मुंडका अग्निकांड, खाक हुईं जिंदगियां पहचान को तरसीं:4 दिन में तैयार होने वाली DNA रिपोर्ट के लिए करना होगा 10 दिन इंतजार
दिल्ली के मुंडका अग्निकांड को पांच दिन पूरे हो चुके हैं। 27 जिंदगियां तो खत्म हो चुकी हैं। लेकिन इनके परिजन अब भी अंतिम संस्कार करने के लिए जगह-जगह भटक रहे हैं। वजह है शवों की शिनाख्त। शवों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट में देरी हो रही है। सैंपल तो ले लिए गए हैं मगर रिपोर्ट का इंतजार है।
4 दिन में तैयार होने वाली रिपोर्ट के लिए 10 दिन का इंतजार
डीएनए टेस्ट के लिए 26 शवों के सैंपल को रोहिणी फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में भेजा गया है। मंगोलपुरी के संजय गांधी अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट एस.के अरोड़ा का कहना है कि फॉरेंसिक टीम ने पूरी तरह से जले शवों की हड्डियों और दांतों का सैंपल लिया है। इन शवों की पहचान के लिए परिजनों के ब्लड सैंपल 14 मई शनिवार यानी घटना के अगले ही दिन अस्पताल में लिए गए थे। सभी की डीएनए रिपोर्ट आने में 5 से 7 दिन लग सकते हैं।
इस हिसाब से देखा जाए तो इन शवों की रिपोर्ट 22-23 मई के बीच आने की संभावना है। इस तारीख तक घटना को 10 दिन पूरे हो जाएंगे। आग लगने की घटना 13 मई को शुक्रवार के दिन हुई थी, डीएनए सैंपलिंग 14 मई को पूरी हो चुकी थी। अगर फॉरेंसिक लैब में वहीं प्रक्रिया अपनाई जा रही है जो हर लैब में अपनाते हैं तो चौथे दिन यानी 17 मई तक इन शवों की रिपोर्ट आ जानी चाहिए थी। घटना के 5 दिन बीत जाने के बाद भी 27 में से 19 शवों के बारे में अब भी पता नहीं चल पाया है। इस मामले में जब रोहिणी फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी के पास भी जवाब नहीं है कि रिपोर्ट तैयार करने में कितना समय लगेगा।
4 दिन में ऐसे तैयार होती है DNA रिपोर्ट
दिल्ली की ब्रिलियंट फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन लैबोरेटरी के फॉरेंसिक एक्सपर्ट आदर्श मिश्रा बताते हैं कि डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए मुख्य रूप से तीन से चार स्टेप अपनाने होते हैं। 3 से 4 दिन के अंदर डीएनए रिपोर्ट तैयार हो जाती है।
1 – डीएनए निकालनाः सबसे पहले सैंपलिंग की जाती है। सैंपल से डीएनए निकाला जाता है। इसके लिए शरीर के किसी भी हिस्से का टिशू लेते हैं। उसमें से सेल को अलग कर न्यूक्लियस से डीएनए निकाला जाता है। इसमें जो समय लगता है वह सैंपल के आधार पर भी तय होता है। अगर स्किन, खून , टिशू और ओरल स्वैब यानी मुंह की ऊपरी लेयर का सैंपल लेते हैं तो एक ही दिन में डीएनए निकाल जाता है। वहीं अगर सैंपल में हड्डी या दांत लिया गया है तब डीएनए निकालने में अधिकतम दो दिन का समय लग सकता है।
हड्डियों के अंदर मौजूद ‘पल्प’ को डीएनए निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पल्प को निकालने के लिए सबसे पहले हड्डियों का चूरा करते हैं। कैल्शियम को हटाकर उसे केमिकल में भिगाकर रखते हैं। फिर इसके अंदर से पल्प निकालते हैं। कई बार हड्डी को एक दिन के लिए केमिकल में डालकर छोड़ना भी पड़ता है। इसमें एक दिन ज्यादा लग जाता है।
दांत के सैंपल में भी यही प्रोसेस अपनाई जाती है। हालांकि दांत की सैंपलिंग करने में एक फायदा यह भी होता है कि कई बार दांतों के ढांचे और आकार से परिवार का पता लगता है। कई परिवारों में लोगों के दांतों का ढांचा एक जैसा होता है। एक ही परिवार में बच्चों के आगे या पीछे के दांत अपने माता-पिता के दांतों जैसे होते हैं। ऐसे केस में डीएनए प्रोफाइलिंग के बजाए एक्स-रे के आधार पर भी पहचान कर सकते हैं।
2 – डीएनए की पहचान करनाः इसके लिए कुछ पैमाने तय किए जाते हैं। जिनकी संख्या के आधार पर डीएनए की मैचिंग कराई जाती है। इसी तरह डीएनए के एलल यानी डीएनए के पैटर्न को देखा जाता है। इसे जियोनोमिक लोकेशन भी कहते हैं। हर व्यक्ति के डीएनए में दो एलल होते हैं, इनमें से एक एलल पेरेंट्स के एलल के आधार पर तय होता है। उसी की लोकेशन के आधार पर पता लगाया जाता है कि उसके माता-पिता कौन है।
3 – डीएनए की प्रोफाइलिंगः इसी डीएनए की आगे जाकर प्रोफाइलिंग की जाती है। लैबोरेटरी में इलेक्ट्रोफोरेसिस की प्रक्रिया से डीएनए को अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में बिजली का भी इस्तेमाल होता है। इसमें डीएनए जिस लोकेशन पर रुकता है, उसे रिकॉर्ड किया जाता है। इसे ही डीएनए प्रोफाइलिंग नाम दिया गया है। यह एक रिपोर्ट होती है, जिसमें डीएनए के 20 या उससे अधिक मार्कर्स की संख्या लिखी होती है।
इस रिपोर्ट को फॉरेंसिक लैब में काम करने वाले टेक्नीशियन तैयार करते हैं। डीएनए की पूरी स्टडी करने के बाद ही प्रोफाइल रिपोर्ट तैयार होती है, जिसे बनाने में एक दिन का समय लग जाता है।
4 – डीएनए की मैचिंगः प्रोफाइलिंग के बाद डीएनए मैचिंग होती है। मान लीजिए एक शव की डीएनए टेस्टिंग हुई है तो उसकी प्रोफाइल की रिपोर्ट को उसके माता या पिता के डीएनए प्रोफाइल रिपोर्ट से मिलाया जाएगा। देखा जाएगा कि कितने मार्कर्स मैच कर रहे हैं। जिनकी संख्या सबसे अधिक मिलती है उसे ही व्यक्ति का रिश्तेदार बताया जाता है। यह काम किसी मशीन से नहीं होता बल्कि इसे खुद डीएनए प्रोफाइल तैयार करने वाले टेक्नीशियन तैयार करते हैं। इसमें भी एक दिन का समय लगता है।
ज्यादा जलने पर भी डीएनए के सैंपल पर नहीं पड़ता असर
क्या आग लगने पर शव का डीएनए निकालने में अधिक समय लग सकता है या सैंपलिंग पर इसका कोई खास असर पड़ता है? फॉरेंसिक एक्सपर्ट आदर्श मिश्रा का कहना है कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। चाहे बॉडी कितनी भी जल गई हो उसका डीएनए किसी भी अंग से निकाला जा सकता है। अगर त्वचा जल जाती है तो खून का सैंपल लेते हैं। खून भी नहीं बचा तो दांत या हड्डियों का इस्तेमाल करते हैं। डीएनए शरीर के किसी भी टिशू में मौजूद सेल से निकाला जा सकता है। इसमें अधिकतम दो दिन का समय लग सकता है, इससे ज्यादा नहीं।
क्या समय के साथ सैंपल खराब होने का भी खतरा रहता है? फॉरेंसिक एक्सपर्ट का कहना है नहीं। एक बार सैंपल लेने पर हम उसे मल्टीप्लाई भी कर लेते हैं। जिससे बार-बार सैंपल लेने की परेशानी न हो। जो लोग जीवित हैं उनके केस में ज्यादातर ओरल स्वैब या खून का सैंपल लिया जाता है।
इससे भी लग सकता है डीएनए का पता
- ब्लड
- बाल
- त्वचा
- ओरल स्वैब
- नाखून
- हड्डी
- दांत
थैले में समा गईं जिंदगियां
मुंडका की आग इतनी भयानक थी कि कुछ भी बचा नहीं है। शव अवशेष के रूप में थैले में पैक पड़े हुए हैं। शव का थैला ऐसे रखा है मानों जैसे इसमें पहले कभी जान ही नहीं थी। शव की हालत भी ऐसी कि शरीर का कोई भी हिस्सा दूसरे से नहीं जुड़ा है। पूरी तरह से जलकर कोयले की तरह काले पड़े शवों में से किसी का भी चेहरा और सिर नहीं बचा। किसी का हाथ गायब है तो किसी का पैर। भरा पूरा इंसान एक थैले में समा गया है उनके शरीर के अंगों को एकसाथ रखने के लिए हर अंग की नंबरिंग की जा रही है।