीं पाया, ये भी कहा जाता है। भाजपा से राज्यमंत्री दिनेश खटीक के सामने सपा ने पूर्व विधायक योगेश वर्मा को उतारा है, जो मेयर सुनीता वर्मा के पति भी हैं। वर्मा सीएए, एनआरसी आंदोलन में देशभर में चर्चित हुए थे।
तीसरा प्रमुख चेहरा कांग्रेस से अभिनेत्री अर्चना गौतम हैं। भाजपा के पूर्व विधायक गोपाल काली गठबंधन को समर्थन देकर सपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा को उनकी बगावत का खतरा है। वहीं, बसपा ने यहां से संजीव जाटव पर भरोसा जताया है। पूर्व मंत्री मुकेश सिद्धार्थ का बेटा यहां आजाद समाज पार्टी से मैदान में हैं।
6- जेवर: नोएडा की जेवर विधानसभा पर मौसम की तरह रंग बदलने वाले नेता अवतार सिंह भड़ाना चुनाव के दरम्यान ही भाजपा छोड़ सपा में आए थे। वह गठबंधन से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने भाजपा से विधायक धीरेंद्र सिंह फिर से उम्मीदवार हैं। बसपा से नरेंद्र भाटी और कांग्रेस से मनोज चौधरी मैदान में हैं।
7- आगरा ग्रामीण: आगरा ग्रामीण पर उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य चुनाव लड़ रही हैं। 2017 में यहां भाजपा के विजय सिंह राणा जीते थे, उनका टिकट काटकर बेबी रानी मौर्य को दिया है। सपा से महेश यादव मैदान में हैं। अतरौली से भाजपा ने पूर्व सीएम बाबू कल्याण सिंह के पौत्र और मंत्री संदीप कुमार सिंह को उतारा है।
8- बागपत: जाट बाहुल्य बागपत सीट पर भाजपा ने फिर से योगेश धामा को टिकट दिया है। सामने नवाब कोकब हमीद के बेटे अहमद हमीद गठबंधन प्रत्याशी हैं। किसान आंदोलन के बाद बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है। वहीं, जयंत चौधरी के सामने यहां राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती है। बसपा से अरुण कसाना और कांग्रेस से अनिल देव चुनाव लड़ रहे हैं।
9- मथुरा: यूपी के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा भाजपा से उम्मीदवार हैं। सामने गठबंधन ने पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल को उतारा है। जनता की नाराजगी के कारण मंत्री का यहां विरोध है। बसपा ने जगजीत चौधरी, कांग्रेस ने प्रदीप माथुर को टिकट दिया है। 2002 से 2017 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। मंत्री शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर है।
10- सिवालखास: मेरठ जिले की सिवालखास सीट सपा-रालोद गठबंधन की असलियत बताने वाली अहम सीट है। भाजपा ने वर्तमान विधायक का टिकट काटकर जाट चेहरे मनिंदर पाल सिंह को उतारा है। सामने गठबंधन से सपा के पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद हैं। गठबंधन में सीट रालोद को न मिलने के कारण यहां काफी विवाद हुआ। वहीं, मनिंदर पाल भाजपा प्रत्याशी का भी जनता में काफी विरोध हो रहा है।