सिंधिया का इमोशनल आशियाना … 39 साल जिस बंगले में रहे, ढाई साल बाद फिर करेंगे एंट्री; जानिए कैसे छिना था महाराज से ये किला

27, सफदरजंग रोड। ये उस सरकारी बंगले का पता है जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया का बचपन बीता और एक हार से वह इमोशनल बंगला छिन भी गया था। अब उस बंगले में सिंधिया की दोबारा एंट्री होगी। ये सिर्फ एक बंगला नहीं, बल्कि उनके बचपन की यादों का गुलदस्ता भी है। सिंधिया के लिए केवल ये ईंट पत्थर का बंगला नहीं बल्कि पिता से जुड़ाव की एक पहचान है।

आइए जानते हैं ज्योतिरादित्य के इस बंगले से जुड़ाव की कहानी…

2019 में चुनाव हारने के बाद सिंधिया को ये बंगला खाली करना पड़ा था। (फाइल)
2019 में चुनाव हारने के बाद सिंधिया को ये बंगला खाली करना पड़ा था। (फाइल)

42 साल पहले उनके पिता माधवराव को ये बंगला आवंटित हुआ था। ज्योतिरादित्य ने बचपन में इस बंगले में एंट्री की थी। इसके साथ उनके माता-पिता की खुशनुमा यादें जुड़ी हैं।

अपने पिता माधवराव सिंधिया के साथ उन्होंने राजनीति का ककहरा यहीं सीखा। सत्ता के गलियारे की हवा इस बंगले से होकर गुजरती थी। यहां सियासी बैठकों का सिलसिला चलता रहता था। ये सारी चीजें ज्योतिरादित्य के युवा कोरे मन पर सियासत की इबारत लिखती जातीं।

2001 में हवाई हादसे में पिता के असामयिक निधन के बाद सियासत की कमान अचानक ज्योतिरादित्य के कंधों पर आ पड़ी। तब उस बंगले में उन्होंने सियासत के जो गुर सीखे थे, वे उनके काम आए।

 

सिंधिया का सियासी सफर इसी बंगले से शुरू हुआ

ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी सफर इसी बंगले से शुरू हुआ था। 2001 में जब उनके पिता माधवराव सिंधिया की मृत्यु हुई, उसके तीन महीने बाद सिंधिया ने इसी बंगले में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली थी। राजनीति में यह पहला मौका था, जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने किसी के घर पहुंचकर उसे कांग्रेस में शामिल कराया। इस बंगले के लॉन में पूरा आयोजन हुआ था, जिसमें कांग्रेस के दिग्गज नेता शामिल हुए थे। उसके बाद सिंधिया अपनी परंपरागत सीट से उपचुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे थे। सामान्य तौर पर किसी भी नेता को पार्टी मुख्यालय में सदस्यता दिलाई जाती थी, लेकिन सिंधिया के लिए गांधी परिवार ने परंपरा तोड़ दी थी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी जॉइन कराने उनके घर पहुंचीं थीं सोनिया गांधी। साथ में कांग्रेस के अन्य दिग्गज भी थे। (फाइल)
ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी जॉइन कराने उनके घर पहुंचीं थीं सोनिया गांधी। साथ में कांग्रेस के अन्य दिग्गज भी थे। (फाइल)

महाराज इसी बंगले में मनाते रहे जन्मदिन

ग्वालियर के पत्रकार केशव पांडे बताते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का बर्थडे एक जनवरी को पड़ता है। वह अपना हर जन्म दिन इसी बंगले में मनाते थे। वे कहीं भी रहे हों, लेकिन एक जनवरी को उनका यहां आना तय रहता था।

मोदी लहर में छिना था बंगला

  • मोदी लहर से ज्योतिरादित्य भी नहीं बच सके थे। कांग्रेस में रहते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में वह हार गए थे। इस पर उनको वह बंगला भी बेमन से छोड़ना पड़ा था।
  • 2020 में कांग्रेस छोड़कर BJP जॉइन करने वाले ज्योतिरादित्य को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ये बंगला दोबारा आवंटित हुआ, लेकिन कब्जा पाने में उनको आठ महीने लग गए।
  • पिछले साल जुलाई में 27, सफदरजंग रोड का ये बंगला सिंधिया को आवंटित हुआ था। तब पूर्व शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक इसमें रह रहे थे।
  • BJP में शामिल होने के बाद जब सिंधिया को राज्यसभा का सांसद चुना गया, उस समय ही उन्हें दिल्ली में 3 बंगलों में से किसी एक को चुनने का ऑप्शन दिया गया था। तब उन्होंने निजी आवास आनंद लोक में ही रहना मुनासिब समझा और अपने इमोशनल बंगले को पाने के लिए प्रयास जारी रखा।

बंगले का सुनहरा इतिहास रहा है
42 साल पहले 1980 से ये बंगला ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया के पास था। इसके बाद वह राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। 1996 में कांग्रेस से अलग होकर माधवराव सिंधिया ने एमपी विकास कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई। हालांकि बाद में उसे कांग्रेस में मर्ज कर दिया था। इस तरह यह बंगला ज्योतिरादित्य के पिता की हर सियासी गतिविधि का केंद्र रहा। माधवराव सिंधिया के निधन के बाद भी यह बंगला सिंधिया परिवार के पास ही रहा। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में मंत्री बने, NDA सरकार में सांसद रहे। तब भी इसी बंगले में रहे। इस तरह लगभग 39 साल ज्योतिरादित्य के इसी बंगले में बीते।

ज्योतिरादित्य ने इस बंगले में पिता माधवराव सिंधिया के साथ एंट्री की थी। (फाइल)
ज्योतिरादित्य ने इस बंगले में पिता माधवराव सिंधिया के साथ एंट्री की थी। (फाइल)

पिता की अंतिम यात्रा इसी बंगले से निकली थी
2001 में हवाई हादसे में जब माधवराव सिंधिया का निधन हुआ, तब उनकी अंतिम यात्रा इसी बंगले से निकली थी। इसलिए भी ज्योतिरादित्य को इस बंगले से लगाव है। लगभग दो दशक तक उनके पिता का दिल्ली दरबार इसी बंगले में लगता था। मध्य प्रदेश से लेकर दूसरे राज्यों के बड़े नेताओं का इस बंगले में आना-जाना लगा रहता था।

पिता की नेमप्लेट कभी नहीं हटाई
ज्योतिरादित्य जब तक इस बंगले में रहे, तब तक अपने पिता की नेम प्लेट नहीं हटवाई। जब तत्कालीन शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को यह बंगला आवंटित हुआ, तभी माधवराव सिंधिया की नेमप्लेट हटी। हालांकि अब बंगले के बाहर किसी की नेम प्लेट नहीं है।

उत्तराखंड चुनाव तक चुप थी केंद्र सरकार
उत्तराखंड चुनाव तक केंद्र सरकार ने रमेश पोखरियाल निशंक से बंगला खाली करने के बाबत कुछ नहीं बोला। जैसे ही चुनाव खत्म हुए, निशंक को बंगला खाली करने का नोटिस मिला। 4 अप्रैल को निशंक ने पैकअप कर लिया।

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