आरक्षण OBC का छिना, नुकसान सामान्य वर्ग को?

मध्यप्रदेश में BJP-कांग्रेस बिना आरक्षण ही OBC को खुश कर देगी, जानिए कैसे…

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में बिना OBC आरक्षण के ही नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव कराने के आदेश दिए हैं। राज्य निर्वाचन आयोग इसके लिए तैयार है, लेकिन सरकार इस पर आगे-पीछे होते दिख रही है। CM शिवराज सिंह चौहान रिव्यू पिटीशन की बात कर रहे हैं। कांग्रेस कह रही है कि सरकार के पास रिव्यू कराने का कोई ठोस आधार ही नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि राज्य निर्वाचन आयोग और मध्य प्रदेश सरकार अधिसूचना जारी करे।

सरकार ने 49% आबादी बताते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए मप्र में 35% आरक्षण मांगा था, लेकिन रिपोर्ट तैयार करने में लापरवाही कर दी। निकायवार रिपोर्ट ही नहीं बनाई। अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए अधूरी रिपोर्ट खारिज कर दी। वैसे तो इसका सीधा असर सरकार, लोकल चुनाव और राजनीतिक दलों पर पड़ेगा, लेकिन इस फैसले के दो साइड इफेक्ट भी हैं।

इसमें सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग को फिलहाल राहत मिलते दिख रही है कि वहां भी 27% आरक्षण लागू होगा या नहीं, यह तय नहीं है। लेकिन, राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले सामान्य वर्ग के लोगों को नुकसान होगा क्योंकि पार्टियां तो अब सामान्य वर्ग की सीटों पर भी OBC चेहरे उतारने के मूड में है। पहले यह 14% ही होता था, अब तो 27% सीटों पर OBC चेहरे उतारना ना चाहते हुए भी मजबूरी बन सकती है।

पहले जानते हैं नौकरी और राजनीति से जुड़े दो साइड इफेक्ट…

   

OBC आरक्षण के खिलाफ क्यों आया फैसला
मंत्रालय सूत्रों की मानें तो अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने ट्रिपल टेस्ट के लिए तय प्रक्रियाओं को पूरा किए बिना अधूरी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी। इसकी वजह यह है कि सरकार कोर्ट में लिखित में कह चुकी थी कि 30 मई तक ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी, लिहाजा इसके बाद चुनाव कराए जा सकते हैं, लेकिन सरकार ने ओबीसी आरक्षण की रिपोर्ट में यह जरूर कहा कि इस वर्ग की प्रदेश में आबादी 49% है। इसलिए 35% सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित की जाएं। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया।

इस स्लाइड से जानिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में कल हुआ क्या…

आरक्षण लागू करने के तरीके पर ही सवाल
जानकार कहते हैं कि मप्र सरकार ने ओबीसी वर्ग को चुनाव में आरक्षण देने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन इसके लिए संवैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया। जानकारी के मुताबिक तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 69% आरक्षण लागू है। इसके लिए 1990 की तत्कालीन जयललिता सरकार ने एक प्रस्ताव संसद में पेश किया था। उस समय राजीव गांधी सरकार ने इसे पारित कर मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा था। इसके बाद संवैधानिक मान्यता मिली। जिसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है।

सरकार और कानूनी जानकारों के ये तर्क हैं…

सुप्रीम कोर्ट ने जो तीन बड़ी बातें कहीं, वो ये हैं…

महापौर का डायरेक्ट इलेक्शन या फिर पार्षद चुनेंगे
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी स्तर पर फिलहाल यह तय नहीं है कि महापौर का चुनाव डायरेक्ट होगा या फिर पार्षद चुनेंगे? पार्टी को पहले लगा कि उसे अप्रत्यक्ष चुनाव के तरीके से ही आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि अब बीजेपी सत्ता में है। 2019 में, सत्ता में होने के कारण कांग्रेस अप्रत्यक्ष चुनावों के जरिए अधिकांश नगर निकायों को अपने कब्जे में लेने के जिन फायदों की आस में थी, वे सारे फायदे अब सत्ता में बैठी बीजेपी उठा सकती है। यही वजह है कि सरकार ने वार्डों का आरक्षण चुक्रानुक्रम के बजाय रोस्टर के माध्यम से किया था। क्योंकि वह विभिन्न प्रमुख शहरी निकायों में अच्छे उम्मीदवारों को खड़ा करने के लिए पार्टी के अनुकूल नहीं था।

स्थानीय निकायों को किया जा रहा कमजोर
एक रिटायर्ड IAS अफसर ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया कि संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम 1992 के वक्तव्यों और उद्देश्यों में, यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कई राज्यों में स्थानीय निकाय कई कारणों से कमजोर और अप्रभावी हो गए हैं, जिनमें नियमित चुनाव कराने में विफलता, लंबे समय तक अधिक्रमण और शक्तियों और कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण शामिल हैं। नतीजतन, शहरी स्थानीय निकाय स्वशासन की जीवंत और उत्साहपूर्ण लोकतांत्रिक इकाइयों के रूप में प्रभावी ढंग से प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, चुनाव में देरी ऐसे निकायों को कमजोर बनाती है और मध्य प्रदेश में जो हो रहा है वह तो जानबूझकर की जा रही देरी है।

विधानसभा चुनाव में ओबीसी के मुद्दे पर चुनाव में उतरेगी बीजेपी
मंत्रालय सूत्रों का दावा है कि विधानसभा चुनाव में ओबीसी बीजेपी के लिए बड़ा मुद्दा होगा। विधानसभा के बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 14 मार्च 2022 को बयान दिया है- ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत के चुनाव हों, इस पर हमने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। बीजेपी सरकार का यह फैसला है कि पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही होंगे।

आरक्षण में करना होगा ट्रिपल टेस्ट का पालन
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में इस मामले की सुनवाई के दौरान मप्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना आरक्षण के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से कहा कि कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाए। बावजूद इसके सरकार ने ट्रिपल टेस्ट की अधूरी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी।

सरकार के सामने यह है विकल्प
कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा है कि ओबीसी समर्थक पार्टियां स्थानीय निकाय चुनावों में सामान्य श्रेणी की सीटों के लिए ओबीसी उम्मीदवारों को नामित करने के लिए स्वतंत्र हैं। प्रदेश में अब पंचायत और निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के होंगे। कोर्ट ने कहा है कि जो पार्टियां ओबीसी आरक्षण देना चाहती हैं, वह सामान्य सीट पर ओबीसी कैंडिडेट को स्थानीय निकाय चुनाव में खड़ा कर सकती हैं।

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