कुंडलपुर/दमोह … जानिए क्या होता है पंचकल्याणक … जानिए क्या होता है पंचकल्याणक-नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का महोत्सव है पंचकल्याणक: मुनि संधानसागर
कुंडलपुर पंचकल्याणक महामहोत्सव आज से शुरू हो चुका है। पंचकल्याणक को लेकर हर किसी के मन में सवाल उठते होंगे कि आखिर ये क्या है। इसका धार्मिक महत्व क्या है? आचार्य विद्यासागर महाराज के सुशिष्य मुनि संधान सागर के मुताबिक नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का महोत्सव है पंचकल्याणक।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नैमित्तिक महोत्सव है। यह नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा बनने और मिथ्या दृष्टि से सिद्ध अवस्था को प्राप्त करने की प्रक्रिया का महोत्सव है। जिस प्रकार से जैनेतर धर्म में प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव होते हैं और श्वेतांबर में अंजन शलाका महोत्सव होता है। उसी प्रकार दिगंबर में पंचकल्याणक की प्रक्रिया होती है।
गर्भ में आने से लेकर मोक्ष तक की यात्रा का जीवंत चित्रण है पंचकल्याणक
यहां पर अवतारवाद नहीं है। जैसे एक सामान्य व्यक्ति का जन्म होता है, वैसे ही तीर्थंकर का भी जन्म होता है। गर्भ में आने से लेकर मोक्ष तक की यात्रा का जीवंत चित्रण पंचकल्याणक के माध्यम से देखने को मिलता है। जन्म तो सबका होता है लेकिन कुछ लोग जीवन ऐसा जीते हैं, जो अन्य के लिए भी आदर्श बन जाते हैं। अपना तो कल्याण कर ही लेते हैं, लेकिन उनके संपर्क में आने वालों का भी कल्याण हो जाता है।
पौराणिक पुरुषों के जीवन का संदेश घर-घर पहुंचाने का है उद्देश्य
पौराणिक पुरुषों के जीवन का संदेश घर-घर पहुंचाने के लिए इन महोत्सवों में पात्रों का अवलम्बन लेकर सक्षम जीवन यात्रा को रेखांकित किया जाता है। पंचकल्याणक तीर्थंकर भगवान के गर्भ में आने से लेकर मोक्ष जाने पर्यन्त विशिष्ट समारोहों के रूप में मनुष्य व देवताओं द्वारा यथासमय मनाये जाते हैं। ये कल्याणक इनके तीर्थंकर नामक सर्वातिशायी पुण्य प्रकृति के उदय से ही होते हैं, क्योंकि सामान्य केवलियों के वह नहीं होते। पंचकल्याणक तीर्थंकरों के ही होते हैं।
पंचकल्याणक की ही क्रिया के साथ नई मूर्तियां प्रतिष्ठित होती हैं
विविध धाार्मिक आयोजनों के साथ पंचकल्याणक की ही क्रिया के साथ नई मूर्तियां प्रतिष्ठित होती हैं और पूजनीय मानी जाती है। पंचकल्याणक, जैन ग्रन्थों के अनुसार वे पांच मुख्य घटनाएं हैं जो सभी तीर्थंकरों के जीवन में घटित होती हैं। ये पांच कल्याणक हैं-
गर्भ कल्याणक : जब तीर्थंकर प्रभु की आत्मा माता के गर्भ में आती है।
जन्म कल्याणक : जब तीर्थंकर बालक का जन्म होता है।
तप कल्याणक : जब तीर्थंकर सब कुछ त्यागकर वन में जाकर मुनि दीक्षा ग्रहण करते है।
ज्ञान कल्याणक : जब तीर्थंकर को कैवल्य की प्राप्ति होती है।
मोक्ष कल्याणक : जब भगवान शरीर का त्यागकर अर्थात सभी कर्म नष्ट करके निर्वाण/ मोक्ष को प्राप्त करते है।