ग्वालियर-चंबल : सरकारी निर्माण में भी नियमों की अनदेखी …? 1000 बिस्तर के अस्पताल का निर्माण 70 फीसदी पूरा, पर्यावरण मंजूरी अभी तक नहीं
ग्वालियर-चंबल अंचल के सबसे बड़े अस्पताल (1000 बिस्तर) से जुड़ी एक और अनियमितता सामने आई है। अब तक निर्माण कार्य से लेकर ड्राइंग में बदलाव को लेकर निर्माण एजेंसी (पीआईयू) और निजी कंपनी सवालों के घेरे में रही है। ये मामला पर्यावरण स्वीकृति से जुड़ा हुआ है।
अस्पताल का निर्माण लगभग 70 फीसदी पूर्ण हो चुका है और अभी तक पर्यावरण स्वीकृति ही प्राप्त नहीं की गई है। ये स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि 20 हजार वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र में निर्माण करने से पूर्व मप्र स्टेट लेवल एनवायरनमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी (सिया) से अनुमति अनिवार्य रूप से लेनी होती है।
बिना अनुमति निर्माण करने पर पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के लिए अस्पताल की निर्माण एजेंसी को दोषी भी ठहराया जा सकता है। यहां तक कि जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यहां बता दें कि 2019 में भी जयारोग्य चिकित्सालय समूह पर पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के मामले में लाखों रुपए का जुर्माना लगाया गया है, जिसे अभी तक जमा नहीं कराया गया है।
इसलिए जरूरी है पर्यावरण स्वीकृति
पर्यावरण स्वीकृति के लिए आवेदन में बताया जाता है कि निर्माण के बाद जल, वायु व ध्वनि प्रदूषण पर किस तरह से अंकुश लगाया जाएगा। प्रदूषण को रोकने संबंधी उपायों से संतुष्ट होने पर ही स्वीकृति दी जाती है। एयरपोर्ट अथाॅरिटी तक टर्मिनल विस्तार के लिए पर्यावरण स्वीकृति की प्रतीक्षा में है। वहीं अस्पताल प्रबंधन व निर्माण एजेंसी द्वारा पर्यावरण स्वीकृति की अनदेखी की जा रही है।
कार्यपालन यंत्री से मिलेगी जानकारी
पर्यावरण मंजूरी के संबंध में स्पष्ट जानकारी कार्यपालन यंत्री से ही मिल सकेगी। बीके आरख, अतिरिक्त परियोजना संचालक, (पीआईयू)
मैं चुनाव ड्यूटी में हूं, मुझे जानकारी नहीं
अस्पताल की पर्यावरण मंजूरी की जानकारी मुझे नहीं है। मैं चुनाव ड्यूटी में हूं। अजय जैन, कार्यपालन यंत्री (पीआईयू)
सीटीओ देते समय जांचते हैं दस्तावेज
अस्पताल जब संचालन की अनुमति (सीटीओ) के लिए आवेदन करेगा, उस समय देखा जाएगा कि 1000 बिस्तर के निर्माण से पूर्व पर्यावरण स्वीकृत ली गई है या नहीं?
एचएस मालवीय, क्षेत्रीय अधिकारी, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड