ताजमहल के कारण कुंवारे हैं इन गांवों के युवा:रबर चेक डैम बनने की बात से परेशान हैं पांच गांवों के 20 हजार लोग
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के बाद ताजमहल की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाए जाने की वजह से पांच गांवों के करीब 20 हजार लोग पिछले 30 साल से परेशान हैं। ये लोग मोहब्बत की निशानी ताजमहल से नफरत करते हैं। कारण यह है कि बंदिशों के चलते इनके घरों के मांगलिक कार्यों में कोई नहीं आ पाता है। साथ ही न ही कोई अपनी बेटी का ब्याह इन गांवों के लड़कों से करना चाहता है।
इसी वजह से गांवों के 40 फीसदी युवा आज भी कुंवारे हैं। अब ताजमहल के पास रबर चेक डैम बनने की तैयारी होने की बात सामने आने के बाद इनकी परेशानी बढ़ गई है। लोगों को डर है कि डैम बनने के बाद उनके खेतों की फसलों को भी खतरा पैदा हो जाएगा।
मोहब्बत की जिस निशानी को देखने के लिए पूरी दुनिया से लोग आगरा आते हैं। उसकी एक झलक पाने की तमन्ना रखता है। उस संगमरमरी ताजमहल के पास बसे गांव के लोग उससे बे-इंतहा नफरत करते हैं। वे मनाते हैं कि काश यह इमारत यहां न होती, तो उनके बच्चे आज कुंवारे न रहते। उनके शादी-ब्याह होते और उनके घर की दावतों में रिश्तेदार और परिचित शामिल होते। उनके बच्चे बस में बैठकर घर से स्कूल पढ़ने जा पाते।
पांच गांव के लोग हैं परेशान
ताजमहल के पूर्वी गेट के पास दशहरा घाट की ओर से गांव अहमद बुखारी, नंगला पैमा, गढ़ी बंगस, नगला तल्फी और नगला ढींग बसे हैं। 1992 में ताजमहल को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में लिया है। इसके बाद से इन गांव के लोगों को शहर जाने के लिए दशहरा घाट के पास लगे नगला पैमा पुलिस चेक पोस्ट से होकर गुजरना पड़ता है। दूसरा रास्ता 10 किमी घूमकर धांधूपुरा से जाता है।
गांवों में रहने वालों को सीओ ताज सुरक्षा से वाहन पास बनवाना पड़ता है। साथ ही हर वक्त आधार कार्ड भी साथ में रखना पड़ता है। बैरियर पर चेकिंग के बाद ही यह लोग वहां से आवाजाही कर सकते हैं। इनका कोई रिश्तेदार यहां अपना वाहन नहीं ला सकता है। इन्हें खुद आकर उसे अपनी बाइक पर ले जाना होता है। सुबह-शाम थोड़ी देर के लिए बैट्री रिक्शा को छूट मिलती है। कोई मुश्किल होने पर सिर्फ सरकारी एम्बुलेंस को गांव में जाने की इजाजत है। ताजमहल पर महीने के पांच दिन रात्रि दर्शन के समय और वीआईपी मेहमान आने पर लोगों को गांव में ही कैद रहना पड़ता है।
न स्कूल, न स्कूल बस और न स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था
ताजमहल के दो से पांच किमी के अंदर बसे इन गांवों में न कोई सरकारी स्कूल है और न स्वास्थ्य केंद्र है। न ही यहां बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए कोई स्कूल वाहन आ सकता है। कभी कोई मांगलिक कार्य या शोक होने पर जानकार और रिश्तेदारों को पैदल गांव तक आना पड़ता है। ज्यादातर लोग आवागमन के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं। कोई भी व्यक्ति कार नहीं खरीदता है। किसी को अपने घर में एक ईंट भी लगानी हो, तो पहले परमिशन लेनी होती है।
कई बार यहां गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी रास्ते में ही हो चुकी है। कई लोग दुर्घटना में अस्पताल समय से न पहुंच पाने पर अपनी जान भी गंवा चुके हैं। गांव में ज्यादातर लोगों के घरों में शौचालय नहीं है और उन्हें खेतों में जाना पड़ता है। शौच के दौरान ताजमहल को देखकर लोग इमारत को कोसते हैं।
40 फीसदी युवा हैं कुंवारे
स्थानीय निवासी राकेश कुमार के अनुसार, पांचों गांवों की कुल आबादी 20 हजार है। ज्यादातर निषाद जाती के लोग हैं। यहां के लोग गांव की ही लड़कियों या फिर धांधूपुरा और आसपास के गांवों की लड़कियों से ही शादी कर पाते हैं। बाहर का कोई व्यक्ति यहां रास्ते की परेशानी के चलते अपनी लड़कियों का ब्याह यहां के युवकों से नहीं करता है। इसी कारण यहां करीब 40 फीसदी युवा उम्र होने के बाद भी कुंवारे बैठे हैं।
स्थानीय पार्षद जगमोहन ने बताया कि ताजमहल की वजह से लोग बहुत परेशान होते हैं। कई लोग तो पलायन भी कर चुके हैं। रबर चेक डैम बनने से लोगों को यमुना नदी किनारे के खेतों में पानी भरने और डैम के चलते सुरक्षा बढ़ने पर उनके लिए और सख्त नियम बनने के डर से परेशान हैं।