ब्रिटिश हुकूमत में बने रजिस्टर में अब हो रहा सुधार … MPPC में दर्ज 53 हजार डॉक्टरों में सिर्फ 17 हजार ने कराया री-वेरिफिकेशन, 28 हजार के पंजीयन खतरे में

मप्र के 28 हजार 500 सरकारी और निजी डॉक्टरों की डॉक्टरी खतरे में पड़ सकती है। एमपी मेडिकल काउंसिल ने पिछले साल दिसंबर से डॉक्टरों के री-वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू की गई थी। लेकिन चार महीने में सिर्फ 17815 डॉक्टरों ने ही ऑनलाइन आवेदन कर अपना री-वेरिफिकेशन कराया है। री-वेरिफिकेशन (शुद्धिकरण) के लिए 30 अप्रैल आखिरी तारीख तय की गई थी लेकिन डॉक्टरों के पंजीयन कम होने के चलते मेडिकल कांउसिल ने इसे 15 मई तक बढ़ा दिया है। मेडिकल काउंसिल के अधिकारियों का कहना है कि री-वेरिफिकेशन न कराने वाले डॉक्टरों के खिलाफ अब कार्रवाई शुरू की जाएगी।

15 मई के बाद फ्री में रिवेरिफिकेशन होगा बंद

मप्र मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ.आरके निगम ने री-वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को 15 मई तक बढ़ाया है। रजिस्ट्रार के मुताबिक 15 मई के बाद री-वेरिफिकेशन की प्रक्रिया पर फीस लागू की जाएगी। हालांकि री-वेरिफिकेशन की फीस कितनी होगी अभी यह तय नहीं हुआ है।

मप्र मेडिकल काउंसिल में 30 अप्रैल 2022 तक रिवेरिफिकेशन के आंकडे़

रिवेरिफिकेशन का विवरण डॉक्टरों की संख्या
कुल पंजीकृत डॉक्टर 53600
जिन्हें री- वेरिफिकेशन की जरूरत नहीं 7252
री वेरिफिकेशन कराने वाले 17815
जिन्होने री वेरिफिकेशन नहीं करवाया 28533

मार्च 2019 के बाद दर्ज डॉक्टरों को री-वेरिफिकेशन जरूरी नहीं

मप्र मेडिकल काउंसिल के अफसरों ने बताया कि जिन डॉक्टरों ने मार्च 2019 के बाद अपना पंजीयन कराया है उन्हें री-वेरिफिकेशन की जरूरत नहीं हैं। प्रदेश में ऐसे 7252 डॉक्टर हैं जिनका मेडिकल काउंसिल में मार्च 2019 के बाद रजिस्ट्रेशन हुआ है।

अंग्रेजों के जमाने से अपडेट नहीं हुआ रजिस्टर

मेडिकल काउंसिल का रजिस्टर 82 साल से अपडेट नहीं हुआ है। साल 1939 में यानि देश की स्वतंत्रता से पहले गठित महाकौशल मेडिकल काउंसिल में डॉक्टरों के पंजीयन शुरू किए गए थे। बाद में इसका नाम बदलकर मप्र मेडिकल काउंसिल हो गया। एक बार पंजीयन कराने के बाद दोबारा कभी डॉक्टरों की जानकारी अपडेट नहीं हुई। ऐसे में पिछले साल मप्र मेडिकल काउंसिल ने रजिस्टर में दर्ज एमबीबीएस और पीजी डिग्री, डिप्लोमा धारी डॉक्टरों के रिवेरिरी-वेरिफिकेशन केशन की प्रक्रिया शुरू की थी। बीते 27 दिसंबर को री-वेरिफिकेशन का पहला आदेश जारी किया गया था। इसके बाद पांचवी बार समयसीमा बढ़ाई गई है।

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