संविधान एक्सपर्ट फैजान बोले .. जहांगीरपुरी का मामला अवैध निर्माण का नहीं; राइट-टु-वे का था, बिना जांच के बुलडोजर चला दिया

दिल्ली के जहांगीरपुरी के बाद अब CAA-NRC के विरोध का केंद्र रहे शाहीनबाग में बुलडोजर चलाने की तैयारी है। 27 अप्रैल को MCD ने लोकेशन का मुआयना किया और कहा कि अतिक्रमण को खाली कराया जाएगा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून को चैलेंज किया गया है, जिस पर 5 मई को सुनवाई होगी।

अतिक्रमण के नाम पर जारी कार्रवाई को लेकर आरोप लग रहे हैं कि एक खास समुदाय को टारगेट किया जा रहा है। देश में ‘बुलडोजर राज’ चल रहा है। कुछ बुद्धिजीवियों का ये भी कहना है कि यदि अवैध निर्माण पर कार्रवाई ही हो रही है तो सभी पर होनी चाहिए। चाहे वो नेता हो या सरकारी अधिकारी…।

सवाल:- लगातार कथित अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चल रहा है। आरोप लग रहे हैं कि देश में अब ‘बुलडोजर राज’ है।

जवाब:- मैं ऐसा नहीं मानता हूं कि देश में बुलडोजर राज चल रहा है। पहले भी दिल्ली के कई इलाकों शकूर बस्ती, ओखला में अवैध निर्माण पर बुलडोजर चले हैं। देश में हमेशा से अनऑथराइज्ड झुग्गियों को, बस्तियों को हटाया गया है। अक्सर इस तरह की कार्रवाई में कानून को फॉलो नहीं किया गया है।

हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट इस बात पर हमेशा से नाराजगी जताते रहे हैं कि जब तक कार्रवाई से पहले उन झुग्गी, बस्तियों को रिलोकेट नहीं किया जाता है। तब तक यह मनमाना और अनुचित होगा।

जहांगीरपुरी मामला अवैध निर्माण का नहीं, राइट-टु-वे का था। यानी सड़कों पर अवैध कब्जा। कोई रेहड़ी लगाए हुए है तो कोई दुकान, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का ही आदेश है कि हॉकर्स को अपने सामान को पब्लिक प्लेस पर बेचने का अधिकार है।

देश का कानून कहता है कि यदि कोई पत्थरबाजी या किसी भी तरह की असामाजिक एक्टिविटी में शामिल है तो उस पर सबसे पहले FIR होगी। जांच हो और उन पर मुकदमा चले। अब ये हो रहा है कि यदि किसी मुहल्ले में पत्थरबाजी हुई तो आप पूरे मोहल्ले को ढहा देते हैं। इसकी कानून में कोई जगह नहीं है।

 

सवाल: क्या बिना नोटिस दिए किसी को भी हटाया जा सकता है?

जवाब: 2014 में ही राइट-टु-वेंडर एक्ट बनाया गया था। इसमें कहा गया है कि किसी को यदि हटाना है तो उसे आपको नोटिस देना होगा। हटाने से पहले हम मौखिक सुनवाई करेंगे।

देश में कोई भी ये नहीं कह सकता है कि अनऑथराइज्ड कंस्ट्रक्शन पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन ये सिलेक्टिव भी नहीं होना चाहिए। सरकारों ने राजनीतिक फायदा उठाने के लिए कई अनऑथराइज्ड कॉलोनियों को ऑथराइज्ड किया है। यह एक चुनावी प्रोपेगैंडा भी है। ऐसे में इस तरह की कार्रवाई शोभा नहीं देती है।

इससे देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब हो रही है। रूल ऑफ लॉ वर्ल्ड जस्टिस रिपोर्ट में हम लगातार नीचे जा रहे हैं। ऐसा कर भारत खुद को चोट पहुंचा रहा है।

सवाल: जिस तरह की कार्रवाई हो रही है उससे लगता है कि न कोर्ट, न मुकदमा सीधे नेता, सरकार, ऑफिसर अपना फैसला सुना रहे हैं?

जवाब: कानून इसकी इजाजत नहीं देता है। उदाहरण के तौर पर मुंबई 26/11 हमला हमारे सामने है। पूरी दुनिया ने देखा कि देश पर आतंकी हमला हुआ। हमने हमलावर कसाब को पकड़ा, लेकिन हमने उसे सीधे सजा नहीं दी। कोर्ट ने सजा दी। उसे फेयर ट्रायल दिया। केस लड़ा। कसाब ने दया याचिका भी दायर की। रिजेक्ट होने के बाद उसे फांसी हुई। इस प्रोसेस से पूरी दुनिया में हमारे देश की क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की इज्जत बढ़ी।

सवाल: कहा जा रहा है कि अब शाहीनबाग में कार्रवाई करने की तैयारी है। इसे आप कैसे देखते हैं? क्या एक विशेष समुदाय को टारगेट किया जा रहा है?

जवाब: यदि कहीं भी अनऑथराइज्ड कंस्ट्रक्शन है तो उसका सर्वे करना, मुआयना करना, नोटिस देना और एक प्रोसेस के साथ हटाना सही है। बशर्ते कानून का पालन होना चाहिए।

सवाल: इन नेताओं, अधिकारियों के अवैध निर्माण पर कार्रवाई कौन करेगा?

जवाब: कानून के राज के लिए जरूरी है कि सभी कानून का सम्मान करें और कानून पर विश्वास करें। इसलिए अवैध निर्माण पर कार्रवाई हो तो सभी पर होनी चाहिए। जब कानून निष्पक्ष होगा, बराबर लागू होगा, तभी सभी इस पर विश्वास करेंगे।

यदि किसी को टारगेट करने के लिए कानून का इस्तेमाल हो रहा तो उससे कानून की इज्जत खत्म हो जाएगी। जंगल राज कायम हो जाएगा। इसलिए जिसने भी अतिक्रमण किया है, चाहे वो राजा हो या रंक, हटाया जाए। कानूनी प्रक्रिया के तहत हटाया जाए।

सवाल: लीगल दुकानों, घरों पर भी कार्रवाई की जा रही है। ऐसे में इन पीड़ितों के पास क्या रास्ता है?

जवाब: इस तरह का एक्शन कानून के खिलाफ है। कोर्ट कार्रवाई करने वालों से सख्ती से निपटेगा। सरकार को मुआवजा देना होगा। ये बदले की कार्रवाई थी। जल्दबाजी में एक्शन नहीं लिया जाना चाहिए था।

जहांगीरपुरी कार्रवाई में सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं, बहुतेरे हिंदू परिवारों का भी नुकसान हुआ है। उनकी दुकान, रोजी-रोटी चौपट हो गई।

न्याय सिर्फ लागू नहीं किया जाना चाहिए। न्याय होता हुआ दिखाई भी देना चाहिए। जो MP, UP.l, दिल्ली या अन्य राज्यों में हो रहा है। उसमें यदि आम जनता को लग रहा है कि न्याय नहीं हुआ तो उसे रिव्यू करने की जरूरत है।

सवाल: अतिक्रमण की जगहों को खाली कराने का संवैधानिक प्रोसेस क्या है?

जवाब: सभी राज्यों के कानून में इसे स्पष्ट रूप से डिफाइन किया गया है। नगर निगम को अधिकार है कि अवैध कब्जे को हटाए। इसके लिए सर्वे कराना, नोटिस देना, रह रहे लोगों को रिलोकेट करना, सहायता देने का प्रावधान है।

सवाल: एक तरफ सड़क किनारे फल, सब्जी, ठेले, रेहड़ी, स्ट्रीट फूड वालों पर कार्रवाई की जा रही है। दूसरी तरफ शहरी बेरोजगारी दर भी बढ़ रही है।

जवाब: कार्रवाई करना सुप्रीम कोर्ट के आदेश और स्ट्रीट वेंडर एक्ट के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि हॉकर्स को सामान बेचने का मौलिक अधिकार है। यदि निगम इस अधिकार को सीमित कर रही है तो उचित कारण होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो आप इन्हें नहीं हटा सकते हैं। यह इनके जीवनयापन का मामला है।

ये उनका मौलिक अधिकार है और यदि हटाना ही है तो वो सभी राज्यों के एक्ट में है कि एक नोटिस तो आपको देना ही होगा। जैसा जहांगीरपुरी में फॉलो नहीं किया गया।

सवाल: हाल के सालों में कुछ मामले ऐसे आए हैं, जिसमें एक तबके को आसानी से बेल मिल जाती है तो दूसरे को नहीं। इसके कानूनी मायने क्या हैं?

जवाब: कुछ जज लिबरल होते हैं, तो कुछ बेहद सख्त, लेकिन कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। अलग-अलग जजों की राय अलग-अलग हो सकती है। उत्तराखंड हेटस्पीच मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है।

दरअसल, हम यह नहीं कह सकते हैं कि हम देशप्रेमी हैं, लेकिन आबादी के ⅕ हिस्से से नफरत करते हैं। मुसलमानों से घृणा करते हैं। भारत में भारतीय मुसलमान रहते हैं। कुछ को छोड़ दें तो सभी यहीं के कन्वर्टेड हैं।

सवाल: हाल के सालों में UAPA, NSA के तहत धड़ल्ले से कार्रवाई हुई है। विरोध करने वालों को बुक किया गया है। इसे आप कैसे देखते हैं?

जवाब: इस तरह के कानून को ब्लैक लॉ के नाम से जानते हैं। इसमें जुर्म होने से पहले ही हम अरेस्ट करते हैं। किसी भी देश के लिए इस तरह के कानून अच्छे नहीं माने जा सकते हैं।

इसके तहत जो केस फाइल हो रहे हैं, अधिकांश झूठे साबित हो जाते हैं। सरकार कोर्ट में जुर्म साबित नहीं कर पा रही है। इससे लोगों की लाइफ बर्बाद हो रही है।

सवाल: सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह के कानून को चैलेंज किया गया है। क्या फैसला आ सकता है?

जवाब: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना पहले ही कह चुके हैं कि यह कानून अंग्रेजों ने देश के स्वतंत्रता सेनानियों को कंट्रोल करने के लिए बनाया था। आज जब हम फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात करते हैं, तो ऐसे में स्वतंत्र देश में इस कानून की क्या जरूरत है।

मुझे लगता है कि यदि इस पर प्रॉपर हियरिंग होती है तो शायद इसे रीड-डाउन किया जाएगा। केदारनाथ जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट पहले भी कर चुकी है। कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ एक भाषण देने से किसी पर राजद्रोह का मुकदमा नहीं दर्ज हो सकता है। जब तक कि उसके बाद कोई हिंसा न भड़की हो। हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट एक कदम आगे बढ़कर इसे असंवैधानिक ही घोषित कर दे। यदि ऐसा होता है तो यह बहुत निर्णायक निर्णय होगा।

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