द कश्मीर फाइल्स … पल्लवी जोशी ने कहा-सिर्फ फारुख अब्दुल्ला ही नहीं, हर उस इंसान को कश्मीरी पंडितों से माफी मांगनी चाहिए; जो उनके गुनहगार हैं
द कश्मीर फाइल्स’ ने बॉक्स ऑफिस पर दमदार प्रदर्शन किया है। हालांकि, फिल्म की टाइमिंग और नीयत पर भी सवाल उठे हैं। इसमें प्रोफेसर राधिका मेनन का रोल प्ले करने वाली पल्लवी जोशी ने उन सभी सवालों पर अपने तर्क रखे हैं, जो फिल्म के खिलाफ उठाए जा रहे हैं। पल्लवी इस फिल्म के डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री की पत्नी भी हैं। पेश हैं पल्लवी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश –
अमूमन इंडियन ऑडियंस पर फील गुड फिल्में देखने के आरोप लगते रहे हैं, फिर भी इसमें त्रासदी की कथा को वो क्यों पसंद कर रही है?
मैं थोड़ा पीछे जाना चाहती हूं। हमारे मां-बाप अंग्रेजी हुकूमत वाले राजकाज में पैदा हुए थे। तब लोगों ने सीखा तो नहीं, मगर शायद हमने स्वीकार कर लिया कि सत्ता के खिलाफ सवाल मत करो। जी हुजूरी मत करो। लेकिन, जो उनके बाद की, यानी हमारी जो जेनरेशन है, वो आजाद भारत में पैदा हुई। हमारे बच्चे भी आज के भारत की पैदाइश हैं। हमने गलती और इत्तेफाक से अपने बच्चों में सवाल करने की आदत डलवाई है। यह एक नया भारत है। इस भारत को हर सच जानने का हक है। खासकर कश्मीरी पंडितों के सच को 32 सालों तक छिपाए रखा।
फिल्म में सीधे तौर पर तब के सीएम फारुख अब्दुल्ला का नाम लिया गया, क्या उन्हें माफी मांगनी चाहिए?
सिर्फ फारुख अब्दुल्ला ही नहीं, हर उस इंसान को कश्मीरी पंडितों से माफी मांगनी चाहिए, जो पंडितों के गुनहगार हैं। बल्कि कई स्क्रीनिंग में हम देख रहें हैं, आम लोग कश्मीरी पंडितों के पास आ रहें हैं और उनसे माफी मांग रहें हैं।
क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों से भी सपोर्ट और इसके टैक्स फ्री होने की घोषणाएं आ रही हैं?
छत्तीसगढ़ से तो हमें पता चला है कि वहां यह फिल्म गुरुवार तक टैक्स फ्री होने जा रही थी। हमें पूरे भारत से इस तरह का समर्थन मिल रहा है।
सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहें हैं कि इस फिल्म की वजह से इस्लामो फोबिया बढ़ेगा?
ऐसा अगर नॉन इवॉल्व्ड ऑडियंस कह रही है तो उसके मायने क्यों रखे जा रहें हैं? जो इवॉल्व्ड माइंड नहीं हैं वो तो कुछ भी नहीं बोलेंगे। बाकी हमारा इरादा आतंकवाद को एक्सपोज करने का था। वह हमने किया है। अब अनफॉरच्युनेटली वहां पर उस दौर में वहां मजहबी टेररिज्म हुआ, वह तो इतिहास है। उसे तो मैं नहीं बदल सकती। और अगर उसकी जगह मैं झूठा इतिहास दिखाऊं तो बतौर फिल्मकार मेरी क्रेडिबिलिटी कहां जाएगी?
यानी इसमें कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्याय, नाइंसाफी और उनके दर्द को जिस तरह दिखाया गया, वह अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं थी? पेड़ पर लटकी हुई लाशें जो दिखाई गईं, उन सब के रेफरेंस, ऑथेंटिक रिसर्च क्या थीं?
हमने नॉर्मल रिसर्च तो की ही, साथ ही हम उन कश्मीरी पंडितों से जाकर मिले, जिन्होंने किसी अपने को खोया। या जिनके घर लुट गए या जिनकी मां और बेटियों के साथ बलात्कार बहुत ही घिनौने तरीके से हुए हैं। या जिनके पिता की हत्या इस तरह की गई कि उनके शरीर के पचास टुकड़े कर दिए गए थे। उन लोगों से जाकर हम मिले और रिसर्च की। लिहाजा फिल्म में जो भी भयानक तरीके के सीन हैं, चाहे खून से सने चावल को खाने के इंसिडेंट हों या पेड़ से लटकी लाशें हों। यह सारी घटनाएं हमारे पास नाम के साथ हैं। उनके साथ नाइंसाफी नहीं, वहां नरसंहार हुआ था।
पर शायद रेपरकशंस की बात हो रही है कि लोगों में आपसी नफरतें बढ़ेंगी?
मेरे ख्याल से जो इवॉल्व्ड तबका है, समाज उससे चलती है।
एक सवाल और उठ रहा है कि गुनहगारों की जो आज की दूसरी या तीसरी पीढ़ी है, क्या उनसे भी नफरत करनी चाहिए? क्या उन्हें भी सजा देनी चाहिए?
ये तो इस बात पर तय होगा कि जो उनके गुनहगार पिता या दादा रहें हैं। अगर वैसी मानसिकता वो भी रखते हैं तो उनके साथ कैसा सलूक होना चाहिए? मगर वैसी मानसिकता नहीं रखते हैं तो उनके साथ गलत बर्ताव नहीं होना चाहिए। बाकी यह बात तो है कि किसी और के गुनाह की सजा किसी दूसरे को तो नहीं दी जानी चाहिए।
आप लोग पीएम मोदी से भी मिले, उनकी और क्या योजनाएं हैं, पंडितों के पुनर्वास को लेकर?
उनके जहन में कुछ तो था उन्होंने उस मुद्दे पर बनी इस फिल्म की तारीफ की है। आर्टिकल 370 उन्हीं के कार्यकाल में हटा, यकीनन उनके जहन में कुछ तो जरूर होगा।