उत्तर प्रदेश चुनाव: राममंदिर निर्माण अब चुनावी मुद्दा नहीं! भाजपा को चौथे चरण में मिलेगी कठिन चुनौती
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक …….से कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार में भी हाथरस, आगरा, गोरखपुर कांड और फाफामऊ-लखीमपुर खीरी कांड हुए हैं जो भाजपा को असहज करते दिखते रहे हैं। लेकिन अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई योगी आदित्यनाथ सरकार की नीति का ही परिणाम है कि सुरक्षा का मुद्दा उनके खिलाफ न जाकर यह सपा के विरुद्ध जाता दिख रहा है…
शुरुआती दौर में भाजपा ने अपनी चुनावी मुहिम एक बार फिर अयोध्या में मंदिर निर्माण मुद्दे के सहारे ही शुरू करने की कोशिश की थी। अयोध्या में भव्य दीपावली पूजन कार्यक्रम संपन्न कराकर भी योगी आदित्यनाथ ने उसके सहारे जनता को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की थी। वे कभी कभार अपने चुनावी भाषणों में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाते भी दिखे, लेकिन इस पर जनता की तरफ से कोई विशेष सकारात्मक प्रतिक्रिया न देख उन्होंने भी इस मुद्दे को पीछे छोड़ दिया। इसकी बजाय उन्होंने 80 और 20 और बुलडोजर का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया।
सपा ने बेरोजगारी-महंगाई को मुद्दा बनाया
उकसाऊ प्रतिक्रिया देने की बजाय वे प्रेस कांफ्रेंस के जरिए जिस तरह रोजगार और महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं, उससे पूरा चुनाव इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित होता दिखाई पड़ रहा है। आगे के चरणों में भी उनका यह स्टैंड बने रहने की उम्मीद है। संभवतया यही कारण है कि भाजपा ने बड़ी चतुराई से पूरा चुनाव सुरक्षा के मुद्दे से जोड़ना शुरू कर दिया। इससे चुनाव में उसे सुरक्षा को एक बड़ा मुद्दा बनाने में सफलता भी मिलती भी दिख रही है।
क्या राम मंदिर अब मुद्दा नहीं?
लिहाजा, उसने बड़ी ही सोची समझी रणनीति के तहत सपा को सुरक्षा के मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है। यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा के सत्ता में होने के बाद भी सुरक्षा का मुद्दा सपा के खिलाफ जा सकता है। जबकि योगी आदित्यनाथ सरकार में भी हाथरस, आगरा, गोरखपुर कांड और फाफामऊ-लखीमपुर खीरी कांड हुए हैं जो भाजपा को असहज करते दिखते रहे हैं। लेकिन अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई योगी आदित्यनाथ सरकार की नीति का ही परिणाम है कि सुरक्षा का मुद्दा उनके खिलाफ न जाकर यह सपा के विरुद्ध जाता दिख रहा है। सत्ता में न रहने के बाद भी सपा इस मुद्दे पर रक्षात्मक दिख रही है।
हालांकि, भाजपा जब विपक्ष में होती है और राष्ट्रवाद के मुद्दे के सहारे वह किसी सरकार को घेरती है तो यह मुद्दा ज्यादा कारगर होता दिखाई पड़ता है, लेकिन जब वह खुद सत्ता में है, यह मुद्दा उसके लिए कितना कारगर साबित हुआ है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
अब क्या रहेगी रणनीति
किसानों के सामने कई बड़े मुद्दे
गन्ना फसल की कीमत का मुददा केवल पश्चिमी यूपी तक सीमित नहीं है। यह अवध-पूर्वांचल के क्षेत्र में भी बड़ा मुद्दा है। जनवरी माह में ही गन्ना मूल्यों को लेकर किसानों ने बड़ा प्रदर्शन किया है। यूरिया और अन्य खादों की कालाबाजारी हो रही है। इस क्षेत्र की पूरी फसल सिंचाई पर आधारित है, जबकि उत्तर प्रदेश में सिंचाई का मूल्य सबसे ज्यादा पड़ता है जो कि किसानों की कृषि लागत मूल्य बढ़ाती है। भाजपा ने सरकार बनने पर किसानों को मुफ्त बिजली देने का वादा किया है, लेकिन चुनाव शुरू होने से पहले किसानों के ट्यूबवेल पर छापे भी मारे जा रहे थे। यही कारण है कि किसानों को भाजपा के वादे पर भी संदेह है।
इनके अलावा आवारा पशुओं के कारण खेती को हो रहा नुकसान किसानों को दी जा रही सहायता पर भारी पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि उन्हें अपने खेतों में भारी लागत लगाकर उन्हें आवारा जानवरों के लिए छोड़ने से बेहतर है कि वे खेती करना ही छोड़ रहे हैं। चौथे चरण में सरकार के लिए यह चिंताजनक बात हो सकती है।