इटावा की चंबल नदी में मगरमच्छ, घड़ियालों बढ़ रहा कुनबा …. रेत पर 1000 घड़ियाल और 200 मगरमच्छ के बच्चों का हुआ जन्म

इटावा में चम्बल की रेत पर घड़ियाल और मगरमच्छ के सैकड़ों बच्चे अंडों से निकलकर अटखेलियां करते अब नज़र आ रहे है। जून के पहले हफ्ते में नेस्टिंग के समय नदी किनारे रेत में सुरक्षित रखे अंडों से बच्चें निकल रहे है। अंडों की देखरेख के लिए नर मगरमच्छ और घड़ियाल प्रत्येक समय पहरा देते है। अभी तक 1000 घड़ियाल और 200 मगरमच्छ के बच्चे अंडों से निकल चुके है। बरसात के तेज बहाव में पानी में बच्चे बह जाते है

चंबल की रेत पर घड़ियालों का जीवन

इटावा क्षेत्र के चंबल सेंचुरी इलाके में चंबल नदी किनारे इन दिनों घड़ियाल एवं मगरमच्छों के अंडों से बच्चों का निकलना शुरू हो गया है। बच्चों की देखरेख में लगे नर मगरमच्छ एवं घड़ियाल अंडों से निकले हुए बच्चों को अपनी पीठ पर बैठा कर नदी किनारे एवं पानी में जीवन यापन के हुनर सिखा रहे हैं। इस समय सुबह एवं शाम के वक्त चंबल नदी किनारे कई किलोमीटर तक अंडों से निकले बच्चे रेत में अठखेलियां करते देखे जा सकते हैं।

 

24 घंटे नर मादा करते है अंडो की पहरेदारी

सेंचुरी के रेंजर हरि किशोर शुक्ला ने बताया कि अभी तक लगभग 10 नेस्ट से घड़ियाल एवं मगर के बच्चे निकल आए हैं। जिले के खेड़ा अजब सिंह में 37 नेस्ट एवं कसौआ में 5 नेस्ट पाए गए है जिन से लगभग 12 सौ घड़ियाल एवं मगर के बच्चे निकलने की उम्मीद है रेंजर हर किशोर शुक्ला ने बताया कि अप्रैल माह से जून तक नेस्टिंग का समय होता है इन तीन महीनों के दौरान चंबल नदी के किनारे जाना बेहद खतरनाक होता है क्योंकि अंडों की देखरेख के लिए नर मगरमच्छ एवं घड़ियाल नदी किनारे रेत में छिपाकर रखे गए अंडों की देखरेख के लिए 24 घंटे रखवाली करते हैं इस वर्ष पिछले वर्ष की अपेक्षा इटावा में कम बच्चे होने की उम्मीद है क्योंकि अंडे सुरक्षित रखने के लिए चंबल नदी में रेत का कटाव इटावा की तरफ हुआ है नदी का पत्थर इटावा की तरफ जमा हो गया है जबकि चंबल नदी की रेत ऊपर यानी राजस्थान के धौलपुर की तरफ रुक गई है इसलिए बड़ी संख्या में नेस्टिंग के लिए मगर एवं घड़ियाल राजस्थान की तरफ माइग्रेट कर गए हैं। इस बार अधिक संख्या में बच्चे राजस्थान के धौलपुर में होने की उम्मीद है लेकिन जितनी बड़ी संख्या में अंडों से बच्चे निकलते हैं बरसात के बाद मात्र 5 से 10% बच्चे ही सुरक्षित बच पाते हैं बाकी बच्चे बरसात के पानी में बह कर मर जाते हैं।

मादा अंडों को नदी किनारे रेत में सुरक्षित रख जाती है

अंडों से बच्चों के निकलने की यह है प्रक्रिया मादा घड़ियाल एवं मगर अपने अंडों को नदी किनारे रेत में सुरक्षित रख जाती है उसके बाद इन अंडों की निगरानी नर मगरमच्छ एवं घड़ियाल पानी में रहकर निरंतर करते रहते हैं रात के समय मादा घड़ियाल एवं मगर इन अंडों के ऊपर आ कर बैठती है उसके बाद अपने हाथों से बालू के अंदर छुपे उन अंडों को फोड़कर उनसे बच्चे निकालती है रेंजर हरि किशोर शुक्ला ने कहां की चंबल नदी किनारे प्रत्येक गांव में उनकी तरफ से निगरानी समिति बनाई गई है जो कि गांव गांव जाकर लोगों को चंबल नदी ना जाने की हिदायत दे रही है क्योंकि इस समय नेस्टिंग का समय है एवं अकेले चंबल नदी किनारे जाना बेहद खतरनाक है

60 दिनों में अंडे से बहार निकलते है बच्चे

वहीं वाइल्डलाइफ की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ राजीव चौहान ने बताया कि 1975 में चंबल नदी को सेंचुरी घोषित किया गया। राजस्थान के पाली से इटावा के पचनद तक चंबल नदी में विलुप्त होते घड़ियालों को सुरक्षित रखने एवं उनकी संख्या बढ़ाने के लिए चंबल को सेंचुरी घोषित किया गया था। लेकिन वर्ष 2007 एवं 2008 में जिस तरह घड़ियाल की संख्या बहुत तेजी से घटने लगी तब राजस्थान मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के वन विभाग ने इनके संरक्षण के लिए प्रयास किए हैं। जिसके बाद से एक बार फिर से चंबल नदी में तेजी से घड़ियाल और मगरमच्छ की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है। उसकी यही वजह है कि चंबल नदी को जंगल की नदी कहां जाता है। जिसके आसपास लोगों की रिहाइश नहीं है। जिसकी वजह से जलीय जीवो को डिस्टरबेंस नहीं होता है। जिस कारण उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है अप्रैल मैं मादा घड़ियाल एवं मगरमच्छ अंडे देती है। जिनमें से 60 दिन के बाद बच्चे अंडे में से निकलते हैं।

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