इंदौर का 306वां फाउंडेशन डे आज:देखिये 300 साल पुराने उन ऐतिहासिक गवाहों को जिनके सामने साकार हुआ इंदौर
- आज ही के दिन इंदौर को मिला था कर मुक्त व्यापार का दर्जा, इसलिए आज मनाया जाता है स्थापना दिवस
मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में कर मुक्त व्यापार की शुरुआत इसी दिन यानी 3 मार्च 1716 में हुई थी। उस समय इंदौर के शासक राव राजाराव नंदलाल मंडलोई को इंदौर को विशेष आर्थिक क्षेत्र (कर मुक्त व्यापार) के रूप में स्थापित करने के लिए दिल्ली के मुगल दरबार से सनद मिली थी। इंदौर में आज भी नंदलाल मंडलोई की 12वीं पीढ़ी के युवराज वरदराज मंडलोई इस विरासत को संभाले हुए हैं।
![युवराज वरदराज मंडलोई अपनी मां के साथ।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2022/03/03/new-project-21_1646248961.jpg)
वरदराज ने बताया सनद में फारसी कैलेंडर की तारीख के रूप में ‘रबी उल अव्वल’ लिखा था। जमींदार परिवार ने उस शब्द का अनुवाद व प्रमाणीकरण लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी व फारसी एक्सपर्ट से करवाया। इससे स्पष्ट हुआ कि यह तारीख अंग्रेजी कैलेंडर की 3 मार्च 1716 है।
![राजसी एंट्री गेट।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2022/03/03/new-project-22_1646250218.jpg)
इस सनद को जयपुर के राजा सवाई राजा जयसिंह व पुणे के शासक बाजीराव पेशवा ने भी मान्य किया था। इसके बाद इंदौर से किए जाने वाले व्यापार को कर मुक्त किया गया था। इसी वजह से जूनी इंदौर स्थित बड़ा रावला का जमींदार परिवार 3 मार्च 1716 को मुगलों से मिली सनद के उपलक्ष्य में इंदौर का स्थापना दिवस मनाता आ रहा है।
वरदराज ने बताया इसके हिसाब से इंदौर में कर मुक्त व्यापार की शुरुआत को 305 वर्ष हो चुके हैं। यानी आज इंदौर अपना 306वां स्थापना दिवस मनाएगा। वर्ष 1700 से पहले कंपेल में नंदराव मंडलोई शासक थे। उस समय कंपेल के अंतर्गत आठ कचहरियां व 80 गांव थे। इसमें से एक कचहरी इंदौर के जूनी इंदौर स्थित बड़ा रावला में ही शामिल थीं।
वरदराज ने भास्कर को इंदौर के स्थापना दिवस पर शहर के जूनी इंदौर स्थित बड़ा रावला किले की कई ऐतिहासिक चीजों को दिखाया। मंडलोई ने इंदौर की स्थापना की गवाह रही ऐसी हेरिटेज वस्तुओं के बारे में बताया जिन्हें शहर को जानना जरूरी है। अपनी विरासत को पहचानने के लिए वरदराज मंडलोई ने खुलकर किस्से शेयर किये।
युवराज वरदराज ने बताया कि 21वीं सदी में भी महाराज की वह परंपरागत गादी अभी भी उसी हाल में रखी हुई है, जैसे राजा अपनी गाड़ी पर बैठते वक़्त रखते थे। नगाड़े, छत्र सभी आज भी धरोहर के रूप में उनके घर में सजी हुई है।
![शिकार गाड़ी व बग्गी](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2022/03/02/img20220302155902_1646241394.jpg)
बांस से बनी 250 बरस पुरानी पालकी। इसे रखने का अधिकार केवल राजा को होता था, इसलिए ये राज्य का प्रतीक भी थी। इसे दशहरे पर निकाला जाता था। प्रदर्शनी में शीशम की लकड़ी से बना हाथी का दो क्विंटल वजनी हौदा भी है, जिस पर बैठकर राजा खास मौके पर नगर भ्रमण करते थे। शिकार के वक्त इस्तेमाल होने वाले सादे हौदे भी हैं। हाथी के आभूषण भी गले में घंटियों वाला हार और अन्य चीजें भी हैं।19वीं सदी में राजसी परिवार की महिलाएं शिकरम (झरोखे वाली बैलगाड़ी) में बैठकर बाहर जाती थीं, जिसे प्रदर्शनी में रखा गया है। लकड़ी की बनी इस गाड़ी की छत पीतल की होती थी। झरोखों पर मखमल के पर्दे लगाए जाते थे। शिकरम में फोल्डिंग सीढ़ी भी होती थी। 1970 तक इस्तेमाल हुई कुछ घोड़ागाडि़यां भी रखी गई हैं।
![हाथी की अंबारी](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2022/03/02/img20220302160354_1646241439.jpg)
राजा की उस पालकी के बारे में युवराज ने बताया कि वह 300 साल पुरानी पालकी है। पालकी की सबसे बड़ी और अनोखी विशेषता यह थी कि से वर्ष में एक बार किसकी पूजा की जाती है। और वह वर्षों पहले केवल एक बांस की सहायता से बनाई गई थी। जो कि विशेष तरीके से इजाद की गई तकनीक थी।
![हाथी सरजू प्रसाद महावत चांद खां।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2022/03/02/img20220302160050_1646241469.jpg)
हाथी की अंबारी को पीठ पर लाद सके ऐसा प्रदेश में कोई हाथी नहीं
कुछ समय पहले राजघराने के युवराज वरदराज मंडलोई के कुछ समय पहले जनेऊ का कार्यक्रम था और रिश्तेदारों और समाज के लोगों ने कहा था कि युवराज वरदराज मंडलोई का जनेऊ का प्रोग्राम है तो हाथी के ऊपर ही सवार होकर यात्रा निकाली जाएगी लेकिन हाथी के पीठ पर रखने वाली अम्बारी को उठाने के लिए पूरे प्रदेश भर के साथियों को देखा गया। लेकिन वर्तमान में ऐसा कोई हाथी नहीं जो उनकी पुश्तैनी अंबारी को अपनी पीठ पर लाद सके। कई वर्षों पहले उनकी पीढ़ी में उनके पूर्वजों के घर एक हाथी हुआ करता था। जो कि अंबारी को लेकर चला करता था। जिसके बाद महाराज के परिवार द्वारा पालकी रख कर युवराज का जनेऊ कार्यक्रम आयोजित किया गया।
![रजवाड़ा की गजन](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2022/03/02/img20220302160118_1646241532.jpg)
रजवाड़ा की गजन आज भी मौजूद
युवराज वरदराज ने बताया कि उस समय पूरे शहर और अपनी प्रजा को समय बताने के लिए गजन का उपयोग किया जाता था। या तो उसके लिए घंटाघर होते थे या फिर रावला जिसे कहा जाता है। वह जगह होती थी। वर्तमान में सिर्फ यह गजल उसी जगह मौजूद है और आज भी इसकी ध्वनि इस बड़े रावला में सुनाई देती है।
रावला परिवार के आखरी हाथी सरजू प्रसाद
युवराज वरदराज ने बताया कि उनके दादाजी के पास आखरी हाथी सरजू प्रसाद था जो कि लगभग 2 मंजिला ऊंचा और उनकी पुश्तैनी अंबारी को लेकर महाराजा को शहर में घुमाने के लिए निकलता था। वही उस हाथी सरजू को चलाने वाले महावत का नाम था चांद खां का चित्र आज भी महल के अंदर दीवारों पर लगा हुआ है।