Bhind .. 251 बाेतलों में 35 लीटर गंगाजल लेकर 150 किलोमीटर पैदल आएंगे कांवड़िये, कांवड़ को दिया अयोध्या के राम मंदिर का लुक
MP की सबसे बड़ी कांवड़ ….
महाशिवरात्रि नजदीक है। भिंड से युवाओं का ग्रुप भ्री कांवड़ भरने के लिए उत्तरप्रदेश के श्रृंगीरामपुर गया है। दावा है कि ये प्रदेश की सबसे बड़ी कांवड़ है। 251 बोतलों में 35 लीटर गंगाजल लेकर आएंगे। कांवड़ का वजन करीब 80 किलो है। भिंड से करीब 150 किलोमीटर पैदल चलकर ये ग्रुप सोमवार देर रात भिंड पहुंच जाएगा। कांवड़ को अयोध्या के राम मंदिर का लुक दिया गया है। 20 लोगों का ये ग्रुप महाशिवरात्रि की सुबह वनखंडेश्वर महादेव पर गंगाजल चढ़ाएगा। ग्रुप के लोगों का कहना है कि इस बार 17वीं बार कांवड़ में गंगाजल लेकर आएंगे।
आंजनेय ग्रुप के युवा कांवड़ भर कर लाने के लिए उत्तरप्रदेश के फरुर्खाबाद जिले के श्रृंगीरामपुर के लिए रवाना हाे चुके हैं। ये युवा छोटे लोडिंग वाहन में सवार होकर गए हैं। वे श्रृंगीरामपुर पहुंच चुके हैं। ये युवा महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर भिंड जा जाएंगे। दो दिन में कांवड़ तैयार की गई है। इसमें छोटी-छोटी 251 डलिया लगाई गई हैं। यह तीन परतों में बंटी है। कांवड़ को रंग-बिरंगें कपड़ों यानी रूमाल, पताकाओं से सजाया गया है। कांवड़ को श्रृंगीरामपुर से जल भरकर दो युवा कंधे पर कांवड़ उठाकर चलेंगे।
दो दिन में तय करेंगे सफर
युवाओं की टीम इस कांवड़ को कंधे पर लेकर दो दिन में करीब 160 किलोमीटर का सफर पैदल तय करेंगे। टीम के सदस्य नितिन यादव का कहना है कि ये कांवड़ को दो लोग लेकर आते हैं। एक साथ कांवड़ लेकर चलने वाले सहयोगी को ये लोग जोटिया कहते हैं। एक जोटियां को एक साथ पैदल अधिकतम आठ से दस किलोमीटर चलने दिया जाता है। फिर दूसरा कांवड़ को थाम लेता है। कांवड़ के साथ-साथ ग्रुप के बाकी साथी पीछे-पीछे चलने वाले लोडिंग वाहन में आराम करते आते हैं।

बहुत भारी है कांवड़
टीम के सदस्य नितिन यादव ने बताया कि कांवड़ को बांधने में ही करीब 12 किलो रस्सी का प्रयोग किया गया है। गंगाजल भरने के बाद इसका वजन करीब 80 किलो हो जाएगा। इसमें करीब 35 लीटर गंगाजल आएगा।
वनखंडेश्वर महादेव पर चढ़ाएंगे
नितिन यादव का कहना है कि ग्रुप 17 साल से कांवड़ में गंगाजल लेकर आ रहा है। पहली बार दो डलिया की कांवड़ थी। पिछले साल 201 डलिया की कांवड़ लेकर आए थे। इस बार 251 डलियां की कांवड़ रहेगी। यह कांवड़ प्राचीन वनखंडेश्वर महादेव मंदिर में चढ़ाई जाएगी।
श्रृंगीरामपुर का इतिहास
महाभारत काल में जब दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने का प्रयास किया था, उस समय गंगा तट पर आकर गंगा की कंदरा में काफी समय तक पांडव छिपे रहे। पांडवों के साथ द्रोपदी और कुंती भी आई थी। द्रोपदी को पांचाली के नाम से भी जाना जाता है। इस वजह से यहां पांचाल नाम का घाट भी है। इसी घाट से कांवड़िए जल भरकर ले जाते हैं।
