जेल और फ्रेगरेंस वाले सैनिटरी नैपकिन से कैंसर का खतरा ..
. वेजाइनल एलर्जी के साथ-साथ स्किन से जुड़ी बीमारियों का खतरा….
- पीरियड्स के दौरान जेल और फ्रेगरेंस वाले सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं तो सावधान हो जाएं। लंबे समय तक इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है। ऐसी सैनिटरी नैपकिन यूज करने से सेहत पर असर पड़ता है। बता रहीं हैं गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. मीरा पाठक।
पीरियड्स में महिलाओं की पहली पसंद सैनिटरी नैपकिन होती हैं। ये पूरी तरह सुरक्षित हैं या नहीं यह सवाल कई महिलाओं के मन में चलता है। मार्केट में कई तरह के सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हैं लेकिन इसके नुकसान के बारे में नहीं पता होता।
डॉ. मीरा पाठक बताती हैं कि ऐसी नैपकिन जिनमें लंबे समय तक सोखने की क्षमता हो यानी जेल और फ्रेग्रेंस वाले सिंथेटिक नैपकिन हो तो उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उनमें डाइऑक्सिन और सुपर-अब्सॉर्बेंट पॉलिमर जैसे एजेंटों का उपयोग किया जाता है। इससे होने वाले इंफेक्शन से ओवरी कैंसर और कई तरह की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
- सैनिटरी के इस्तेमाल से खतरा
- ओवरी में कैंसर
- बांझपन
- हार्मोन का असंतुलन
- चकता
- वेजाइनल एलर्जी
- सूजन
- पेल्विक एरिया में सूजन
- थॉयराइड
- एंडोमेट्रियम से जुड़ी बीमारियां
किस वजह से होता है कैंसर
सैनिटरी नैपकिन में डायोक्सिन का इस्तेमाल नैपकिन को सफेद रखने के लिए किया जाता है। इसके चलते ओवेरियन कैंसर, हार्मोन डिसफंक्शन, डायबिटीज और थॉयराइड की समस्या हो सकती है। इसमें नैपकिन में रूई के अलावा रेयॉन का भी प्रयोग होता है। इसके सीधे संपर्क और हाइजीन मेंटेन नहीं करने के कारण इंफेक्शन हो जाता है जो आगे कैंसर में बदल सकता है। नैपकिन में मौजूद फ्रेगरेंस से स्किन में एलर्जी हो सकती है। लंबे समय तक नैपकिन के इस्तेमाल से वजाइना में बैक्टीरिया बन जाते हैं। इससे डायरिया, बुखार और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।
ये है खतरा
- डाइऑक्सिन से ओवेरियन कैंसर का खतरा।
- फाइबर से सर्विकल कैंसर का खतरा।
- प्लास्टिक होने से बीपीए और बीपीएस जैसे कैमिकल्स फीमेल आर्गन को खराब कर सकता है।
- रूई, रेयोन और सिंथेटिक रेशम बना नैपकिन खतरनाक है।
- सैनिटरी नैपकिन में मौजूद पेस्टिसाइड्स केमिकल कैंसर का कारण हो सकता है। नैपकिन में मौजूद फ्रेगरेंस से स्किन में एलर्जी हो सकती है।
जानना जरूरी है
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 48.5 प्रतिशत महिलाएं, शहरों में 77.5 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग करती हैं। कुल मिलाकर 57.6 प्रतिशत महिलाएं ही इसका इस्तेमाल करती हैं। सवाल है कि क्या जिन सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल हाइजीन और सुरक्षा के नाम पर करते हैं वो पूरी तरह से सुरक्षित हैं।
डॉ. मीरा कहती हैं बाजार में मौजूद अल्ट्रा जेल और फ्रेगरेंस वाले पैड्स से स्किन में एलर्जी का खतरा बढ़ा देते हैं। इसलिए कोशिश करें कि ऑर्गेनिक क्लॉथ नैपकिन का इस्तेमाल करें। ये पैड्स रूई और जूट या बांस से बनाते हैं। इन्हें रखने में भी कोई दिक्कत नहीं होती। उपयोग किए गए पैड्स को क्लीन कर के दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। या मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग करें और स्वस्थ रहें।