गोरखपुर में योगी को घेरने की तैयारी ..
जाति के नाम पर वोट पड़े तो बदल जाएगा समीकरण, 2 ब्राह्मण चेहरों और एक दलित ने बिगाड़ा गेम प्लान; अकेले कायस्थ से बढ़ी मुश्किलें….
गोरखपुर शहर का विधानसभा चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प होने वाला है। शहर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद भाजपा के उम्मीदवार तो हैं, लेकिन इस बार का चुनाव उनके लिए इतना आसान नहीं दिख रहा है। योगी को उन्हीं के गढ़ में घेरने के लिए विपक्षी पार्टियों ने कोई कोर- कसर नहीं छोड़ी है। योगी आदित्यनाथ की कथित ठाकुरवाद की राजनीति से नाराज अन्य वर्ग के लोग भी अगर इस बार जाति के नाम पर वोट दिए तो यहां का चुनावी समीकरण पूरी तरह बिगड़ जाएगा। ऐसे में अब योगी आदित्यनाथ की सीट निकलने का एक मात्र सहारा हिंदुत्व ही फिलहाल दिख रहा है।

सपा और कांग्रेस ने उतारे ब्राह्मण चेहरे
योगी सरकार से कथित रुप से नाराज ब्राह्मणों को देखते हुए इस बार सपा और कांग्रेस ने उनके खिलाफ ब्राह्मण चेहरों को ही उतारा है। इसमें सपा से भाजपा के उपाध्यक्ष रहे स्व. उपेंद्र दत्त शुक्ल की पत्नी सुभावती शुक्ल को योगी के खिलाफ खड़ा किया है, जबकि कांग्रेस ने भी शहर सीट से छात्र संघ उपाध्यक्ष रहीं चेतना पांडेय को मैदान में उतारा है। हालांकि शहर में करीब 55 से 60 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। ऐसे में नाराज ब्राह्मण वोटर्स अगर इस बार जाति के नाम पर वोट दिए तो यह वोट सीधा सपा और कांग्रेस में बंट जाएगा।

सुभावती आई नहीं लाई गई हैं!
दरअसल, यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनते ही उनका ठाकुर मोह और ब्राह्मणों की उपेक्षा से नाराज अन्य वर्ग के लोग शुरू से ही इसके विरोध में हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि योगी के करीबी रहे उपेंद्र शुक्ल की पत्नी सुभावती शुक्ल सपा में आई नहीं बल्कि लाई गई हैं।
कहा जा रहा है कि इस गेम प्लान के पीछे पूरा हाथ योगी के सबसे बड़े विरोधी बाहुबलि पं. हरिशंकर के हाता का है। क्योंकि हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी और भांजें गणेश पांडेय की ही मौजूदगी में सुभावती शुक्ल को अखिलेश यादव से मिलवाकर सपा में शामिल कराया गया। ताकि उन्हें यहां से योगी के खिलाफ ब्राह्मण चेहरा बनाकर उतारा जा सके। जिससे चुनाव में योगी से नाराज ब्राह्मण वर्ग के लोगों का वोट सपा में शामिल हो। जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को होगा।

आप के विजय श्रीवास्तव बनें मुसीबत
उधर, शहर विधानसभा सीट पर सबसे अधिक 95 हजार कायस्थ मतदाता देखते हुए आम आदमी पार्टी ने विजय श्रीवास्तव को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि चुनाव सिर पर आते ही योगी आदित्यनाथ लगातार कायस्थ वर्ग को साधने में जुटे हुए हैं। नामाकंन के प्रस्तावकों में डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव को शामिल करने से लेकर प्रबुद्ध सम्मेलन में कायस्थ चेहरों को शामिल कर इस जाति के लोगों को रिझाने की कोशिश भाजपा ने शुरू कर दी है क्योंकि विजय श्रीवास्तव से भाजपा को भी खौफ दिखने लगा है।
योगी आदित्यनाथ के नामांकन के दौरान आप प्रत्याशी विजय श्रीवास्त्व का योगी, अमित शाह और शिवप्रताप शुक्ल से आमना- सामना जब हुआ तो कलेक्ट्रेट परिसर में लोगों ने एक- दूसरे का अभिवादन करते हुए मजाक के तौर पर शिवप्रताप शुक्ल ने विजय श्रीवास्त्व से योगी को समर्थन देने की भी बात की।

चंद्रशेखर ‘रावण’ को दलित, OBC और मुस्लिम का समर्थन
इतना ही नहीं योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनावी ताल ठोकने वाले आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण इस वक्त दलित वर्ग का एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। चंद्रशेखर का दावा है कि CAA और NRC कानून को लेकर दिल्ली के जंतर- मंतर पर लड़ने वाले चंद्रशेखर को मुस्लिम समाज का भी अच्छा समर्थन मिलता आया है। इसी की बदौलत वह हमेशा यहां से योगी आदित्यनाथ को हरा देने की बात करते आ रहे हैं।
ऐसे में राजनैतिक पंडितों का मानना है कि इस बार के चुनाव में चंद्रशेखर आजाद को दलितों के साथ ही OBC और मुस्लिम वर्ग का अच्छा समर्थन मिलने की संभावना है। शहर विधानसभा सीट पर 50 हजार से अधिक मुस्लिम वोटों के साथ ही निषाद 25 हजार, दलित 25 हजार तो यादव 25 हजार मतदाता बताए जाते हैं।

बसपा के ख्वाजा शमसुद्दीन बनें वोट कटवा
वहीं, बसपा सुप्रीमों मायावती ने गोरखपुर में योगी अदित्यनाथ और सिराथू से केशव मौर्य के समाने मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर बीजेपी की बड़ी मदद कर दी है। बसपा ने गोरखपुर से ख्वाजा शमसुद्दीन को योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मैदान में उतारा है। बसपा प्रत्याशी बीजेपी के लिए सपा के वोट कटवा कैंडिडेट साबित होंगे। जाहिर सी बात है कि अगर जाति के नाम पर वोट पड़े तो मुस्लिम वर्ग का अच्छा खासा वोट बसपा के खाते में जाएगा। इसका सीधा नुकसान सपा और फायदा भाजपा को होगा।
क्या है गोरखपुर का जातीय समीकरण?
गोरखपुर सदर सीट पर वर्तमान में 4,53,662 मतदाता हैं, जिनमें 2,43,013 पुरुष और 2,10,574 महिला हैं। इस सीट पर 95 हजार से अधिक कायस्थ मतदाता हैं जबकि 55 हजार ब्राह्मण हैं। 25 हजार क्षत्रिय और 50 हजार के लगभग मुस्लिम मतदाता है। वैश्य मततदाता की संख्या भी 50 हजार से ज्यादा है। निषाद 25 हजार, दलित 25 हजार तो यादव 25 हजार बताए जाते हैं। वहीं, विश्वकर्मा 4 हजार, पंजाबी 7 हजार, सिंधी 7 हजार, बंगाली 6 हजार मतदाता हैं।
गोरखपुर सदर सीट का इतिहास
यूपी की 403 विधानसभा में एक गोरखपुर सदर विधानसभा 322 नंबर से जानी जाती है। 1951 में इस सीट पर पहली बार चुनाव हुआ था। तब कांग्रेस के इस्तिफा हुसैन पहली बार विधायक बने थे। 1962 में कांग्रेस के नेमतुल्लाह अंसारी विधायक चुने गए। 1967 में यह सीट भारतीय जनसंघ के पास चली गई और उदय प्रताप दुबे विधायक बने। 1969 में कांग्रेस के राम लाल भाई जबकि 1974 से 1977 तक वरिष्ठ अधिवक्ता अवधेश कुमार श्रीवास्तव जनसंघ से विधायक चुने गए। तीन बार जनसंघ का विधायक होने के बाद 1984 में यह सीट कांग्रेस के सुनील शास्त्री ने जनसंघ से छीन ली पर 1989 में यह सीट फिर भाजपा ने शिव प्रताप शुक्ला ने कांग्रेस से छीन ली। तब से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है।