कामाख्या श्मशान में ….. रिपोर्टर की एक रात…?

मंत्र पढ़ते तांत्रिक ने इंसानी हड्डी सिर पर रख दी, महिला डॉक्टर तक 10 लाख में मारण क्रिया करा रही थी…

समय: रात के करीब 12 बज रहे हैं

जगह: गुवाहाटी से उत्तर की ओर 11 किमी दूर कामाख्या शक्तिपीठ की तलहटी का भूतनाथ श्मशान

चारों तरफ सुलगती चिताएं। आग की लपटें और उठते धुएं से जलती आंखें… राख का काला-सफेद रंग कपड़ों पर निशान छोड़ रहा और तपिश इतनी कि खाल में खोट पड़ जाए। इन सब के बीच तांत्रिक समाधियों में बैठे हैं। कोई चिता के पास नरमुंड लिए जाप कर रहा है, तो कोई तंत्र साधना में मगन है।

तंत्र की देवी मां कामाख्या अभी रजस्वला, यानी मासिक धर्म में हैं। अगले तीन दिन, यानी 26 जून की सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक कुंडलीचक्र में आराम करेंगी। तब तक असम के खेत-खलिहानों में काम नहीं होगा। मिट्टी तक को नहीं छुआ जाएगा। हिंदू घरों में सूतक रहेगा। दीप नहीं जलेगा, पूजा भी नहीं होगी। इस दौरान देशभर से तांत्रिक यहां जुटे हैं। माहौल मेले सा है, आयोजन अंबुबाची मेला कहलाता है।

………… जलती चिताओं के बीच पूरी रात रहीं। करीब दो दिन कामाख्या मंदिर और उसके आसपास बिताए। श्मशान से उनकी आंखों-देखी रिपोर्ट…

श्मशान में आते ही नंगे पांव हो जाती हूं। चारों ओर चिताएं हैं या उनसे निकली राख पसरी है। पैर रखने में भी सिहरन से हो रही। न जाने कितनी ही चिताओं की राख पर पांव रखते हुए श्मशान में घूम रही हूं। हर कदम कुछ डरा दे रहा।

कामाख्या का भूतनाथ श्मशान। आधी रात को यहां तांत्रिक साधना में जुटे हैं। वे जलती चिताओं के आगे बैठकर हवन-पूजा कर रहे हैं।

एक चिता के सामने बैठे लाल बाबा तंत्र साध रहे हैं। उनके और चिता के बीच थाली में सिंदूर से रंगा नरमुंड धरा है और बाबा के हाथ में बड़ी सी इंसानी हड्डी। मैं बाबा के पास पहुंची ही थी कि उन्होंने मंत्र पढ़ते हुए सिंदूर से रंगी हड्डी मेरे सिर पर रख दी। अब न उठते बन रहा था, न बैठते। उठते डर लगा कि कहीं बाबा नाराज न हो जाएं। बैठे रहने में ही सलामती समझी।

बाबा ने नाम पूछा और मंत्र बोलते हुए आग में कुछ डाल दिया। मेरे माथे पर चिता की भभूत मलकर कहा- जा बाबा को याद रखेगी। कुछ समझ नहीं आ रहा कि यहां क्या हो रहा है, लेकिन यहां की दुनिया­­­­­­­ देखने के लिए डर ही मोल है।

यह श्मशान देश के बाकी श्मशानों से काफी अलग है। यहां पूरी रात चिताएं जलती रहती हैं।
यह श्मशान देश के बाकी श्मशानों से काफी अलग है। यहां पूरी रात चिताएं जलती रहती हैं।

­­­­चारों ओर तंत्र साधक बैठे हैं। साधना कर रहे। सबके अपने तरीके हैं। कोई जोर-जोर से मंत्र पढ़ रहा, तो कोई चिता पर धूनी रमाए है। थोड़ी दूर पर दो तांत्रिक एक चिता पर मंत्र जाप कर रहे। उनमें से एक उठता है और चिता की सुलगती राख के सामने सीटी मारकर किसी को बुलाने जैसा इशारा करता है। फिर चिता के चारों ओर चक्कर लगाने लगता है।

मेरे पास खड़े शख्स ने बताया कि तांत्रिक चिता से कुछ शक्तियां पुकार रहा है। उनके हाव-भाव से लग रहा मानो कोई अकेले में बात कर रहा हो।

इस श्मशान में मौत को भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ढोलक, चिमटे और तुनकी के संगीत पर लोग नाच-गा रहे हैं।
इस श्मशान में मौत को भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ढोलक, चिमटे और तुनकी के संगीत पर लोग नाच-गा रहे हैं।

आगे बढ़ी तो कानों में ढोलक की थाप गूंजने लगी। ढोलक, चिमटे और तुनकी के संगीत पर लोग मदमस्त से नाच रहे और गा रहे हैं। सबके चेहरे खिले हुए हैं। मैं सोच में पड़ गई… श्मशान में किसी की मौत का ऐसा उत्सव कैसे मनाया जा सकता है?

रात और बीती, करीब दो-ढाई बजे होंगे… जगह-जगह दुकानें सजी हैं। कहीं चाय बन रही, तो कहीं पकवान। महादेव के भजनों पर लोग नाच रहे हैं। यहां टहलते-मुस्कुराते चेहरे और बेफिक्र मस्ती देख कोई नहीं कह सकता कि ये सब चिताओं के सामने हो रहा है। चिताओं से उठ रहे अंगारे तांत्रिकों पर गिर रहे हैं, मानो चिता की राख ही इनका जीवनदान हो। ।

इस श्मशान को महिलाओं से भी गुरेज नहीं, बच्चियां भी नाच रहीं

कहते हैं श्मशान में महिलाएं नहीं जातीं, लेकिन यहां हर कोई है। छोटी-छोटी बच्चियां भी असमिया में पशुपतिनाथ के भजन गा रही हैं। महिलाएं यहां-वहां सोई पड़ी हैं, घूम रही हैं, नाच रही हैं। कबीर के दोहे गा रही हैं।

पुरुष तांत्रिकों के साथ ही यहां आपको महिला तांत्रिक भी देखने को मिल जाएंगी। ये महिलाएं भी श्मशान में तंत्र साधना कर रही हैं।
पुरुष तांत्रिकों के साथ ही यहां आपको महिला तांत्रिक भी देखने को मिल जाएंगी। ये महिलाएं भी श्मशान में तंत्र साधना कर रही हैं।

लोगों को मारने तक की तंत्र साधना, पढ़े-लिखे लोग भी ये कराने आते

अलसुबह करीब चार-साढ़े चार का वक्त हो चला है। अघोरी बाबाओं का झुंड श्मशान में आता जा रहा है। वे एक-एक कर शराब पी रहे हैं। बोल रहे हैं रुक जाओ जरा। इनमें तीन अघोरी महिला साधु भी हैं, जो तप कर रही हैं। मैंने पूछ लिया कि ‘आप लोग क्या करने वाले हैं?’ एक अघोरी ने बताया कि ‘एक डॉक्टर आ रही है मारण क्रिया के लिए।’

ये सुन मेरे भी होश उड़ गए। अघोरी कहने लगे कि ये उस महिला डॉक्टर का फैमिली मैटर है। मैंने पूछा किसी को मारने के लिए क्या-क्या सामग्री लगती है। जवाब मिला- ये तो गुप्त बात है। मैंने गुजारिश की कुछ तो बता दें। वे एक-दूसरे से कानाफूसी करने लगे।

यहां नरमुंड और हड्डियां लिए तांत्रिकों का दावा है कि वे महज तीन दिनों में ही कई तंत्र शक्तियां हासिल कर लेंगे।

तभी एक अघोरी उठा और एक लिफाफा लेकर उसमें रखी एक टोकरी निकाल लाया और बोला- ‘देखो यह है मारण क्रिया का सामान।’ आटे जैसे दिखने वाली किसी चीज से दो इंसानी मूर्तियां बनी हैं, जिन्हें काले धागे के साथ बांधा हुआ है। मैंने पूछा- यह आटा है? तो वह बोला कि नहीं, इसके अंदर बहुत कुछ है। बहुत मंहगी-मंहगी सामग्री है। यह सब देख एक बार तो डर गई कि किसी को मारने के लिए पढ़े-लिखे लोग यह तक करते और कराते हैं।

आटे जैसे दिखने वाली किसी चीज से दो इंसानी मूर्तियां बनी हैं। इसके ऊपर काला धागा बांधा है। तांत्रिकों का कहना है कि यह मारण क्रिया का सामान है।
आटे जैसे दिखने वाली किसी चीज से दो इंसानी मूर्तियां बनी हैं। इसके ऊपर काला धागा बांधा है। तांत्रिकों का कहना है कि यह मारण क्रिया का सामान है।

वहां मौजूद बाबा रॉबिन बांग्लादेश वाले कहते हैं कि वशीकरण, शत्रुनाश, उच्चाटन, मारण, नौकरी, शादी, पढ़ाई, अलग-अलग दोष के लिए लोग तांत्रिक पूजा कराते हैं। ऐसी पूजाओं में लगने वाला सामान एक लाख रुपए तोला से लेकर 10 लाख रुपए तक में मिलता है।

मसलन… इसाकटक, काला मायाजाल, सफेद मायाजाल, पायाजोड़ी, हथापौड़ी। मूलचल फल नाम की एक सामग्री होती है। दावा है कि इसे किसी के हाथ पर रगड़ दिया जाए तो वह आदमी आपसे पैसे लेना भूल जाता है। इस तरह के काम के लिए लाखों रुपए देने पड़ते हैं।

जिन लोगों को अपने इच्छानुसार काम करना होता है, किसी को वश में करना होता है, वे चिता के पास बैठकर तांत्रिकों के साथ पूजा कराते हैं।

इन सब से बातें खत्म कर जैसे ही मैं जाने को होती हूं, वो डॉक्टर आ जाती हैं, जिनका जिक्र बाबा कर रहे थे। बाबा बोले कि लो खुद बात कर ले इससे। दिखने में सुंदर, भोली-भाली सी, कम उम्र की, मीठी बोलने वाली यह महिला क्या करने जा रही है कुछ समझ नहीं आ रहा। मैंने पूछा कि क्या कर ही हैं आप… वह मेरे सवाल से डर गई और कहने लगी कि फैमिली मैटर है।

अब बाहर निकल रही हूं और देख रही हूं कि इस श्मशान में रात गुजारने वालों की गिनती हजारों में हो चुकी है।

यहां योनि, मासिक धर्म, लिंग पर बातचीत बेहद आम है

मुझे एक बात अचंभित कर रही है कि औरत के शरीर के जिस हिस्से का किसी मंदिर में जिक्र करना भी पाप माना जाता है, उसके बारे में यहां खुलकर बात की जाती है। लोग योनि, मासिक धर्म, लिंग जैसे शब्द बात-बात में बोले जा रहे हैं। यहां के मुख्य मंदिर में कामेश्वरी और कामेश्वर को माथा टेकने के बाद दस कदम की दूरी पर नीचे की ओर एक अंधेरी गुफा है। जहां टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों से होकर जाना होता है।

कामाख्या धाम में देशभर से नागा साधु आए हैं। 26 तारीख तक वे यहां रहेंगे और मां की पूजा-अर्चना करेंगे।

यहां पहुंचने पर एक चकोर सी छोटी जगह कपड़ों से ढकी है। जिसके चारों तरफ जल है। भक्त उस जल को छूकर माथे से लगा रहे हैं, पी रहे हैं। कुछ भक्त उसे गडवी में भरकर घर भी ले जा रहे हैं। यही वो योनिस्थल है, जिसे हमेशा कपड़ों से ढककर रखा जाता है। यह इतना गहरा है कि घुटनों के बल झुककर इसे छूना पड़ता है।

मंदिर के ऊपर कबूतर दिखाई दे रहे हैं। उनके ऊपर सिंदूर लगा हुआ है। कबूतर वाले से पूछा तो बताने लगे कि शरीर से रोग दूर करने और मनोकामना पूरी करने के लिए सिंदूर लगाकर कबूतर को उड़ाया जाता है। यहां एक कबूतर करीब 500 रुपए में मिलता है।

यहां नागा साधु कपड़ों में होते हैं, क्योंकि मां के सामने नंगे नहीं रह सकते

यहां मंदिर का अपना कोई ऑफिस नहीं है। जूना और किन्नर अखाड़ा ही मंदिर का प्रशासन संभालता है। जूना अखाड़े में देशभर से नागा साधु आए हैं। काफी चहल-पहल है। चिलम फूंकी जा रही है। जटाधारी भभूत लगाए धूनी रमा रहे हैं। महिला नागा साधु भी साधना कर रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये नागा साधु पूरे कपड़ों में हैं। इनका कहना है कि कामाख्या उनकी मां हैं और मां के सामने वे बिना कपड़ों के नहीं रह सकते

कोई धर्मशाला नहीं, एक दिन का किराया 3 हजार से 10 हजार तक

तस्वीर अंबुबाची मेले की है। कोविड के बाद पहली बार अंबुबाची मेला लगा है। लिहाजा रौनक देखते ही बनती है। आसपास दुकानें गुलजार हैं।

मंदिर परिसर से करीब एक किलोमीटर के दायरे में कई दुकानें हैं। जहां मौली, शंख, नरमुंड, रुद्राक्ष की माला और प्रसाद बिक रहे हैं। कोरोना के बाद पहली दफा अंबुबाची मेले का आयोजन हो रहा है। इसलिए दुकानदारों की खुशी दोगुनी हो गई है।

बड़ी परेशानी यह कि यहां कोई धर्मशाला या होटल नहीं है। मंदिर में पूजा करने वाले 466 पंडों के घर यहीं हैं। इन्होंने ही यहां अस्त-व्यस्त मकान बना रखे हैं। उसी में ठहरना होता है, लेकिन इसका एक दिन का किराया तीन से दस हजार रुपए तक वसूलते हैं।

डिस्क्लेमर: ……किसी भी तरह के अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है। रिपोर्ट में कही गई बातें, कहने वाले की श्रद्धा है। रिपोर्ट लोगों की मान्यताओं पर आधारित है।

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