बनारस में भी हैं रामेश्वर, ओंकारेश्वर और कालेश्वर …. काशीखंड में 524 शिवलिंग में से अभी भी 200 शिवलिंग कहीं गुम; यहां जानें सभी की खासियत

शिव की नगरी काशी में हर गली, हर घर और घाट पर मंदिरों और शिवलिंग की पूरी एक श्रृंखला ही मौजूद है। इस पुरातन नगरी में कई स्वयंभू, द्वादश शिवलिंग और उनके प्रतिरूप हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग और पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक सिंह बताते हैं कि काशीखंड में 524 शिवलिंगों का उल्लेख है, जिसमें से अभी तक केवल 324 शिवलिंग ही मिल सके हैं। शेष का पता अब तक नहीं चल सका है।

आज महाशिवरात्रि पर्व पर हम जानते हैं वाराणसी के प्रमुख शिव मंदिरों के बारे में…

  • आदि विश्वेश्वर महादेव : द्वादश शिवलिंगों में से एक काशी के आदि विश्वेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग हैं। औरंगजेब के ध्वस्त कराने के बाद यहां मंदिर की नींव पर ज्ञानवापी मस्जिद बना दिया गया।
  • श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर : इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा 1779 में स्थापित इस मंदिर को ही द्वादश शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। वर्तमान में मंदिर पूरब की ओर से अब मां गंगा के ललिता घाट से भी जुड़ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 13 दिसंबर को श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का उद्घाटन किया था।
  • महामृत्युंजय महादेव : स्वयंभू शिवलिंग के रूप में शिव विराजमान हैं। महाशिवरात्रि पर मंदिर के दर्शन और रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। आयुर्वेद के जनक धनवंतरि ने यहां स्थित कूप में अपनी औषधियां डाल दी थी, जिसके बाद इस कूप का पानी पीने से रोगों से मुक्ति की बात कही जाती है।
  • नया विश्वनाथ मंदिर : वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित इस मंदिर की स्थापना जीडी बिड़ला की मदद से भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1931 में की थी। यह वाराणसी का सबसे ऊंचा शिखर वाला मंदिर है। इसकी ऊंचाई 252 फीट है। पूरा मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है।
शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग।
शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग।

शूलटंकेश्वर महादेव : वाराणसी के दक्षिणी सिरे पर स्थित इस मंदिर को काशी का दक्षिणी द्वार कहा जाता है। गंगा यहां पर पूरी तरह से उत्तरवाहिनी हो गईं हैं। जनश्रुति यह भी है कि गंगा के अवतरण पर भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपना त्रिशूल गाड़कर गंगा को रोकने का वचन लिया कि गंगा काशी से ही प्रवाहित होंगी। वहीं, यहां पर स्नान करने वालों को जलीय जीवों से कोई खतरा नहीं होना चाहिए। गंगा ने दोनों वचन स्वीकार किया जब जाकर शिव ने अपना त्रिशूल वापस खींच लिया। इसी वजह से इस जगह का नाम शूलटंकेश्वर महादेव पड़ गया।

कैथी स्थित गंगा-गोमती संगम पर मार्कंडेय महादेव मंदिर।
कैथी स्थित गंगा-गोमती संगम पर मार्कंडेय महादेव मंदिर।

मार्कंडेय महादेव : वाराणसी में कैथी स्थित गंगा-गाेमती संगम पर स्थित इस मंदिर के बारे कहा जाता है कि यहां से यमराज को भी पराजित होकर लौटना पड़ा था। शैव-वैष्णव मत दोनों को मानने वाले यहां पर आते हैं। यह मंदिर वाराणसी को पूर्वांचल के दूसरे जिलों से जोड़ता भी है।

तिलभांडेश्वर महादेव में मौजूद स्वंयभू शिवलिंग।
तिलभांडेश्वर महादेव में मौजूद स्वंयभू शिवलिंग।

तिलभांडेश्वर महादेव : काशी के तीन बड़े शिवलिंगों में से एक तिलभांडेश्वर महादेव में स्वयंभू शिवलिंग हैं। मदनपुरा के इस इलाके के बारे कहा जाता है कि यहां प्राचीन काल में तिल की खेती होती थी। अचानक से मिट्टी के अंदर शिवलिंग मिल गया। लोगों ने सबसे पहले तिल चढ़ाकर पूजा की और तब से यही नाम रखा गया। इस मंदिर को मुस्लिम शासकों ने तीन बार तोड़ा था।

रत्नेश्वर महादेव : अपने अक्ष पर 9 डिग्री तक झुका यह मंदिर ज्यादातर समय पानी में डूबा रहता है या तो काफी गाद जमी रहती है। पूरे साल यहां पर एक बार ही पूजा होती है। यह मंदिर कई शताब्दियों से पीसा की मीनार से भी ज्यादा झुका है।

कर्दमेश्वर महादेव : यह शिव मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। पंचक्रोशी मार्ग स्थित कंदवा गांव में यह मंदिर स्थित है। मंदिर की स्थापत्य कला अद्भुत लगती है। पंचक्रोशी यात्रा यहां दर्शन के बाद ही आगे की ओर बढ़ते हैं।

कृति वाश्वेश्वर : मारकंडेय महादेव रोड पर हर तीर्थ तालाब के पश्चिम में अवस्थित इस मंदिर में भक्त शिवरात्रि पर अनिवार्य रूप से आते हैं। इस दिन काशी में चतुर्दिक लिंग पूजा का विधान है। इसमें से एक इनका भी नाम है।

रामेश्वर मंदिर।
रामेश्वर मंदिर।

रामेश्वर : पंचक्रोसी यात्रा मार्ग में आता है। भगवान श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न यहां पर आए थे और सभी ने एक-एक शिवलिंग की स्थापना की थी। द्रविड़ शैली में बना यह मंदिर वरुणा नदी के किनारे है। भक्त नदी को हिंद महासागर की पाक खाड़ी मानकर पूजा और अर्चना करते हैं।

मध्यमेश्वर : हिमालय पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग मध्यमेश्वर महादेव का एक रूप काशी में है। जिसे नाभि केंद्र के तौर पर जाना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार मध्यमेश्वर वह केंद्र है जिसके पांच कोश लगभग 17,600 किलोमीटर वृत्त बनता है। वह क्षेत्र काशी है।

मणिकर्णेश्वर : मणिकर्णिका घाट के पास स्थित यह मंदिर शिव के नृत्य और विष्णु को आशीष देने के रूप में स्थापित है। काशी की तीर्थ यात्राओं में इस शिवलिंग का उल्लेख मिलता है।

व्यासेश्वर : गंगा पार रामनगर किले परिसर में स्थित शिवालय को व्यासेश्वर कहा जाता है। इसकी स्थापना स्वयं वेदों के रचियता वेदव्यास ने की थी। माघ महीने के हर सोमवार को इस शिवलिंग के दर्शन-पूजन किए जाते हैं।

केदारेश्वर महादेव : गंगा किनारे केदार घाट के पास स्थित इसे काशी का सबसे पविद्ध स्थान माना जाता है। भगवान विष्णु ने यहां पर ध्यान लगाया था। यहीं पर गौर कुंड भी है।

ओमकारेश्वर : पठानी टोला, मछोदरी में स्थित इस मंदिर में वैशाख शुक्ल चतुर्दशी की वार्षिक पूजा और श्रृंगार किया जाता है। काशी खंड में इसका नाम नादेश्वर और कपिलेश्वर भी है।

वृद्ध कालेश्वर : महा मृत्युंजय महादेव मंदिर के पास उज्जैन के महाकालेश्वर के प्रतीक हैं। इनकी पूजा करने से रोगों से छुटकारा मिल जाता है।

अन्य प्रमुख शिव मंदिर

  • नेपाल मंदिर पशुपतिनाथ
  • अप्पा स्तंबेश्वर महादेव
  • आत्म वीरेश्वर महादेव
  • धर्मेश्वर
  • गभाटेश्वर महादेव
  • जागेश्वर
  • तारकेश्वर

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