बुलंदशहर की बेटियों के लिए NRI ने छोड़ दिया अमेरिका …?

अनूपशहर : मिलिए 82 साल के सैम से… उम्र भले ज्यादा हो, लेकिन सपने और सोच बहुत युवा हैं। जिस उम्र में लोग दूसरों का सहारा ढूंढते हैं, उस वक्त ये लोगों का सहारा बने हुए हैं। सैम का 33 एकड़ में बनाया हुआ बुलंदशहर का परदादा-परदादी स्कूल गांव की लड़कियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

स्कूल की छात्राओं के साथ अंकल सैम।
स्कूल की छात्राओं के साथ अंकल सैम।

साल 2000 में 45 छात्राओं के साथ शुरू हुआ ये स्कूल आज 3500 छात्राओं को फ्री में शिक्षा दे रहा है। स्कूल के फाउंडर 82 साल के वीरेंद्र सैम अमेरिका में काम करते थे, फिर घर लौट आए हैं। वीरेंद्र का मानना है कि महिलाओं का शिक्षित होना बहुत जरूरी है। आज उनका स्कूल 22 साल का हो गया है। उनका लक्ष्य छात्राओं की संख्या 6 हजार करना है।

अंकल सैम ने स्कूल का नाम परदादा-परदादी रखा।
अंकल सैम ने स्कूल का नाम परदादा-परदादी रखा।

लड़कियों को फ्री एजुकेशन देने का आइडिया क्यों आया? पढ़िए सैम की जुबानी…

सैम बताते हैं, “मैं साल 1965 में नौकरी करने अमेरिका गया था। वहां मैंने 35 साल नौकरी की। अमेरिका में रहते हुए यह समझा कि महिला का शिक्षित होना पूरे परिवार के शिक्षित होने के बराबर है। मैं जब भी अपने गांव बिचौला आता तो यहां की हालत देखकर बहुत दुखी होता था। उस समय मेरे गांव में एक घर भी ऐसा नहीं था जहां की लड़कियां पढ़ने जाती हों। वो बस घरेलू और खेती किसानी के काम में लगी रहती थीं। जब बड़ी होतीं तो उनकी शादी कर दी जाती थी। तभी से मैंने ठान लिया था कि एक दिन ऐसा स्कूल खोलूंगा जहां फ्री में छात्राएं शिक्षित होंगी।”

स्कूल के अंदर छात्राएं प्रार्थना करती हुई।
स्कूल के अंदर छात्राएं प्रार्थना करती हुई।

सैम आगे बताते हैं, “साल 2000 में वह दिन आ गया। मैं अमेरिका की नौकरी छोड़कर वापस अनूपशहर आ गया। मेरे पास अपने खुद के खेत थे। मैंने उस पर ही स्कूल खोल दिया। मेरे पास करीब ढाई करोड़ रुपए थे। मैंने अपने NRI दोस्तों से मदद मांगी। उन्होंने ने भी मेरी मदद की। सबसे पहले स्कूल का एक ब्लाक 6 महीने में बनकर तैयार हुआ। धीरे-धीरे स्कूल में वैसे 15 ब्लाक बन गए। आज स्कूल में 16 करोड़ रुपए सालाना खर्च होते हैं। एक छात्रा पर 40 हजार रुपए का खर्च सालाना होता है।”

स्कूल की छात्राएं खेलने के लिए बाहर भी जाती हैं।
स्कूल की छात्राएं खेलने के लिए बाहर भी जाती हैं।

मुझे विदेशों में भारत की इमेज को सुधारना था
सैम बताते हैं, “जब मैं अमेरिका गया तो वहां भारत की इमेज अच्छी नहीं थी। यहां के लोगों को अशिक्षित समझा जाता था। मुझे ये सोच दूर करनी थी। मेरे गांव में जो परिवार गरीब हैं उनके घर की लड़कियों की शिक्षा का खर्चा मैंने उठाना शुरू किया। फिर सोचा उन बच्चियों को शिक्षित कर देना सबसे बड़ी कामयाबी होगी।

मैंने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की छात्राओं को स्कूल में फ्री में ड्रेस, खाना, आने-जाने का खर्चा, 10 रुपए रोज और रोजगार की गारंटी देने लगा। 2 साल में मैं अपने स्कूल में छात्राओं की संख्या 6 हजार लेकर जाऊंगा। मेरे स्कूल की पढ़ी 141 छात्राएं आज अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हैं। 126 लड़कियां विदेश में नौकरी कर रही हैं।”

स्कूल के अंदर छात्राएं दिन का खाना खाती हुईं।
स्कूल के अंदर छात्राएं दिन का खाना खाती हुईं।

ऐसा है परदादा-परदादी स्कूल का इन्फ्रास्ट्रक्चर
स्कूल में 130 शिक्षकों का स्टाफ है। इसके अलावा क्षेत्र के क्वालिफाइड टीचर और देश-विदेश से वालंटियर भी पढ़ाने आते हैं। स्कूल के अंदर पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद, लैब, एक्स्ट्रा एक्टिविटी, खाना बनाना, सफाई करना, मूवी देखना, यू-ट्यूब पर पढ़ाई से संबंधित वीडियो देखना, प्रतियोगिताओं का आयोजन करना, गाने गाना, डांस करना, कम्प्यूटर आदि भी सिखाया जाता है।

स्कूल में 12वीं की छात्राओं की फेयरवेल पार्टी भी की जाती है।
स्कूल में 12वीं की छात्राओं की फेयरवेल पार्टी भी की जाती है।

छात्राओं को मिलती है जूडो कराटे की ट्रेनिंग
छात्राओं को स्कूल में कढ़ाई-सिलाई, लाइब्रेरी में किताबें पढ़ना और जूडो कराटे की ट्रेनिंग भी दी जाती है। स्कूल में 100 बसें छात्राओं की सुविधा के लिए रखी गई हैं। वहीं लगभग 100 छात्राएं साइकिल से स्कूल आती हैं। स्कूल में प्रार्थना के लिए एक बड़ा सा ग्राउंड बनाया गया है। स्कूल में पेड़-पौधे भी लगाए गए हैं। इनकी देखभाल छात्राएं करती हैं।

लैब के अंदर छात्राएं प्रैक्टिकल करती हुईं।
लैब के अंदर छात्राएं प्रैक्टिकल करती हुईं।

सैम की बेटियों ने रखा है स्कूल का नाम
सैम की शादी साल 1963 में हुई थी। वो अपनी पत्नी के साथ अमेरिका में रहते थे। उनकी दो बेटियां हैं। जो अमेरिका में रहती हैं। उनकी शादी वहीं पर हो गई है। सैम की बेटियों ने ही स्कूल के नाम का आइडिया दिया था। सैम की पत्नी का देहांत हो चुका है। सैम अनूपशहर में अपने भतीजे के पास आते जाते रहते हैं।

स्कूल के ग्राउंड पर खेलती हुईं छात्राएं।
स्कूल के ग्राउंड पर खेलती हुईं छात्राएं।

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