कानपुर-प्रयागराज की हिंसा में 7 समानताएं … ?
दोनों शहरों के बीच 204 किमी दूरी, लेकिन बवाल का तरीका एक ही जैसा….
वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे और वजूखाने को सील किए जाने के बाद यहां सब कुछ सामान्य है। हालांकि, भाजपा की प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा की टीवी डिबेट में बयानबाजी के बाद उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों का माहौल खराब हो गया है। बयान के बाद पहले जुमे यानी 3 जून को कानपुर का माहौल खराब किया गया। फिर दूसरे जुमे पर 10 जून को कानपुर से 204 किलोमीटर दूर प्रयागराज में सुनियोजित तरीके से हिंसा की गई। हिंसा का असर सहारनपुर और मुरादाबाद में भी देखने को मिला।
कानपुर और फिर प्रयागराज की हिंसा में कई ऐसी बातें हैं जो यह दिखाती हैं कि उपद्रव का ट्रेंड एक ही था। इंटेलिजेंस के अफसरों की ओर से आशंका यह भी जताई जा रही है कि अमन के दुश्मन अभी अन्य शहरों में भी हिंसा के लिए ऐसी साजिश रच सकते हैं। इसलिए पुलिस और प्रशासनिक अमले के लिए आने वाले दिन चुनौती भरे हैं।
अब एक-एक कर बताते हैं कानपुर और प्रयागराज में हिंसा की 7 समानताएं….
1. जुमे का दिन ही चुना गया
कानपुर और फिर प्रयागराज में हिंसा के लिए जुमे का दिन चुना गया। जाहिर बात है कि इस दिन मस्जिदों में नमाज अदा करने के लिए लोग भारी संख्या में जुटते हैं। ऐसे में उपद्रव की साजिश रचने वालों को भीड़ जुटाकर अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए अनावश्यक मशक्कत नहीं करनी पड़ी। फिर, एक-दूसरे को उकसा कर उन्हें हिंसा में शामिल कर लिया गया।
2. पहले से रखे थे ईंट-पत्थर और बम
कानपुर और प्रयागराज में पुलिस और लोकल इंटेलिजेंस भले ही दावा करे कि उनकी ओर से सतर्कता बरती गई थी। मगर, हकीकत में पुलिस और लोकल इंटेलिजेंस से बड़ी चूक हुई। उपद्रवियों ने पहले से ही ईंट-पत्थर, बम और पेट्रोल बम इकट्ठा कर रखे थे। इसकी भनक पुलिस और इंटेलिजेंस को माहौल बिगड़ने के पहले नहीं लग पाई।
3. हिंसा के लिए कम फोर्स वाली जगह चुनी
कानपुर में 3 जून को हिंसा की शुरुआत नई सड़क से हुई थी। वहीं, 10 जून को प्रयागराज में हिंसा की शुरुआत अटाला से हुई। दोनों ही शहरों के यह स्थान ऐसे थे, जहां भारी भीड़ उमड़ने के बाद भी पर्याप्त संख्या में फोर्स नहीं तैनात की गई थी। नतीजतन, उपद्रवियों को हिंसा के लिए पर्याप्त समय और अवसर मिला और पुलिस काफी मशक्कत के बाद माहौल को सामान्य करने में सफल हुई।
4. हिंसा में नाबालिग लड़कों को रखा आगे
कानपुर और प्रयागराज में जुमे के दिन हुई हिंसा में 15 से 17 साल के लड़के पथराव करने के दौरान सबसे आगे दिखे। यह सुनियोजित साजिश का एक अहम पहलू माना जा रहा है। हिंसा की साजिश रचने वालों को पूरा विश्वास था कि बच्चों को आगे देख पुलिस के रुख में नरमी आएगी और उन्हें उपद्रव की आग को फैलाने के लिए पर्याप्त अवसर मिलेगा।
5. सीएए-एनआरसी कनेक्शन भी है
कानपुर और प्रयागराज में हुई हिंसा में यह बात सामने आई है कि इसकी साजिश में शामिल रहे लोगों का नाता सीएए-एनआरसी प्रदर्शन से भी रहा है। भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा को लेकर देशव्यापी विरोध के बीच ऐसे लोगों की गतिविधियों की मॉनिटरिंग नहीं की गई। नतीजतन, वही लोग भोले-भाले लोगों को हिंसा में शामिल होने के लिए उकसाने में सफल रहे।
6. सोशल मीडिया से माहौल बनाया
कानपुर और फिर प्रयागराज में हिंसा से पहले वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया के अहम प्लेटफार्म का सहारा लिया गया। उसके सहारे धर्म विशेष के लोगों को फर्जी मैसेज भेज कर उनकी धार्मिक भावनाओं को भड़काया गया। यह मैसेज खासतौर से उन्हीं लोगों को भेजे गए जो सोशल मीडिया की हर खबर पर आसानी से आंख बंद कर भरोसा कर लेते हैं और उसके बारे में अन्य लोगों को भी बताते हैं।
7. अलर्ट को गंभीरता से नहीं लिया गया
कानपुर में हिंसा से पहले राज्य सरकार के आला अफसरों ने चेताया था कि हर छोटी-बड़ी घटना पर नजर रखी जाए। माहौल को भांपते रहें और तैयारी मुकम्मल रखें। इसके बावजूद स्थानीय पुलिस-प्रशासनिक स्तर से लापरवाही हुई और उसका नतीजा उपद्रव के तौर पर देखने को मिला। कानपुर हिंसा के बाद एक बार फिर राज्य सरकार की ओर से सभी जिलों को अलर्ट किया गया था, लेकिन कानपुर की गलती प्रयागराज में भी दोहराई गई और शहर में बवाल हो गया। अलर्ट को गंभीरता से नहीं लिया गया।